रक्षाबंधन विशेष: अक्षत कुमकुम दीप सुमन से, थाली आज सजाई है
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल
(वर्ण मात्रिका 16, 14)
अक्षत कुमकुम दीप सुमन से, थाली आज सजाई है।
दूर देश से भैया आए, खुशी हृदय में छाई है।।
तरह – तरह की मधुर कामना, बहना मन संजोए है।
भैया को राखी पहनाने, स्वयं उसने बनाई है।।
उसे याद है बचपन में वह, खूब शरारत करता था।
जब डोली पर विदा हुई मैं, सबसे ज्यादा रोया था।।
मेरा चंचल मन रो – रो कर, उस पल शपथ दिलाया था।
‘रक्षाबंधन’ भूल न जाना, कह कर गले लगाया था।।
उस दिन से ही इंतजार मैं, बस इस पल का करती हूँ।
भैया स्वस्थ रहें जीवन में, प्रभु से वंदन करती हूँ।।
भैया अपना वचन निभाने, इस अवसर पर आते हैं।
तरह – तरह के साज़ साथ ले, मन मेरा हर्षाते हैं।।
नहीं चाहिए साज़ हमें कुछ, स्नेह – सुमन आकर देना।
रक्षाबंधन की गरिमा को, मर्यादित भैया करना।।
आशा का यह दीप हृदय से, कभी नहीं बुझने देना।
रक्षाबंधन के उत्सव को, सदा याद भैया रखना।।
अक्षत कुमकुम दीप सुमन से, श्रद्धा ज्ञापित करती हूँ।
शत – शत नमन और वंदन है, अर्पित तुझको करती हूँ।।