दुनिया में मां से बड़ा कोई नहीं : स्वामी आत्मप्रकाश जी महाराज
बंगाल मिरर, आसनसोल :आसनसोल एनएस रोड के गौर मंडल रोड स्थित आसनसोल गौशाला में मुरारका परिवार के सानिध्य में एवं आसनसोल महावीर स्थान सेवा समिति के सहयोग से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन गुरुवार को कथावाचक स्वामी आत्म प्रकाश जी महाराज ने सुदामा चरित्र, परीक्षित मोक्ष एवं कथा पूर्णाहुति पर कथा की समाप्ति हुई। इस अवसर पर आसनसोल नगर निगम के चेयरमैन अमरनाथ चटर्जी, महावीर स्थान सेवा समिति के सचिव अरुण शर्मा, बालकिशन मुरारका का पूरा परिवार, मोहन केशव भाई सहित पटेल परिवार, राजकुमार शर्मा, नारायण मुरारका, बाल कृष्णा मुरारका, सरस मुरारका, सरोज मुरारका, पंखुड़ी मुरारका, शुचि पोद्दार, सुमित्रा टेबरेवाल, स्वेता टेबरेवाल, कपूर अग्रवाल, नारायण मुरारका, पुरषोत्तम मुरारका, नीलम मुरारका, सोनल टेबरेवाल, राजू पोद्दार, अन्नु पोद्दार, महेश झुनझुनवाला, मधु झुनझुनवाला, सुनीला अग्रवाल, राजू पोद्दार, निरंजन शास्त्री, कृष्णा पंडित, मंजू अग्रवाल, अनिल मोहनका, आनंद पारीक, अनिर्वाण चटर्जी, मुकेश पहचान, बासुदेव शर्मा सहित सैंकड़ों महिलाएं व पुरुष भक्त उपस्थित थे।
भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा, उज्जैन के गुरु संदीपनी आश्रम में पढ़ते थे। आश्रम में श्रीकृष्ण के बहुत मित्र थे मगर सुदामा और कृष्ण दोनों एक दूसरे के प्रेमी हो गए। कृष्ण और सुदामा प्रत्येक दिन जंगल में लकड़ी काटने एक साथ जाते थे। गुरु मां दोनों के लिए दो मुठ्ठी चना खाने के लिए देती थी। आश्रम में एक दिन ऐसा हुआ सभी लोग खाना खा लिए। उसके बाद दुर्वासा ऋषि आश्रम में पहुंच गए। आश्रम में गुरु माता से कहे मुझे जोड़ से भूख लगी है। जो कुछ है उसे खाने के लिए दो। गुरु माता ने कही की घर में कुछ भी खाने को नहीं है।
ऋषि महात्मा आप नदी में स्नान करके आइए। तबतक हम खाना बनाती हूं। दुर्वासा ऋषि ने कहा कि खाना बनाने की जरूरत नहीं है घर में जो कुछ है। वही दे दो गुरु माता। असल में मां का स्वभाव ही ऐसा होता है। अपने बच्चों को कभी भूखा नहीं देख सकती। दो मुठ्ठी चना है। वह कृष्ण और सुदामा के लिए रखी थी। दुर्वासा ऋषि ने कहा गुरु माता आप रहने दीजिए। दूसरे जगह से मांग लेता हु। तुम्हारे यहां फिर कभी दूसरे दिन मांग लूंगा। उसके बाद दुर्वासा ऋषि ने बाहर जाकर ध्यान लगाए। उन्होंने देखा की गुरु माता दो मुठ्ठी चना छुपाकर रखी है। तब गुस्सा में आकर ऋषि ने श्राप दिया कि वह चना जो खायेगा, वह जिंदगी भर दरिद्र रहेगा। यह बात सुदामा ने सुन लिया। दूसरे दिन जब दोनों लकड़ी काटने जंगल गए। सुदामा ने सोचा कृष्ण बड़े घर का लड़का है।
उसे दरिद्र बनने वे नहीं देख सकते। सुदामा ने दोनों मुठ्ठी चना खा लिया। कृष्ण को दरिद्र बनने नहीं दिया। स्वामी आत्म प्रकाश जी महाराज ने कथा के माध्यम से यह बोलना चाह रहे की मां से बड़ा दुनिया में कोई नहीं होता है। कृष्ण और सुदामा जैसे मित्र बनाना चाहिए।समाप्ति के मौके पर बाल कृष्ण मुरारका ने कहा कि अरुण शर्मा, राजकुमार शर्मा, मंजू शर्मा सहित सभी के सहयोग से भागवत कथा बहुत अच्छे से संपन्न हुआ । हम सभी का आभारी रहूंगा।