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“सप्तरंगलोक: सात रंगों की दुनिया” “मणु और श्रद्धा का अद्भुत सफर (Part #IX)!..” –‘सुमन’

“सप्तरंगलोक एक अद्भुत भूमि है, जहां हर क्षेत्र एक अलग रंग में रंगा हुआ है। यह क्षेत्र सिक्किम हिमालय में स्थित है और अपनी प्राकृतिक सुंदरता, जैव विविधता, और कंचनजंगा की भव्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ की हर धारा, पहाड़ी, और वादी में अलग-अलग रंग बिखरे हुए हैं। लेकिन एक समय था जब सप्तरंगलोक में भ्रष्टाचार ने अपने पांव पसार लिए थे, और दासों द्वारा किए गए श्रमिक कार्य ने इस भूमि को दीन-हीन बना दिया था।

सदी के पहले दशमलव में, भगवान बुद्ध के जन्म के उत्सव के समय, सप्तरंगलोक में शोषण और तानाशाही का साम्राज्य फैल चुका था। एक दास, जो सप्तरंगलोक जनजाति से था, उसका नाम प्रताप सब्बा था। वह खनन खड्ड में काम करने से मना करता था और इसके कारण उसे अकाल मृत्यु की सजा दी गई थी। एक दिन, संयोगवश, उसे व्यापारियों और यात्रियों मनु और श्रद्धा के सामने लाया गया, जो अपने साथ अपने शरीर रक्षक थंगाबली और उनके घोड़े उज्जवल और चेतक के साथ आए थे। मनु और श्रद्धा ने उसकी कड़ी मेहनत और साहस से प्रभावित होकर प्रताप को अपनी मल्लयुद्ध विद्यालय के लिए खरीद लिया।



इस मल्लयुद्ध विद्यालय में प्रताप की कठोर शिक्षा शुरू हुई, लेकिन प्रशिक्षक सोनम त्शेरिंग लेप्चा को यह निर्देश दिया गया कि वे उसे ज्यादा कठोर न बनाएं, क्योंकि मनु को विश्वास था कि प्रताप में विशेष गुणवत्ता है। इसी दौरान, प्रताप ने इन्द्रा सब्बा नामक एक दासी से शांति से एक रिश्ता बनाया। जब इन्द्रा उसे “मनोरंजन” के लिए भेजी गई, तो उसने उसे अपमानित करने के बजाय उसका सम्मान किया।

एक दिन, सप्तरंगलोक के समृद्ध सभापति पुष्पा ल्हामू शेरपा ने मनु और श्रद्धा से मुलाकात की। पुष्पा का इरादा था कि वह सप्तरंगलोक का तानाशाह बने। उसने इन्द्रा सब्बा को खरीद लिया और प्रताप और अन्य गुलामों को मृत्यु के लिए मल्लयुद्ध में भेज दिया। जब प्रताप को हथियारों से वंचित किया गया, तो उसके विरोधी मोगाम्बो भूटिया ने उसे जीवित छोड़ दिया और सप्तरंगलोक के दर्शकों पर हमला कर दिया।

इसके बाद, प्रताप की विद्रोही भावना और कठोर संघर्ष ने उसे गुलामों का नेता बना दिया। उसने सभी भागे हुए गुलामों को एकत्रित किया और उन्हें उनके घरों से बाहर निकालने का निर्णय लिया। इस यात्रा में बहुत से गुलाम उसकी सेना में शामिल हो गए। इसमें इन्द्रा और अंगार शेरपा भी थे, जो पुष्पा के क्रूर शोषण से बचने के लिए भाग आए थे।.

सप्तरंगलोक के सभापति पुष्पा को अब यह चिंता सता रही थी कि प्रताप ने उसकी सत्ता को खतरे में डाल दिया है। उसने प्रताप और उसकी सेना को समाप्त करने के लिए हर संभव प्रयास किया। लेकिन प्रताप ने अपनी सेना को साहसिक संघर्ष के लिए प्रेरित किया और जब कोई रास्ता नहीं बचा, तो उसने अपने सैनिकों से कहा कि वे संघर्ष करें और यह साबित करें कि वे भी इंसान हैं।

सप्तरंगलोक की सेना ने उन्हें घेर लिया और एक भीषण युद्ध हुआ। अधिकांश गुलाम मारे गए, लेकिन युद्ध के बाद, प्रताप के अनुयायी एकजुट हो गए और हर कोई चिल्लाया, “मैं प्रताप हूं!” पुष्पा ने सभी को फांसी देने का आदेश दिया।

इस बीच, प्रताप और इन्द्रा का नवजात पुत्र युवराज जीवित बच गया। पुष्पा ने उसे बंदी बना लिया, और जब इन्द्रा ने उसे अस्वीकार किया, तो उसने प्रताप से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि वह अंगार के साथ लड़ाई करे। जब प्रताप ने अंगार को मार दिया, तो पुष्पा ने उसे यह मान लिया कि प्रताप एक वीर शहीद के रूप में प्रसिद्ध हो सकता है।

सप्तरंगलोक के सत्ताधारी पुष्पा ने अपने जीवन के अंत से पहले, प्रताप के परिवार को बचाने के लिए मनु और श्रद्धा से घुस लिये! मनु और श्रद्धा ने उन्हें सुरक्षित बाहर निकाल लिया और जब वे सप्तरंगलोक से बाहर जा रहे थे, तो वे प्रताप की फांसी के स्थान के नीचे से गुज़रे। इन्द्रा ने प्रताप को अपने बेटे युवराज के साथ सांतवना दी, जो जानता था कि उसके पिता ने अपनी जान दी थी ताकि वह स्वतंत्र रह सके।



जब प्रताप की फांसी दी गई, तो सप्तरंगलोक के सात रंगों में विकार फैल गए। पुष्पा का साम्राज्य नष्ट हो गया, और मनु, श्रद्धा और हिमालय देवी के आशीर्वाद से इन्द्रा और युवराज बच गए। युवराज का पालन-पोषण उज्जवल और चेतक के साथ हुआ, और जब वह बड़ा हुआ, तो वह राजा अभिषेक के रूप में ताज पहनाया गया।

आज, सप्तरंगलोक में खुशियों का सात रंगी इंद्रधनुष फैला हुआ है। इन्द्रा राजमाता के रूप में युवराज का कवच बनी हुई हैं। मनु और श्रद्धा अपनी अगली यात्रा के लिए आगे बढ़ते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है।”

कहानीकार: सुशील कुमार सुमन
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी, बर्नपुर

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