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Inflation Rate : महंगाई से राहत, अक्टूबर में खुदरा और थोक दोनों प्रकार की महंगाई में आई कमी

बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता : Inflation Rate: अक्टूबर में खुदरा और थोक दोनों प्रकार की महंगाई में कमी आई है। 14 नवंबर (सोमवार) को जारी सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि अक्टूबर में खुदरा और थोक मुद्रास्फीति में गिरावट दर्ज की गई। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में तीन महीने के निचले स्तर 6.77 प्रतिशत पर आ गई, जो सितंबर में 7.41 प्रतिशत थी। थोक मूल्य सूचकांक (WPI) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति अक्टूबर में 19 महीने के निचले स्तर 8.39 प्रतिशत पर आ गई, जो सितंबर में 10.7 प्रतिशत थी।



Key Points
-खुदरा महंगाई दर 7.41 % से घटकर 6.77 %
-थोक महंगाई दर 10.7 % से घटकर 8.39 %
-पिछले 19 महीने में थोक महंगाई दर का यह सबसे निचला स्तर है

सरकार ने बताया महंगाई में कमी का कारण

वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति दर में गिरावट मुख्य रूप से खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति में कमी के कारण है। उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति अक्टूबर में काफी कम होकर 7.01 प्रतिशत पर आ गई, जो सितंबर में दर्ज 8.6 प्रतिशत से कम है। सब्जियों, फलों, दालों, तेल और वसा की कीमतों में गिरावट ने खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।



“सरकार ने घरेलू आपूर्ति को स्थिर रखने और कीमतों में वृद्धि को रोकने के लिए गेहूं और चावल पर व्यापार संबंधी उपाय किए हैं। इन उपायों का प्रभाव आने वाले महीनों में और अधिक महत्वपूर्ण रूप से महसूस होने की उम्मीद है”, यह बात वित्त मंत्रालय ने ट्वीट में कही।



ग्रामीण, शहरी आंकड़े होते हैं तैयार

सांख्यिकीय मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में ग्रामीण क्षेत्रों में खुदरा महंगाई 6.98 प्रतिशत रही है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में यह 6.50 प्रतिशत रही है। इसके अलावा खाद्य वस्तुओं की महंगाई भी अक्टूबर में व घटकर 7.01 प्रतिशत रही है, जो इससे पहले सितंबर में 8.77 प्रतिशत थी।

RBI देश की अर्थव्यवस्था में कीमतों में स्थिरता रखने के लिए इस आंकड़े को देखता है। CPI में एक विशेष कमोडिटी के लिए रिटेल कीमतों को देखा जा सकता है। इन्हें ग्रामीण, शहरी और पूरे भारत के स्तर पर देखा जाता है। एक समयावधि के अंदर प्राइस इंडेक्स में बदलाव को सीपीआई आधारित महंगाई या फिर खुदरा महंगाई भी कहा जाता है।



क्या है CPI आधारित महंगाई

कंज्यूमर प्राइस इंडैक्स (CPI) पर आधारित महंगाई सामान और सेवाओं की खुदरा कीमतों में बदलाव को ट्रैक करती है, जिन्हें परिवार अपने रोजाना इस्तेमाल के लिए खरीदते हैं। महंगाई को मापने के लिए, अनुमान लगाया जाता है कि पिछले साल की समान अवधि के दौरान सीपीआई में कितने फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

थोक मुद्रास्फीति

अक्टूबर महीने में थोक महंगाई दर 10.7 % से घटकर 8.39 % आ गई है। 19 महीने में यह पहला मौका है जबकि थोक महंगाई दर Single Digit में रह गई है। इससे पहले मार्च 2021 में इससे कम थोक महंगाई दर 7.89 फीसदी देखी गई थी। अप्रैल, 2021 से थोक महंगाई दर लगातार 18 महीने तक double digit में यानी 10 फीसदी से अधिक रही थी।

थोक मुद्रास्फीति Wholesale Price Index (WPI) में गिरावट का कारण बताते हुए सरकार ने कहा कि गिरावट का मुख्य कारण मशीनरी और उपकरणों को छोड़कर खनिज तेल, मूल धातु, गढ़े धातु उत्पादों की कीमतों में गिरावट है; जैसे कपड़ा; अन्य गैर-धातु खनिज उत्पाद, खनिज, आदि।

WPI आधारित महंगाई का आम आदमी पर असर

थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहना चिंता का विषय होता है। ये ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर को प्रभावित करती है। यदि थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक उच्च रहता है, तो प्रड्यूसर इसे कंज्यूमर्स को पास कर देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है।

जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि, सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कर सकती है, क्योंकि उसे भी सैलरी देना होता है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है।

महंगाई कैसे मापी जाती है?

भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल, यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। ये कीमतें थोक में किए गए सौदों से जुड़ी होती हैं।

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