नवरात्रि आत्म मंथन एवम् मन को स्रोत में वापस लाने का समय है : श्री श्री रविशंकर
नवरात्रि का सार : गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
हम यह जानते हैं कि देवी ने किस प्रकार से भैंसे ( महिषासुर ) का नाश किया था।यहां पर भैंसा
धूम्रलोचन है ( महिषासुर के समान आलसी,जिसकी आंखों पर छोटी मानसिकता के बादल छाए हुए हैं)।केवल देवी ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश की सामूहिक ऊर्जा के साथ इस भैंसे का नाश कर सकती हैं।जिस प्रकार से एक बच्चा जन्म लेने के लिए नौ महीने का समय लगाता है,उसी प्रकार से देवी नौ दिन का विश्राम देती हैं और दसवें दिन विशुद्ध प्रेम और भक्ति का जन्म होता है,जिसके द्वारा देवी आलस्य और सुस्ती के भैंसे पर विजय प्राप्त करती हैं।
नवरात्रि आत्म मंथन एवम् मन को स्रोत में वापस लाने का समय है।देवी मां के ६४ संवेग हैं,जिनका सूक्ष्म जगत पर आधिपत्य है।जो सभी प्रकार के भौतिक एवम् आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती हैं।ये संवेग जागृत चेतना का अंश हैं।इन नौ रात्रि में उन दिव्य संवेगों को फिर से जगाने और अपने जीवन की अंतर्तम गहराई का उत्सव मनाया जाता है।
आप अपने स्रोत में किस प्रकार से वापस जाते हैं?उपवास,प्रार्थना,मौन और ध्यान के द्वारा एक साधक अपने स्रोत में वापस आता है। उपवास शरीर का शुद्धिकरण एवम् निर्विषीकरण करता है और आपके पाचन अंगों को थोड़ा विश्राम प्रदान करता है।मौन से भाषा की शुद्धि होती है और लगातार बड़बड़ाने वाले मन को विश्राम मिलता है और ध्यान व्यक्ति को अपने अस्तित्व की गहराई में ले जाता है।
इन नौ दिनों में हम तीन मौलिक गुणों का भी अनुभव करते हैं,जिससे मिलकर यह ब्रह्माण्ड बना है।ये तीन गुण हमारे जीवन को शासित करते हैं।हम इन गुणों को पहचान करकर उन पर मंथन करते हैं।नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण,अगले तीन दिन रजोगुण और अगले तीन दिन सतोगुण को दर्शाते हैं।हमारी चेतना तमोगुण और रजोगुण में रहती है और फिर अंतिम तीन दिनों में सतोगुण में खिल जाती है।जब जीवन में सत्व प्रभावी होता है,तो विजय प्राप्त होती है।विजयादशमी के दसवें दिन इस ज्ञान के सार को सम्मान देते हुए उत्सव मनाया जाता है।
धार्मिक संस्कारों का आरंभ गणेश जी,शुभ मंगल दाता की आराधना के द्वारा किया जाता है।फिर हम नवग्रह होम करते हैं ,जो नौ ग्रहों को तुष्टि प्रदान करता है।ये नौ ग्रह जीवन के नौ आयामों को प्रभावित करते हैं।यह होम ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को नष्ट करता है।सुदर्शन होम के द्वारा अज्ञान का नाश होता है और ज्ञान से परिपूर्ण नए जीवन का आरंभ होता है।इसका सार यह है कि जब भक्त कष्ट में होता है,तब भगवान सुदर्शन अपने भयंकर रूप में प्रकट होते हैं और भक्त की रक्षा करते हैं।
अष्टमी का दिन नवरात्रि में हुए सभी होम की चरम सीमा को दर्शाता है। चंडी होम आंतरिक जगत एवम् भौतिक संसार में विकसित होने में आने वाले अवरोधों को दूर करता है।देवी दुर्गा का महिमागान करते हुए ७०० श्लोकों का उच्चारण किया जाता है।देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक श्लोक का उच्चारण करते समय यज्ञ कुंड में १०८ बार अर्पण किया जाता है।चंडी होम समस्त सृष्टि में दिव्यता को पहचानना है।
नवरात्रि के नौवें दिन होने वाले ऋषि होम में भूतकाल,वर्तमान और भविष्य में आने वाले ऋषि मुनियों का सम्मान किया जाता है।
हमारे ऋषि मुनियों ने स्थूल संसार को सूक्ष्म संसार से जोड़ने के लिए इस सारी प्रक्रिया एवम् ज्ञान तंत्र की पहचान की,जिसमें जीवन का प्रत्येक पहलू अंतर्निहित एवम् सम्मानित है।इसे यज्ञ कहा जाता है।
इन नौ दिनों के दौरान कई यज्ञों का आयोजन किया जाता है।हमें इन होने वाली सभी पूजाओं और अनुष्ठानों का अर्थ समझने की आवश्यकता नहीं है।हमें केवल अपने हृदय और मन को खोलकर रखना है और वातावरण में उत्पन्न होने वाली तरंगों का अनुभव करना है।मंत्रोच्चारण के साथ साथ होने वाले धार्मिक संस्कारों और प्रथाओं के द्वारा हमारी चेतना का शुद्धिकरण एवम् उत्थान होता है।समस्त सृष्टि सजीव हो जाती है और हम हर एक चीज में मौजूद जीवन को पहचानने लगते हैं,जैसे कि बच्चे हर एक चीज को सजीव समझते हैं।
नवरात्रि के इन नौ दिनों में आपका मन दिव्य चेतना में डूब जाना चाहिए।जिस प्रकार से जन्म से पहले बच्चा नौ महीने तक मां के गर्भ में रहता है,उसी प्रकार से इन नौ दिन और नौ रातों में एक साधक को अपने भीतर जाना चाहिए और अपने स्रोत का स्मरण करना चाहिए।अपने आप से यह प्रश्न पूछें, ” मेरा जन्म कैसे हुआ? मेरा स्रोत क्या है?” आपको अपनी चेतना पर चिंतन करना चाहिए।इन नौ दिनों के उत्सव का अर्थ एक व्यक्ति को अपने भीतर ले जाना और उसका उत्थान करना है।