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“भक्ति से भविष्य तक: राम नवमी पर दो शहरों की कहानी”

💐🙏🚩जय श्री राम🚩🙏💐
“राम नवमी की पावन सुबह… हवा में भजन, धूप की खुशबू और श्रद्धा की गूंज थी। पूरा देश “जय श्री राम” के जयकारों से गूंज रहा था। भक्त व्रत रख रहे थे, मंदिरों में आरती हो रही थी, और अयोध्या के राजकुमार श्रीराम के जन्मोत्सव पर उल्लास छा गया था। रामलीला की झांकियाँ निकलीं, बच्चे धनुष-बाण लेकर प्रभु राम की भूमिका में दिखे। लेकिन इस बार राम नवमी केवल पूजा या परंपरा तक सीमित नहीं रही — इस दिन देश के दो इस्पात नगरी बर्नपुर और बोकारो में भाग्य बदलने की कहानी भी लिखी जा रही थी।
बर्नपुर में एक भावुक विदाई
बर्नपुर की गलियों में राम नवमी की मिठास तो थी ही, पर वहाँ की हवा में एक हलकी उदासी भी घुली थी। IISCO स्टील प्लांट के कर्मचारी और पूर्व कर्मचारी पांच ऐतिहासिक कूलिंग टावरों को अंतिम विदाई देने पहुँचे थे। ये केवल सीमेंट के ढाँचे नहीं थे — ये उनकी मेहनत, संघर्ष, और यादों की गवाहियाँ थीं। किसी की आँखें नम थीं, तो कोई चुपचाप सिर झुकाकर अपनी भावनाओं को समेटे खड़ा था।



एक बुजुर्ग टेक्नीशियन बोले,
*”ये टावर हमारे लिए राम सेतु जैसे हैं… हमारे अतीत को भविष्य से जोड़ते हैं।”*

लेकिन राम ने भी सिखाया — मर्यादा में रहते हुए, जीवन को आगे बढ़ाना ही धर्म है। अब ये टावर सुरक्षा और उत्पादन के लिए चुनौती बन चुके थे। इसलिए इन्हें सम्मानपूर्वक तोड़ा जाना तय हुआ। लेकिन इसके साथ ही एक नया स्वप्न आकार ले रहा था — ₹40,000 करोड़ के नए प्रोजेक्ट्स, दुनिया का सबसे बड़ा ब्लास्ट फर्नेस, और बर्नपुर का भविष्य एक ग्रैंड स्टील सिटी के रूप में।

बैनरों पर लिखा था —
“अलविदा विरासत, स्वागत है विकास।”


वहीं दूसरी ओर, कुछ सौ किलोमीटर दूर बोकारो सुलग रहा था। विस्थापित अप्रेंटिस युवाओं की नियोजन की मांग पर हुआ शांतिपूर्ण आंदोलन, लाठीचार्ज और एक युवक प्रेम महतो की मौत में बदल गया। यह घटना आग की तरह फैल गई। शोक, आक्रोश बन गया और पूरा शहर बंद कर दिया गया।

सड़कें टायरों की आग से जाम थीं, सेक्टर-4 में बस जलाई गई, बैंक, स्कूल, अस्पताल सब बंद। BSL प्लांट के सभी गेट बंद कर दिए गए। 5,000 से अधिक कर्मचारी प्लांट में फंसे रहे। बोकारो का इस्पात चक्का थम गया था।

धरने पर बैठे एक युवक का नारा था:
“हमें सहानुभूति नहीं, रोजगार चाहिए!”

मांग की गई — मृतक के परिवार को ₹50 लाख, एक सदस्य को नौकरी और 1,500 अप्रेंटिस विस्थापितों की नियुक्ति। लेकिन त्रिपक्षीय वार्ता विफल रही। बोकारो की सड़कों पर सिर्फ सन्नाटा और गुस्सा था।
विडंबना देखिए — यह दिन भी राम नवमी था। और उसी दिन राम के आदर्शों की सबसे अधिक आवश्यकता महसूस हुई। राम ने भी तो अन्याय के विरुद्ध धर्म की लड़ाई लड़ी थी — वनवास झेला, सीता की खोज की, रावण से युद्ध लड़ा।
शाम को बर्नपुर में दीप जलाए गए — प्रभु राम के लिए और आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए। वहीं बोकारो में, न्याय की माँग में निकले कैंडल मार्च में एक बच्चा अपने हाथ में राम की तस्वीर थामे हुए था। उसने अपने पिता से सुना था:
*”राम न्याय के लिए लड़े थे… तो हमें भी लड़ना होगा।”*
इस राम नवमी पर भारत के दो स्टील शहरों ने दो अलग अध्याय लिखे। एक जगह विरासत को सम्मान देकर विकास को अपनाया गया। दूसरी जगह न्याय की माँग में संघर्ष जारी है। लेकिन दोनों के दिलों में एक ही आशा है —

*”सत्य डगमगा सकता है, पर हारता नहीं।*
*💐🙏🚩जय श्री राम🚩🙏💐*

*“कहानीकार: सुशील कुमार सुमन”*
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर

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