“पुण्य डगर के पथिक बनो जी, द्वेष कपट मन से त्यागो।
विषय :- एक पंक्ति पर कविता
पथ कितना ही जटिल विकट हो,
मन विचलित कभी न करना।
मानव – तन पाया है प्रभु से,
नित सत्य राह पर चलना।।
पुण्य डगर के पथिक बनो तुम,
सार्थक हो हर सपना।
जीवन से कुछ पल का नाता,
मिथ्या अभिमान न करना।।
जागो मेरे भाई जागो,
अभिमान हृदय से त्यागो।
पुण्य डगर के पथिक बनो जी।
द्वेष कपट मन से त्यागो।।
मानवता की कर्मभूमि पर,
अपनी इक पहचान रहे।
मात पिता परिजन पुरजन का,
प्रभु ! मुझ पर विश्वास रहे।।
गैरों की खुशियों की खातिर,
सदा हृदय उच्छ्वास रहे।
दीन दुखी जन की सेवा हित,
अर्पित तन – मन प्राण रहे।।
जागो मेरे नौजवान तुम,
कलुषित भावों को त्यागो।
पुण्य डगर के पथिक बनो जी,
द्वेष कपट मन से त्यागो।।
शिक्षा का आशय हो जग में,
नित संस्कार सृजन करना।
अनुशासन पालन करने हित,
राष्ट्र बीज को नित बोना।।
गौरवमय अतीत की शिक्षा,
से नित उत्प्रेरित करना।
साधक बन कर करें तपस्या,
पूरा होगा तब सपना।।
जागो मेरे भाई जागो,
अभिमान हृदय से त्यागो।
पुण्य डगर के पथिक बनो तुम,
द्वेष कपट मन से त्यागो।।
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल