Mission Raniganj : Mahabir Colliery Accident में मौत को मात देकर लौटे मजदूर हुए सम्मानित
दुर्घटना मे मारे गए अपने 6 मजदूर साथियों के सम्मान मे एक समारक बनाने की अपील
बंगाल मिरर, एस सिंह, आसनसोल : पश्चिम बंगाल आसनसोल के रानीगंज स्थित महाबीर कोलियरी मे 13 नवंबर 1989 को देर रात हुई खान दुर्घटना में मारे गए 6 मजदूरों को लेकर दुर्घटना में मौत को मात देकर जीवित लौटे उन 65 मजदूरों मे से एक जगदीश कहार शुक्रवार को आसनसोल के मनोज सिनेमाघर अपने परिवार के साथ फ़िल्म मिशन रानीगंज देखने पहुँचे, जहाँ मनोज सिनेमा हॉल के मालिक मनोज दास व बिनोद दास सहित सिनेमाघर के मैनेजर इंद्रमोहन मिश्रा ने फूलों का गुलदस्ता देखकर सम्मानित किया, मिशन रानीगंज महाबीर कोलियरी भूमिगत खान मे घटी सच्ची घटना पर आधारित है, इस फ़िल्ममे देश का सबसे बड़ा और इतिहासिकरेसक्यू दिखाया गया है, जिस रेसक्यूमे कोयले के खदान मे फंसे 71 मजदूरों मे से 65 मजदूरों की जान तो बचा ली गई पर 6 मजदूरों ने खदान के अंदर ही जीने की आस मे मौत के मुहमे हमेशा -हमेशा के लिये समा गए, महाबीर कोलियरी मे घटी इस दर्दनाक घटना मे देश का सबसे बड़ा सेक्सेस फुल और इतिहासिकरेसक्यू कर 65 मजदूरों को खदान से सुरक्षित बाहर निकालने वाले इसीएल के इंजिनियर जसवंत सिंह गिल सुपर हीरो रहे, जिनकी दिलेरी और जाँबाजी की चर्चा आज भी पुरे विश्व मे है, हम बताते चलें की जब इसीएलमैंनेजमेंट के पास भूमिगत कोयले के 350 फिट गहरे खदान मे फंसे मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने का कोई रास्ता नही दिख रहा था तब जसवंत सिंह गिल ने खदान मे घुसकर मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिये बोरिंग होल के रास्ते कैप्सूल नुमा डोली बनाकर खदान के अंदर उतारने की सलाह अपने अधिकारीयों को दी, जसवंत सिंह के दीमागमे खदान के अंदर फंसे मजदूरों को बचाने के लिये उपजी देशी जुगाड़ का आइडिया अधिकारीयों थोड़े देर के लिये कुछ अटपटा लगा पर उनके पास मजदूरों को बचाने के लिये दूसरा कोई और रास्ता नही था, अधिकारियों ने जसवंत सिंह गिल के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया




अब सवाल था मजदूरों को बचाने के लिये खदान के अंदर उस कैप्सूल नुमा डोली से जायेगा कौन खदान के अंदर तेजी से बढ़ रही पानी के कारण कोई भी तैयार नही हुआ ना कोई सामने आया ऐसे मे जसवंत सिंह गिल ने अपनी जान की परवाह किये बगैर वह खदान मे अपने हाँथो से डिजाइन किये हुए कैप्सूल नुमा डोली से उतरने के लिये तैयार हो गए और खदान के अंदर उतर कर एक -एक कर खदान मे फंसे 65 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया बाकि के 6 मजदूरों के शव के साथ वह एक ऐसा समय था जो किसी के चेहरे पर ख़ुशी तो किसी के चेहरे पर ता उम्र गम दे गया वो गम जो शायद चाह कर भी कभी नही भर सकता वह गम था खदान मे फंसकर मरे उन 6 मजदूरों के परिजनों का जो खदान के ऊपर उन्हे जीवित लौटने की आस लगाकर टकटकी लगाए बैठे थे, जब उनकी लाशें निकली तो मानो उन 65 मजदूरों का खदान से जीवित निकलने का जो ख़ुशी लोगों के चेहरे पर था वह ख़ुशी गम मेतब्दीक हो गया जिस गम को याद कर महाबीर कोलियरी के पूर्व मजदूर जगदीश ने इसीएलमैंनेजमेंट से लेकर सरकारी महकमो के साथ -साथ तमाम उन सरकारी व गैर सरकारी समाजिक संस्थाओं के ऊपर एक बड़ा सवाल खड़ा करते हुए कहा की वह हाँथ जोड़कर देश के उन तमाम सिस्टमो से दुख के साथ यह यह अपील कर रहे हैं की खान दुर्घटना मे बचे 65 मजदूरों को सम्मानित किया गया उन्हे एक-एक हजार रुपए की पुरस्कार देते हुए पुरे देश का भ्रमण करवाया गया, पर उन मजदूरों के बारे मे कभी नही सोंचा गया जो मजदूर उस खदान मे जीवन और मौत की लड़ाई लड़ते -लड़ते मौत के आगे उन्होने अपने घुटने टेक दीये, खान दुर्घटना मे मारे गए उन मजदूरों के परिजनों को नियम के अनुसार इसीएलमे नौकरी और जो उचित मुवावजा मिलता है वह तो दे दिया गया, पर उनकी सहादत और बलिदानी की याद मे एक छोटा सा समारक तक नही बनाया गया,
ताकि आनेवाली जैनरेशन यह जान सके की रानीगंज स्थित महाबीर कोलियरी मे घटी खान दुर्घटना मे हुई इतिहासिकरेसक्यू के दौरान 65 मजदूरों को तो सुरक्षित बचा लिया गया पर उस रेसक्यूमे 6 मजदूरों ने अपनी जान गँवा दी, जगदीश ने यह भी कहा की आज उनके वह साथी मजदूर जीवित होते तो आज के दिन उनको दोगुनी ख़ुशी महसूस होती, उनके परिवार के लोग ठीक उनके परिवार के तरह ही गर्व करते जैसा की जगदीश के परिजन जगदीश के ऊपर करते हैं, हम बताते चलें की महाबीर खान दुर्घटना मे बचे 65 मजदूरों मे गिने चुने ही मजदूर बचे हैं जिनमे से दो मजदूर अब भी महाबीर कोलियरी इलाके मे अपने परिजनो के साथ उन यादों के सहारे अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं जिन यादों को वह भुलाए नही भूलते वह कहते हैं जगदीश को आज भी खदान के अंदर फंसे मजदूरों की चिखें मौत बनकर सामने आई पानी की वह लहरों की वह गूंजे सुनाई देती है, ऐसा लगता है की वह अब भी यह कहना चाहती हैं की खदान के अंदर कुछ ऐसा हुआ था जो नही होना चाहिये था, खदान के अंदर मौत बनकर बह रही वह लहरे बार -बार मुझे यह एहसास दिलाने का प्रयास कर्ती हैं की उस मनहूस रात मे जान बूझकर साक्षत मौत के साथ छेड़खानी की गई थी जिसका अंजाम पूरी दुनिया ने देखा