“एक आईना बीते लम्हों का” –‘सुमन’
“धीरे-धीरे सब छोड़ जाते हैं
दिसंबर तो सिर्फ महीना है,
पर लगता है जैसे एक कहानी है।
गुज़रे हुए लम्हों का हिसाब किताब,
सुख-दुख का मेल, कुछ टूटे ख्वाब।
धीरे-धीरे सब छूट जाते हैं,
यादें धुंधली, चेहरे मिट जाते हैं।
वो पहली सर्दी की ठंडी हवा,
कानों में गूँजती थी जो मधुर दुआ।
समय की धार से सब बह जाता है,
दिल के कोने में कुछ रह जाता है।
वो चाय की भाप, वो धुंध का पर्दा,
जैसे बीते दिनों का कोई गहना।
दिसंबर आता है अलविदा कहने,
बीते पलों को फिर से गुनने।
पर साथ ही देता है एक उम्मीद,
नए साल में मिलेगी नई तहरीर।
धीरे-धीरे सब रीत जाते हैं,
सपने नए फिर से बुन जाते हैं।
दिसंबर तो सिर्फ महीना है,
पर लगता है जैसे इक आईना है।”
कवि: सुशील कुमार सुमन
अध्यक्ष, IOA
सेल, आईएसपी, बर्नपुर