निस्वार्थ सेवा भाव ही कामयाबी का मूलमंत्र
बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता: कोरोना महामारी के इस विपत्ति काल में बहुत सी चीजें देखने को मिली। हजारों की जाने चली गई, लाखों लोग बीमार पड़े हैं। हमारी दुनिया एकदम से बदल गई जो इनसे बचे हैं उनकी जीवनशैली बदल गई।




सभी का जीवन अस्त व्यस्त हो गया और सबसे अधिक छोटे बच्चों का हो गया उनका स्कूल जाना बंद हो गया, मैदानों में खेलना बंद हो गया, दोस्तों से मिलना जुलना बंद हो गया सब अपने घरों में कैद हो गए।
इन सबके बीच एक ऐसे शख्स, शिक्षक, कोरोना योद्धा की चर्चा करेंगे जिसने अपने कामों से शिक्षक समाज का मान बढ़ाया और सभी के लिए प्रेरणास्रोत बने और अपने अंचल को गौरवान्वित भी किया। वो और कोई नहीं विनय रजक जी है।
विनय रजक गोपालपुर निवासी संध्या देवी फ्री प्राइमरी स्कूल, कलिकापुर में कार्यरत एक शिक्षक है और वेस्ट बंगाल तृणमूल प्राइमरी शिक्षक समिति के सक्रिय सदस्य हैं। लॉकडाउन के तीन महीना बीत जाने के बाद जब इनको घर में मन नहीं लगने लगा

तब इन्होंने समाज के गरीब बच्चों के लिए कुछ करने की ठान ली। अमीर घरों के बच्चे या इंग्लिश मीडियम में पढ़ने वाले बच्चे कुछ ना कुछ पढ़ाई तो कर ही रहे थे लेकिन जो गरीब बच्चे थे उनके पास ना तो स्मार्टफोन था ना नेट पैक, ऑनलाइन से पढ़ाई उनके बस की बात नहीं थी उनका पढ़ाई से नाता टूट चुका था।
तब विनय रजक WBTPTA के स्टेट प्रेसिडेंट अशोक रूद्र से प्रेरणा पाकर इन बच्चों के लिए जून महीने से अपने सामाजिक कार्यों के सफर की शुरुआत करते हैं। सबसे पहले वे आसनसोल बर्नपुर इलाके के ऐसे बस्ती या मोहल्ला का चुनाव करते हैं जहां पर गरीब बच्चे ज्यादा रहते हैं।
वह उन बस्तियों में जाकर वहां के लोगों से मिलकर,40-50 बच्चों को इकट्ठा कर पढ़ाने के लिए बैठ जाते। बैठने का स्थान निर्धारित नहीं होता था कहीं किसी क्लब में, कहीं पेड़ के नीचे, कहीं किसी के बड़े बरामदे पर अपना क्लास चलाते थे। इन बच्चों में सभी प्राइमरी स्कूल के ही बच्चे होते थे

चाहे वह किसी भी मीडियम के क्यों ना हो। इन बच्चों पर वे 3 घंटे का समय देते थे और इन 3 घंटों में बच्चों के स्कूल का कोर्स पूरा करवाना,GK पढ़ाना, सभी को ड्राइंग करवाना, शारीरिक शिक्षा, कोरोना काल में कैसे रहा जाए ये बतलाना, पहाड़ा याद करवाना, बच्चों को खेलाना यह सब कार्यक्रम चलता था।
कार्यक्रम के लिए जरूरत की सारी चीजें जैसे कॉपी, कलम, रबड़ ,पेंसिल, कलर पेंसिल, मास्क, सेनीटाइजर, ड्राइंग के लिए चार्ट पेपर, इत्यादि बाजार से वे खुद खरीद कर लाते थे और बच्चों में बांट देते । कार्यक्रम की समाप्ति पर वे बच्चों को बिस्कुट केक चॉकलेट का भी वितरण करते थे। इस तरह का कार्यक्रम हर मोहल्ले में होने लगा चारों ओर से उनको इस नेक काम के लिए प्रशंसा मिलने लगी।
कई समाचार पत्रों में इनके बारे में लिखा गया। हीरापुर सर्कल के एसआई श्री अरिजीत मंडल ने इनकी खूब प्रशंसा की और मदद का आश्वासन भी दिया।52 नंबर वार्ड की consillor बबीता दास ने भी इनकी कामों की प्रशंसा की और मदद भी की। आसपास के संस्थाओं ने इन को सम्मानित भी किया। आसनसोल नगर निगम के MMIC श्री अभिजीत घटक ने भी इन को सम्मानित किया।
शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है वो सभी को ज्ञान देता है सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायनों में कहा जाए तो शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अंत तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता है। तभी शिक्षक को समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है।
सेवा ना केवल मानव जीवन की शोभा है अपितु यह भगवान की सच्ची पूजा भी है। भूखे को भोजन देना, प्यासे को पानी पिलाना, विद्या रहित को विद्या दान देना ही सच्ची मानवता है। सेवा भाव ही मनुष्य को पहचान बनाती है और उसकी मेहनत को चमकाती हैं।
विनय रजक जी मेरे परम मित्र और सहयोगी हैं उनके सफर का आज 100वां दिन है और यह शिक्षक समाज के लिए गर्व की बात है उनको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं देता हूं और उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।
यह आर्टिकल /स्टोरी विनय रजक जी को समर्पित है।

मुकेश झा, लेखक