“मैं IISCO हूँ,”
मैं IISCO हूँ,
मेरा जन्म हुआ था उन्नीस सौ अठारह में,
लोहे की आग में,
श्रम के सत्कार में।
देश की धड़कन बना मैं,
हर धौंकनी में बसी थी मेरी साँसें।
कल फिर चर्चा में हूँ मैं,
छतों से लेकर चाय की प्यालियों तक।
क्योंकि 6 अप्रैल को
मेरी बची-खुची विरासत —
वो पुराने कूलिंग टावर,
अब इतिहास बनने वाले हैं।



सच कहता हूँ…
कुछ भी स्थायी नहीं होता जीवन में,
सब कुछ है क्षणभंगुर —
केवल वर्तमान ही सत्य है।
जब से जन्मा, तब से चला,
न रुका, न थमा —
समय के संग-संग बहा।
1922 में पहला उन्नयन पाया,
फिर लगा, अब अस्त होना है…
लेकिन फिर इतिहास ने करवट ली —
1947 में देश आज़ाद हुआ,
और मैं भी… उम्मीद से जुड़ा।
पर कठिनाइयाँ आसान न थीं,
आर्थिक तूफानों से जूझा,
कभी टूटा, कभी झुका।
और फिर…
16 फरवरी 2006 को
SAIL में हुआ मेरा विलय,
मेरा पुनर्जन्म —
मैं IISCO से बन गया ISP।
हे मानव!
मैं हूँ IISCO —
मेरे साथ चलना सीखो।
मैं हूँ प्रगति और अवसाद के मध्य की रेखा,
पहचानो मुझे —
मैं हूँ वो जो समय के हर युग में था, है और रहेगा।
तीन दौर:
स्वतंत्रता से पहले,
स्वतंत्रता के बाद,
और आज का नव भारत —
हर युग की गवाही मैं हूँ।
मैं ही हूँ वो कर्मभूमि,
जहाँ श्रम का सम्मान है।
मैं ही हूँ वो चिनगारी,
जिससे रोशन हिंदुस्तान है।
धर्म-अधर्म, लाभ-हानि से परे,
मैं हूँ एक साक्षी —
इस महान राष्ट्र के औद्योगिक स्वप्न का।
आज मेरी क्षमता 2.5 मिलियन टन प्रति वर्ष है,
कल ये 7 मिलियन टन होगी —
2030 तक एक नया इतिहास रचूँगा।
मैं खुश हूँ,
क्योंकि मेरा पुनर्जन्म दिवस फिर आ रहा है —
16 फरवरी…2026
मत भूलना ये तारीख।
धन्यवाद SAIL,
धन्यवाद मेरे हर कर्मवीर।
मैं हूँ…
आपका IISCO।
आपके अतीत, वर्तमान और भविष्य का साथी।
*कवि: सुशील कुमार सुमन*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर