पालघर की घटना पर प्रकाश चन्द्र बरनवाल’वत्सल’ की कविता
भारतीय संस्कृति पर कैसा, हुआ कुठाराघात है।
पालघर में संतों की हत्या, सोची-समझी घात है।
हत्यारों का फांसी से कम, दंड नहीं स्वीकार्य है।
जिसने हत्या हित उकसाया, ज्यादा जिम्मेदार है।।
राष्ट्र अस्मिता के संचेतक, साधू – संत समाज हैं।
परहित जिनका जीवन अर्पित, भारत के सरताज हैं।।
उद्धव तुमको कसम राष्ट्र की, ‘कुल – गौरव – ठाकरे’ की।
जिनने बीहड़ पथ चयन किया, गौरवान्वित संस्कृति की।।
साधु – संत की इज्जत करना, कौन तुम्हें सिखलाए।
हिन्दुत्व तुम्हारा कुल परिचय, रक्त – कणों में समाए।।
स्वार्थ तुला के वशीभूत हो, अगर विश्वास डिगाया।
पाँच वर्ष के बाद तुम्हारा, यह राजमुकुट छिनाया।।
स्वस्थ प्रशासन, विधि संरक्षण, लोकतंत्र का प्राण है।
जिसने अनुपालन नहीं किया, मुजरिम है, गद्दार है।।
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल