Historical Temple in Asansol : 1400 साल पुराना मंदिर आप गए हैं या नहीं
बंगाल मिरर, आसनसोल : , पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब 232 किलोमीटर दूर आसनसोल के बराकर इलाके मे स्थित दामोदर नदी से कुछ ही दुरी पर बना हजारों वर्ष पुराना सीधेश्वरी मंदिर अपने अंदर कई रहश्य लेकर आज भी अपना इतिहासिक अस्तित्व बचाने की बाँट जोह रहा है, हरेकृष्ण बाबा की अगर माने तो वह सीताराम बाबा के शिष्य हैं, सीताराम बाबा सीधेश्वरी मंदिर के सबसे पुराने पुरोहित थे और उन्होंने इसी सीधेश्वरी मंदिर से 1923 और 24 के बिच सिद्धि लाभ किया था, जिसके बाद उन्होंने सीधेश्वरी मंदिर के ठीक निकट एक गौरंगों मंदिर की स्थापना भी करवाई थी जिस मंदिर के पुजारी भी वही थे, ऐसे मे उनके स्वर्गवास होने के बाद सीधेश्वरी मंदिर की चारों मंदिरों मे अलग -अलग पुजारी पूजा करने लगे और वह गोरंगों मंदिर की पूजा व उसके देख रेख मे लग गए, ।
ऐसे मे हरेकृष्ण बाबा ने यह दावा किया की उन्होंने अपने गुरु सीताराम बाबा के मुह से सुना था की सीधेश्वरी मंदिर करीब ढाई हाजर साल पुराना है, पर भारतीय पुरातत्व विभाग कोलकाता सर्कल यह दावा करती है की यह मंदिर शस्टम शताब्दी मे बनी है जिसको देखते हुए यह कहा जा सकता है की यह मंदिर लगभग 1400 साल पुराना है, उन्होने यह भी कहा की पुरातत्व विभाग यह भी कहती है की सीधेस्वरी मंदिर प्रांगण मे कुल चार मंदिर हैं और चारों मंदिर उड़ीसा शैली के भगवान जगन्नाथ मंदिर व उत्तराखंड मे स्थित भगवान केदारनाथ मंदिर के तरह बनाए गए हैं, ।
उन्होने यह भी कहा की पुरातत्व विभाग ने इन चारों मंदिरों को अलग -अलग देवी देवताओं के मंदिरों मे तब्दील कर दिया है, जिसमे पहले नंबर पर सीधेश्वरी मंदिर तो दूसरे नंबर पर पार्वती मंदिर तो तीसरे नंबर पर भगवान गणेश तो चौथे नंबर पर माँ भगवती की मंदिर है, पुरातत्व विभाग द्वारा उठाए गए इस कदम से गोरंगों मंदिर के पुजारी काफी नाराज हैं और उन्होने अपनी नाराजगी दिखाते हुए यह कहा है की पुरातत्व विभाग ने हजारों वर्ष पुराने सीधेश्वरी मंदिर के इतिहास के साथ छेड़ -छाड़ करने का काम किया है, गोरंगों मंदिर के पुरोहित हरेकृष्ण बाबा ने मंदिर के अंदर और बाहर के तमाम ढांचो को दिखाते हुए यह दावा किया की भगवान शिव को छोड़कर किसी भी अन्य मंदिर के सामने नंदी महराज का मूर्ति नही मिलेगा।
उन्होंने कहा सीधेश्वरी मंदिर करीब तीन एकड़ जमीन पर फैला है और जिस जमीन पर मंदिर स्थापित हुई है उस जमीन मे मिट्टी नही बल्कि चारों तरफ पत्थर ही पत्थर है जिसमे मजे की बात यह है की वह पत्थर एक ही शिला मे है, अलग -अलग भागों मे नही बंटा, उन्होने कहा यह इलाका एक कोलियरी छेत्र है, जहाँ पर जमीन के अंदर कोयला कंपनियों ने कोयला निकाला है, पर जिस जगह पर मंदिर का निर्माण हुआ है, उस जगह से कोयला कंपनियों को कोयला नही मिला है और काफी गहराई तक सीधेश्वरी मंदिर के निचले भाग वाला पत्थर का शिला गया हुआ है, जिससे यह पता चलता है की सीधेश्वरी मंदिर एक ही पत्थर के शिले पर स्थापित है, जो पत्थर करीब तीन एकड़ जमीन पर फैली है, ।
