प्रकृति का अपमान
दीपिका मुराव
आसनसोल
आज धरती बनी अभिशाप है
प्रकृति दे रही हैं सजा,
फिर भी न समझ रहा इंसान है,
न जाने क्यों,
क्रुद्ध हो गया मानव जात ,
फैला रहा सिर्फ पाप है।
ले रहा है जान मासूम से जानवरो का
न पसीज रहा है इनका ह्रदय
न जाने कैसा उनका ज्ञान है।
फिर भी समझ नहीं पा रहे हैं ये मानव
यहीं तो प्रकृति का अपमान है।
प्रकृति ले रही हैं अपना बदला,
हो रहा दुनिया का विनाश है।
अब तो समझ जाओ मानव,
तुमने किया प्रकृति का अपमान है