शारदीय नवरात्र 2025 : आस्था, शक्ति और नवचेतना का पर्व
*”या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता !,**नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥*”आप सभी को शारदीय नवरात्र की ढेरों शुभकामनाएँ एवं हार्दिक बधाई! माँ दुर्गा की कृपा से आपके जीवन में सुख, शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि का वास हो। जय माता दी!”*”शारदीय नवरात्र 2025 : आस्था, शक्ति और नवचेतना का पर्व”*भारतवर्ष की आध्यात्मिक परंपराओं में ऐसे अनगिनत पर्व हैं जो केवल उत्सव नहीं बल्कि जीवन के शाश्वत सत्य और मूल्य का बोध कराते हैं। उन्हीं पर्वों में एक है शारदीय नवरात्र, जिसे शक्ति की साधना, आत्मबल के जागरण और जीवन के नवसृजन का पर्व कहा जाता है।



इस वर्ष *शारदीय नवरात्र 2025 का शुभारंभ आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, दिनांक 22 सितंबर 2025,* सोमवार से हो रहा है। विशेष महत्व इस बात का है कि सोमवार के दिन नवरात्र प्रारंभ होने के कारण माता का आगमन गज अर्थात हाथी पर हो रहा है। ज्योतिषीय मान्यता है कि जब देवी हाथी पर सवार होकर आती हैं तो यह आने वाले समय में समृद्धि, शांति और भरपूर वर्षा का प्रतीक होता है। घर-घर में सुख-समृद्धि का वास होता है और समाज में धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना का उन्नयन होता है।
*”नवरात्र का सनातन स्वरूप”*
नवरात्र केवल देवी-पूजन का अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह धर्म और अधर्म, प्रकाश और अंधकार, आशा और निराशा के बीच शाश्वत संघर्ष का स्मरण कराता है। माँ दुर्गा का महिषासुर पर विजय पाना इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि *असत्य कितना भी प्रबल क्यों न दिखे, अंततः सत्य और धर्म की ही जीत होती है।*शारदीय नवरात्र विशेष रूप से ऋतु परिवर्तन और कृषि जीवन से भी जुड़ा है। खेतों में नई फसलें लहलहाती हैं और *किसान देवी* को धन्यवाद ज्ञापित करते हैं कि उन्होंने धरती को उर्वरता प्रदान की। इस प्रकार नवरात्र केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं बल्कि प्रकृति और मानव जीवन के सामंजस्य का उत्सव भी है।
*”सोमवार और गजवाहन का विशेष महत्व”*
2025 के नवरात्र का आरंभ सोमवार को हो रहा है। *सोमवार को शिव का दिन माना जाता है, और देवी पार्वती स्वयं भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं। अतः इस दिन आरंभ होने वाला नवरात्र शिव-शक्ति के मिलन का प्रतीक है।**”देवी का आगमन हाथी पर होना कई शुभ संदेश देता है” –**-समृद्धि का प्रतीक :* हाथी ऐश्वर्य और वैभव का द्योतक है।*-धैर्य और शक्ति का प्रतीक :* हाथी संयमित, शक्तिशाली और स्थिर गति से चलता है, यह संदेश देता है कि जीवन में संतुलन और धैर्य आवश्यक है।*-बुद्धि और स्मृति का प्रतीक :* हाथी की स्मरण शक्ति अद्भुत होती है। यह हमें संकेत देता है कि इस नवरात्र में हम अपने अतीत से शिक्षा लेकर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करें।*”देवी के नौ रूप और जीवन का क्रमिक विकास”*नवरात्र के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना के लिए समर्पित हैं। हर दिन साधक के जीवन में नई चेतना और शिक्षा का संचार करता है।
*1. शैलपुत्री* – स्थिरता और पवित्रता का संदेश।*2. ब्रह्मचारिणी* – तपस्या और आत्मबल का प्रतीक।*3. चन्द्रघंटा* – सौंदर्य और वीरता का संगम।*4. कूष्मांडा* – सृष्टि की अधिष्ठात्री, सृजन की शक्ति।*5. स्कन्दमाता* – मातृत्व और करुणा का भाव।*6. कात्यायनी* – दुष्ट शक्तियों का संहार करने वाली।*7. कालरात्रि* – अंधकार का नाश और भय का अंत।8. महागौरी – निर्मलता और कोमलता का प्रतीक।*9. सिद्धिदात्री* – सिद्धियों और पूर्णता की देवी।इन *नौ रूपों* की उपासना साधक को अज्ञान से ज्ञान, दुर्बलता से शक्ति और सीमाओं से पूर्णता की ओर ले जाती है।
*”नवरात्र की समकालीन प्रासंगिकता”*
आज की व्यस्त जीवनशैली में नवरात्र हमें आत्मविश्लेषण का अवसर देता है। यह केवल अनुष्ठानिक पर्व न होकर मानसिक शुद्धि और आत्मिक नवीनीकरण का माध्यम है।*1. परिवार के लिए* – यह पर्व संयुक्त परिवारों की परंपरा को जीवित रखता है, एक साथ पूजन और उत्सव से रिश्ते प्रगाढ़ होते हैं।*2. महिलाओं के लिए* – नवरात्र नारी शक्ति का उत्सव है। आधुनिक भारत में महिलाएँ समाज के हर क्षेत्र में नई ऊँचाइयाँ छू रही हैं। देवी की उपासना उन्हें और भी सशक्त बनाती है।*3. समाज के लिए* – यह पर्व सबको जोड़ता है। जाति, वर्ग या धर्म से ऊपर उठकर सब एक स्वर में “जय माता दी” कहते हैं।*4. राष्ट्र के लिए* – नवरात्र का संदेश है कि विकास केवल आर्थिक नहीं, बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के साथ होना चाहिए।*”भारत में नवरात्र की विविधता”*नवरात्र का स्वरूप पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में दिखाई देता है –*1) पश्चिम बंगाल* में यह दुर्गा पूजा के रूप में भव्य पंडालों और मूर्तियों के साथ मनाया जाता है।*2) गुजरात* में गरबा और डांडिया रास से पूरी रात गाँव-शहर झूम उठते हैं।*3) महाराष्ट्र* में घरों में घटस्थापना और उपवास की परंपरा है।*4) दक्षिण भारत में “बॉम्बई गोलू”* अर्थात गुड़ियों की सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।*5) उत्तर भारत में रामलीला और दशहरा पर्व* के साथ यह उत्सव चरम पर पहुँचता है।*”यह विविधता दर्शाती है कि देवी एक ही हैं, परंतु उनकी उपासना की शैली अनगिनत हो सकती है।”**”नवरात्र के आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश”*नवरात्र की सबसे बड़ी शिक्षा यह है कि हम अपने भीतर के *”महिषासुर”* को परास्त करें। यह महिषासुर कभी क्रोध, कभी लोभ, कभी अहंकार या कभी ईर्ष्या के रूप में हमारे भीतर बैठा होता है। नौ दिनों का साधना-क्रम हमें इन विकारों से मुक्त होने और आत्मबल को जाग्रत करने का अवसर देता है।2025 में जब देवी हाथी पर सवार होकर आ रही हैं, तब संदेश स्पष्ट है – *”सद्भाव, संतुलन और सामूहिक शक्ति से हम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हैं।”**”नवरात्र और आधुनिक जीवन”*आज जब प्रदूषण, सामाजिक विषमता और मानसिक तनाव जैसी चुनौतियाँ हमारे सामने हैं, तब नवरात्र हमें समाधान की दिशा भी दिखाता है –*1) उपवास :* शरीर को शुद्ध करता है, स्वास्थ्य को संतुलित रखता है।*2) दीप प्रज्वलन :* अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक है।*3) दान और सेवा :* समाज के वंचित वर्ग तक समृद्धि पहुँचाने का मार्ग है।*4) सांस्कृतिक आयोजन :* लोक कला और परंपराओं को जीवित रखने का माध्यम है।*”आज के युग में हम नवरात्र को पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य से भी जोड़ सकते हैं”।* जैसे –1) *एक पौधा लगाना* और उसकी देखभाल करना।2) *किसी बालिका* की शिक्षा का खर्च उठाना।3) *रक्तदान या स्वास्थ्य सेवा में* सहयोग देना।इस प्रकार नवरात्र हमारे लिए केवल पूजा का पर्व नहीं बल्कि समाज निर्माण का अवसर भी है।*”नवरात्र 2025 – नवचेतना का आह्वान”*22 सितंबर से 1 अक्टूबर 2025 तक चलने वाले इन नौ दिनों को हम केवल उत्सव के रूप में न मनाकर, इन्हें आत्म-परिवर्तन और समाजोत्थान का माध्यम बनाएं। माँ दुर्गा का हाथी पर आगमन हमें यह विश्वास दिलाता है कि आने वाला समय समृद्धि और शांति लेकर आएगा, यदि हम सब मिलकर धर्म, सत्य और करुणा का मार्ग अपनाएँ।आइए, इस नवरात्र हम संकल्प लें –*1) परिवार में प्रेम और सम्मान बढ़ाएँ।**2) नारी शक्ति को और सशक्त करें।**3) समाज में सद्भाव और एकता लाएँ।**4) प्रकृति की रक्षा करें।**5) आध्यात्मिक मूल्यों को जीवन में उतारें।**”शक्ति का अनंत प्रकाश”*नवरात्र कोई नौ दिन का पर्व भर नहीं है। यह जीवन की निरंतर साधना है। माँ दुर्गा का संदेश है – *”अंधकार चाहे जितना भी गहन हो, एक दीपक उसे मिटाने के लिए पर्याप्त है।”*इस वर्ष जब हम माता का स्वागत करेंगे, तो यह केवल पूजा-अर्चना नहीं बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरने और जीवन को नया अर्थ देने का अवसर होगा। माँ के चरणों में प्रार्थना है कि वे “हम सबको बल, बुद्धि, करुणा और समृद्धि प्रदान करें।”*”जय माता दी। जय शक्ति। जय भारत।”*✨🙏✨✍️ “सुशील कुमार सुमन”अध्यक्ष, आईओएसेल आईएसपी, बर्नपुर*#