RANIGANJ-JAMURIAसाहित्य

Raniganj में ही विद्रोही कवि काजी नजरुल इस्लाम ने ग्रहण की थी शिक्षा

कवि नज़रुल की स्मृति आज ही प्रेरणा देती है

विद्रोही कवि काजी नज़रुल इस्लाम ( Kazi Nazrul Islam ) जो कि बांग्लादेश के राष्ट्रकवि भी हैं उनकी जन्मभूमि आसनसोल के चुरुलिया में है उस महापुरुष को याद करते हुए यह विशेष लेख शिल्पांचल के वरिष्ठ पत्रकार विमल देव गुप्ता की कलम से
#####÷÷विमल देव गुप्ता÷÷÷÷###
रानीगंज कोयलांचल सिलपंचल के प्रमुख शहर रानीगंज मैं भी कवि साहित्यकार नज़रुल इस्लाम की स्मृति आज भी याद दिलाती है। वह शिक्षण संस्थान एवं गार्डन आज भी मौजूद है।
1856 में ईश्वर चंद्र विद्यासागर की विशेष पहल पर सियार सोल राज हाई स्कूल की स्थापना हुई थी। स्कूल अंग्रेजी माध्यम का था। जो आज राज्य सरकार के अनुमोदन पर बंगला माध्यम से चल रही है।यहां से कवि काजी नज़रुल इस्लाम जैसे विश्व प्रसिद्ध महापुरुष ने शिक्षा ग्रहण की। आज भी उनकी स्मृति स्कूल प्रांगण में है।

भले ही आज समय अनुकूल भव्य रूप धारण कर ली है लेकिन उस समय की याद वह पुरानी मंजिल शिशु उठाए खड़ी है। बताया जाता है कि क्रांतिकारियों का भी यह एक सुरक्षित स्थान था। यहां से क्रांतिकारी तैयारी कर अंग्रेज हुकूमत को मुंह तोड़ जवाब दिया करता था। उनकी स्मृति में स्कूल प्रांगण के मुख्य द्वार के सामने भव्य कलाकृति पर आधारित मूर्ति है जो क्रांतिकारी कवि नज़रुल इस्लाम का याद दिलाती है। जगरनाथ गार्डन जो वर्तमान में दमकल विभाग का कार्यालय है जहां वह अक्सर बैठकर कविता लिखा करते थे। इन तमाम पहलुओं को देखते हुए तत्कालीन सांसद हराधन राय ने उनके जन्म शताब्दी के उपलक्ष पर रानीगंज के मुख्य द्वार शिशु बागान मोर पर एक भव्य स्टेचू बनवाए थे।


उनके स्मृति में बनी चूरुलिया नजरुल हाई स्कूल,नजरुल अकैडमी, उनका निवास स्थान और मकबरा चूरुलिया गांव में स्थापित है।
वर्ष 1999 में उनके सत वार्षिकी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई एवं तत्कालीन केंद्रीय मंत्री वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, मंत्री स्वर्गीय प्रमोद महाजन यहां पहुंचकर नजरुल एकेडमी का उद्घाटन किए थे। आसनसोल मेंउनकी स्मृति में काजी नज़रुल इस्लाम विश्वविद्यालय का स्थापना हुआ। वहीं दूसरी ओर काजी नज़रुल इस्लाम के नाम से अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा रानीगंज विधानसभा क्षेत्र के अंडाल में स्थापित की गई।


काज़ी नज़रुल इस्लाम का जन्म 24 मई 1899 को पश्चिम बंगाल के जमुरिया के पास एक छोटा सा गांव चुरुलिया में हुआ था। उनका मृत्यु 29 अगस्त, 1976, बांग्लादेश में हुआ था।
एक मुस्लिम तालुकदार घराने में थे। घर का माहौल पूरी तरह मज़हबी था। उनके पिता काज़ी फकीर अहमद इमाम थे।जो एक मस्जिद की देख भाल करते थे। जब वो सिर्फ 10 साल के थे, उनके पिता की मौत हो गई। पिता के स्थान पर उसी मस्जिद में काम करने लगे। मस्जिद में. बतौर केयरटेकर अर्थात अज़ान देने का काम भी उनके जिम्मे था। इसके अलावा वो मदरसे के शिक्षक के काम भी करते थे।अपनी तालीम भी इस दौरान उन्होंने जारी रखी।


कवि नजरूल के संदर्भ में विद्वानों का कहना है कि वह संगीतज्ञ और दार्शनिक थे। उन्हें वर्ष 1960 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था। नज़रुल ने लगभग तीन हज़ार गानों की रचना की और साथ ही अधिकांश को स्वर भी दिया। इनके संगीत को आजकल ‘नज़रुल संगीत’ या “नज़रुल गीति” नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं नजरुल को प्रमिला नाम की हिंदू लड़की से प्रेम था। दोनों धर्मों के कट्टर लोगों के भारी विरोध के बावजूद उन्होंने यह शादी की। दिलचस्प है कि नजरुल ने भक्ति साहित्य को जहां कई इस्लामिक मान्यताओं वाली रचनाएं दीं, वहीं देवी दुर्गा की भक्तिमें गाया जाने वाला श्यामा संगीत और कृष्ण गीत-भजन की दुनिया को भी उन्होंने समृद्ध किया। यही वजह है कि उन्हें हिंदू मुसलमान दोनों पक्षों में उनके चाहने वाले हैं।

उन्होंने उल्लेख भी किया है
“मैं हिंदुओं और मुसलमानों को बर्दाश्त कर सकता हूं, लेकिन चोटी वालों और दाढ़ी वालों को नहीं. चोटी हिंदुत्व नहीं है. दाढ़ी इस्लाम नहीं है. चोटी पंडित की निशानी है. दाढ़ी मुल्ला की पहचान है। ये जो एक दूसरे के बाल नोचे जा रहे हैं, ये उन कुछ बालों की मेहरबानी है, जो इन चोटियों और दाढ़ियों में लगे हैं। ये जो लड़ाई है वो पंडित और मुल्ला के बीच की है. हिंदू और मुसलमान के बीच की नहीं।किसी पैगंबर ने नहीं कहा कि मैं सिर्फ मुसलमान के लिए आया हूं, या हिंदू के लिए या ईसाई के लिए आया हूं उन्होंने कहा, “मैं सारी मानवता के लिए आया हूं, ।

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