Asansol CBI Court : Raniganj Postal Scam में 18 साल बाद सजा
रानीगंज हेड पोस्टऑफिस के पूर्व एपीएम को तीन साल की कैद, दो लाख जुर्माना
बंगाल मिरर, रानीगंज: आसनसोल रानीगंज हेड पोस्टऑफिस के पूर्व सहायक पोस्ट मास्टर (एपीएम) दिग्विजय चटर्जी (75) को सीबीआइ की विशेष अदालत ने सोमवार को आय से अधिक संपत्ति के मामले में तीन साल के कारावास और दो लाख रुपये के जुर्माना की सजा सुनायी। जुर्माना के दो लाख रुपये का भुगतान नहीं करने पर छह माह अतिरिक्त कारावास की सजा होगी। इस मामले के दिग्विजय के साथ उनकी पत्नी भी आरोपी थी. लेकिन इस बीच उनका निधन हो जाने के कारण सिर्फ दिग्विजय को ही सजा सुनायी गयी। दिसंबर 2006 में सीबीआइ ने पीसी एक्ट की धारा 13(2)(1)(इ) के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी।




मामले में कुल 69 गवाहों की गवाही और जब्त दस्तावेजों के आधार पर लोक अभियोजन पक्ष के अभियोजक राकेश कुमार ने अपराध को साबित किया। जिसके आधार पर सजा हुई। सजा तीन साल से कम होने और स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की अपील पर अदालत ने दिग्विजय की जमानत मंजूर कर दी। 90 दिनों के अंदर दिग्विजय उच्च न्यायालय में सीबीआइ अदालत के फैसले को चुनौती दे सकते हैं अन्यथा उन्हें गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया जायेगा।
गौरतलब है वर्ष 2000 से 2005 के बीच रानीगंज हेड पोस्टऑफिस में भारी घोटाला हुआ था। एक अनुमान के आधार पर उस समय करीब 200 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था। सीबीआइ ने एक दर्जन से अधिक मामले दर्ज किये और सभी मामलों पर सुनवाई जारी है। दो मामलों में आरोपियों को सजा भी हुई है। दिग्विजय चटर्जी के खिलाफ भी उस दौरान आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज हुआ था. रानीगंज में पोस्टल फ्रॉड उस समय पूरे देश में चर्चा का विषय बना था।
इस दौरान पोस्टऑफिस में कार्य करनेवाले लगभग सभी कर्मचारियों पर सीबीआइ ने मामला दर्ज किया। दिग्विजय और उनकी पत्नी पर भी मामला दर्ज हुआ। उनके घर से एक डायरी बरामद हुई। जिससे इनका पूरा कच्चा चिट्ठा खुल गया। परिवार के सदस्यों के अलावा पोस्टऑफिस में अज्ञात व्यक्तियों के नाम से केवीपी और एनएससी की जानकारी मिली और सारे दस्तावेज बरामद हुए. 53 लाख रुपये से अधिक की बेनामी कागजात थे। जिनके नाम पर ये केवीपी और एनएससी थे, उन नामों का कोई आदमी ही मौजूद नहीं था। पोस्ट ऑफिस में होने के कारण अज्ञात लोगों के नाम पर केवीपी और एनएससी खरीद लिया गया। बाद में उसे खुद ही कैश कर लेते. उससे पहले ही भंडाफोड़ हो गया और 18 वर्षों बाद सजा हुई।