शाकम्भरी परिवार आसनसोल के तत्वाधान मे 10 वाँ माँ शाकम्भरी जयंती उत्सव 21 को
बंगाल मिरर, आसनसोल: गुरूवार को शाकम्भरी परिवार आसनसोल के तत्वाधान मे 10 वाँ माँ शाकम्भरी जयन्ती उत्सव का आयोजन स्थानीय सिघानियाँ भवन ,नेताजी सुभाष रोड ,आसनसोल मे आयोजित किया जा रहा है। जिसमें मनमोहक श्रृंगार, अखंड ज्योत, गजरा, चुनड़ी उत्सव, भजन संध्या, महाप्रसाद, सवामणी आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा ।
कार्यक्रम मे कोलकत्ता के सुविख्यात ओर शाकम्भरी जगत के लाडले पकंज भाई जोशी एवम् शाकम्भरी प्रेमी मैया की लाडली रानीगजं की सीतु राजस्थानी अपने सुमधुर भजन मैया को सुनायेगे
सनातन परंपरा के तहत एक व्यक्ति ईश्वर को ज्ञान, कर्म और भक्ति के कई मार्गों द्वारा पाने का प्रयास करता है लेकिन इनमें भक्ति सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर की भक्ति या फिर कहें उसकी साधना का सरल, सुगम और सुंदर माध्यम है कीर्तन। देवी-देवताओं के लिए किए जाने वाले इस कीर्तन से तन-मन और धन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और सुख-सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है।
भक्ति और एकाग्रता के लिए भजन और कीर्तन किए जाते हैं। भजन और कीर्तन से मन एकाग्र होता है। कहा जाता है कि एकाग्र मन से अगर भजन-कीर्तन किए जाते हैं तो भगवान प्रसन्न होते हैं और मान्यताएं पूरी होती हैं। इसके अलावा सही तरह से भजन और कीर्तन करने से व्यक्ति को रोगों तथा मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिलती हैं।
जब हम अपने आराध्य कुल देबी के नाम का जप करते हैं तो इसका प्रभाव सामान्य होता है, वहीं कीर्तन के दौरान श्रद्धा भक्ति की पराकाष्ठा के साथ किए जाने वाले मंत्र या भजन गायन या जप से उस पर ईश्वर की अद्भुत कृपा बरसती है। जहां पर कीर्तन होता है, वहां पर ईश्वर का वास रहता है। मान्यता है कि कीर्तन जितने अधिक लोगों के साथ और जितनी देर तक किया जाए, उतना ही प्रभावशाली होता है।
माता का बिशाल मन्दिर सकरायधाम मे स्थित है, श्री शाकंभरी माता का यह गाँव सकराय अब आस्था का केंद्र है।सुरम्य घाटियों के बीच बना शेखावाटी प्रदेश के सीकर जिले में यह स्थित है। यह मंदिर सीकर जिले से 51 की.मी. दूर अरावली की हरी भरी वादियों में बसा हुआ है। झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी के समीप यह मंदिर उदयपुरवाटी गाँव से 16 की.मी. की दूरी पर है। यहाँ के आम्रकुंज एवं निर्मल जल का झरना आने वाले भक्तों को मन मोहित कर लेता है। आरम्भ से ही इस शक्तिपीठ पर नाथ सम्प्रदाय का वर्चस्व रहा है,जो की आज भी कायम है।इस मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में किया गया था।