“कुण्डलिया”
हिन्दी को सम्मान दें, खुद पाएं सम्मान।
हिन्दी की ले तूलिका, कवि भर देता प्राण।।
कवि भर देता प्राण, रंग छंदों का भरकर।
बन जाती पहचान, सुरभि लय ताल मनोहर।।
हिन्दी हो पहचान, राष्ट्र गौरव है हिन्दी।
हम सब की पहचान, तन, मन, प्राण है हिन्दी।।
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल