ASANSOL

Asansol : नए न्याय संहिता में नया कुछ नहीं, रद्द होना चाहिए : मलय घटक

बंगाल मिरर, आसनसोल: केंद्र सरकार द्वारा भारतीय कानून व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन करते हुए आईपीसी सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट में परिवर्तन लाया गया इसे लेकर पूरे देश के साथ-साथ आसनसोल के अधिवक्ताओं और कानूनी व्यवस्था से जुड़े लोगों के बीच चर्चाएं शुरू हो गई हैं आज आसनसोल के रविंद्र भवन में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए नए कानून व्यवस्था को लेकर एक सेमिनार का आयोजन किया गया यहां पर राज्य के श्रम और कानून मंत्री   मलय घटक आसनसोल अदालत के जिला जज गोपाल कुमार डालमिया, कोलकाता हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता मिलन  नगर निगम के डिप्टी मेयर और अधिवक्ता अभिजीत घटक आसनसोल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश तिवारी सचिन बानी मंडल अमिताभ मुखर्जी शेखर कुंडू प्रमोद सिंह सहित आसनसोल अदालत के तमाम अधिवक्ता यहां पर उपस्थित थे ।

यहां अपनी बात रखते हुए मलय घटक ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा आईपीसी सीआरपीसी और एविडेंस एक्ट में परिवर्तन करने की बात कही गई है लेकिन उन्होंने दावा किया कि परिवर्तन करने के बाद जो नए कानून बनाए गए हैं वह पहले के कानून से सिर्फ 5% ही अलग है। उन्होंने कहा की केंद्रीय कानून मंत्री द्वारा संसद में परिवर्तन करते हुए बिल को पेश किया गया था लेकिन बाद में उसे हटा लिया गया इसके लिए केंद्र सरकार की तरफ से दलील दी गई की इस बदलाव में जो सभी स्टेकहोल्डर हैं उनसे बात करनी होगी मलय घटक ने कहा कि इस तरह के कानूनी बदलाव में सबसे बड़ा स्टेक होल्डर लॉ कमीशन होता है जब भी इस तरह का कोई बदलाव होता है तो लॉ कमीशन द्वारा सुझाव दिया जाता है लेकिन यहां पर लॉ कमीशन को पूरी तरह से दरकिनार करते हुए यह काम किया गया

उन्होंने कहा कि जिन 7 लोगों द्वारा नए कानून व्यवस्था को बनाने के लिए सलाह दी गई थी उनमें सिर्फ एक व्यक्ति प्रैक्टिसिंग लॉयर है बाकी सब प्रोफेसर हैं मंत्री ने इस बात पर हैरानी जताई कि भारत के कानून को लेकर इतने बड़े बदलाव की सिफारिश करने वाले छह व्यक्ति प्रोफेसर हैं और सिर्फ एक व्यक्ति अधिवक्ता है केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया था कि यह कानून व्यवस्था औपनिवेशिक कानून व्यवस्था है जिसमें अब बदलाव की आवश्यकता है मंत्री ने कहा कि इस औपनिवेशिक कानून व्यवस्था में कमी क्या थी सिर्फ एक कमी थी वह यह की विश्व के किसी भी देश के कानून व्यवस्था में यह प्रावधान नहीं है कि किसी आरोपी को पुलिस रिमांड में लिया जा सके लेकिन औपनिवेशिक कानून व्यवस्था में यह प्रावधान होता है जिससे किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकार को छीना जाता है इसमें नया कुछ भी नहीं है इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए

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