ASANSOLसाहित्य

बदलते परिवेश में बदलती परिभाषा

प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल

prakash
प्रकाश बरनवाल

      पिता ने अपने सभी लड़कों को बुलाकर पास बिठाया और एक लकड़ी का गट्ठर देकर उन्हें बारी - बारी से तोड़ने को कहा, परन्तु किसी लड़के से लकड़ी का गट्ठर नहीं टूटा, फिर पिता ने लकड़ी के गट्ठर से एक - एक लकड़ी निकाल कर जब अपने लड़कों को दिया तो सबों ने उसे सहज ही तोड़ दिया। पिता ने बच्चों को सीख दी कि, इस तरह इकट्ठे मिलकर रहोगे तो कोई तुम्हरा कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएगा, और यदि अकेले - अकेले रहोगे तो दुनिया तुम्हें तोड़ देगी। इसी बीच उनके बेटों में से एक बेटे ने उठकर कहा ' पिताजी जमाना बदल गया है, जमाने के साथ परिभाषाएँ भी बदल गई हैं। मैं आपको अपना जवाब एक माह बाद दूँगा। 
          एक माह के पश्चात पिता ने फिर सभी बेटों को बैठाया और उस लड़के से अपना विचार रखने को कहा। उसने दो गमला सामने लाकर रखा। एक गमले में चार - पाँच पौधे लगे हुए थे, सबके सब दुबले-पतले थे, किन्तु दूसरे गमले में एक पौधा लगा हुआ था जो बाकी के पौधों से मजबूत भी था और उसके विकास की रफ्तार भी तेज थी। उसने कहाँ जहाँ सभी इकट्ठे एकसाथ हैं, सब कमजोर, दुबले हैं, और जो अकेला है, मजबूत है, उसकी उन्नति का रफ्तार भी अन्य की तुलना में ज्यादा है।
         पिता बेटे के तर्क के आगे निरुत्तर थे।

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