इसके अलावा पुरोहित की अगर माने तो मंदिर के एक दीवार पर पाली भाषा मे कुछ लिखा हुआ है, जो मंदिर के पुराने इतिहास के बारे मे दर्शाता है, पर मंदिर मे पूजा करने आने वाले श्रद्धालुओं की लापरवाही के कारण मंदिर के मुख्य द्वार पर लिखा हुआ पाली भाषा का वह शब्द भी अब धीरे -धीरे मिटता जा रहा है, क्योंकि श्रद्धांलु मंदिर के मुख्य द्वार पर जहाँ -तहाँ नारियल फोड़ देते हैं, इसके अलावा पूजा करने के दौरान उनके हाँथ मे लगा सिंदूर, तेल या फिर कोई अन्य प्रकार का शमग्री उसी दीवार पर पोंछ देते हैं, उन्होंने यह भी बताया की उनके गुरु कहते थे की इस मंदिर का निर्माण राजा हरिश्चन्द्र और उनकी पत्नी हरी प्रिया के देख रेख मे बनी थी जो उनके बाद राजा इच्छाई घोष के अधीन चली गई और वह मंदिर का देख -रेख सँभालने लगे यहीं नही इन राजाओं के अलावा भी कई राजाओं और महाराजाओं के अधीन यह मंदिर आई और इस मंदिर का रख -रखाव अच्छे से नही होने के कारण मंदिर की स्थिति भी समय -समय पर कभी ख़राब तो कभी अच्छी होती रही और आज यह मंदिर कुछ इस कंडीशन मे है, की यह मंदिर अब खुद अपनी ही पहचान धीरे -धीरे खो रही है,।
पुजारी ने यह भी दावा किया की इन चारों मंदिरों मे कुल 12 शिव लिंग स्थापित है, जिससे यह साबित होता है की मंदिर मे एक साथ 12 ज्योतिलिंग स्थापित है, ऐसे मे वह पुरातत्व विभाग से यह अनुरोध और यह आवेदन करते हैं की वह सीधेश्वरी मंदिर का असली इतिहास देश के सामने रखें शिव भक्तों को इस मंदिर की असलियत से वंचित ना करें समय के साथ -साथ स्थानीय लोगों व मंदिर के पुरोहितों द्वारा वर्त्तमान समय मे स्थापित किये गए अलग -अलग देवी देवताओं को शौंपकार मंदिर का अपने मन से नामांकरण कर मंदिर का इतिहास उसका अस्तित्व को खतरे मे ना डालें मंदिर का असली परिचय दुनिया के सामने रखें उसका इतिहास लोगों के सामने रखें ठीक उसी तरह जैसे
सोमनाथ – गुजरात के सौराष्ट्र में समुद्र किनारे
मल्लिकार्जुन – आंध्र प्रदेश के कुर्नूल में
महाकालेश्वर – मध्य प्रदेश के उज्जैन में
ओंकारेश्वर – मध्य प्रदेश के खंडवा में नर्मदा नदी के द्वीप पर
केदारनाथ – उत्तराखंड के केदारनाथ में
भीमाशंकर – महाराष्ट्र में पुणे से 100 किलोमीटर दूर
काशी विश्वनाथ – उत्तर प्रदेश के वाराणसी में
त्रयम्बकेश्वर – महाराष्ट्र के नासिक में
वैद्यनाथ – झारखंड के देवघर में
नागेश्वर – गुजरात के द्वारका में
रामेश्वर – तमिलनाडु के रामेश्वरम में
घृष्णेश्वर – महाराष्ट्र के औरंगाबाद का है