त्योहारों का जीवन में प्रभाव
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’, आसनसोल
त्योहार किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, समाज के लिए प्राण होता है, उत्प्रेरणा का कारण होता है। हर त्योहार के भीतर कोई न कोई आदर्श समाहित होता है। इन आदर्शों का अनुपालन कर, त्योहारों की गरिमा को स्मरण कर, व्यक्ति अपनी भूमिका, अपने आचरण, अपने विचार को नियंत्रित करता है। भारतवर्ष त्योहारों का देश है। त्योहारों की अपेक्षा हमें तथा हमारे पूरे परिवार को हमेशा रहती है, कारण इन त्योहारों के बहाने ही दूर - दराज में रहने वाले हमारे बच्चे परिवार के साथ मिलने का कार्यक्रम बनाते हैं। जीवन में उल्लास - उमंग भरने के लिए त्योहारों का जीवन में अनुपालन होना अत्यंत आवश्यक है। विभिन्न रचनाओं, कहानियों और उपासनाओं की महत्ता के विश्लेषण के साथ हमारे त्योहार श्रद्धा और विश्वास के साथ हमारे संग जीते हैं। इन त्योहारों के अवसर पर भूले - बिसरे लोगों का आपस में मिलना, उनमें एक नई स्फूर्ति का संचार करता है। हमारी नवागत पीढ़ी के व्यस्त जीवन में पर्व - त्योहारों से ही उन्हें परिवार से जुड़ने की प्ररेणा मिलती है, अन्यथा वह संसार रूपी सागर में डूबा रहता है। मनुष्य को चिन्तन करना चाहिए कि हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ? इस आत्मज्ञान के लिए, व्यक्ति को भौतिक वस्तुओं से अपना ध्यान हटाना आवश्यक है, इसकी उपलब्धि के लिए त्योहारों का होना जरूरी है। त्योहारों पर संयम - साधना के साथ आत्मदर्शन के प्रतिफलन के उपरान्त ही हमें अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान होता है, अन्यथा विषय में आदमी इस कदर लीन हो जाता है कि उसी में अपने आप को लिपटाकर शांति के लिए भटकता रह
ता है।