ASANSOLधर्म-अध्यात्म

शिक्षा के साथ संस्कार जरूरी : स्वामी आत्मप्रकाश जी

बंगाल मिरर, आसनसोल : आसनसोल  गौशाला में मुरारका परिवार की ओर एवं आसनसोल महावीर स्थान सेवा समिति के सहयोग से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानयज्ञ के चौथे दिन श्री कृष्ण जन्मोत्सव पर कथा हुई। कृष्ण जन्म की झांकी देख‌ भक्त भाव विभोर हो उठे।मौके पर चौथे दिन मुख्य अतिथि आसनसोल दक्षिण थाना के आईसी कौशिक कुंडू, महावीर स्थान सेवा समिति के सचिव अरुण शर्मा, कन्हैया शर्मा, सीताराम बगरिया, दीपक तोडी, बालकिशन मुरारका का पूरा परिवार, मोहन केशव भाई सहित पटेल परिवार, निर्मल बजाज, राजकुमार शर्मा, नारायण मुरारका, बाल कृष्णा मुरारका, सरस मुरारका, सरोज मुरारका, पंखुड़ी मुरारका, शुचि पोद्दार, सुमित्रा टेबरेवाल, स्वेता टेबरेवाल, कपूर अग्रवाल, नारायण मुरारका, पुरषोत्तम मुरारका, नीलम मुरारका, सोनल टेबरेवाल, राजू पोद्दार, अन्नु पोद्दार, महेश झुनझुनवाला, मधु झुनझुनवाला, निरंजन शास्त्री, कृष्णा पंडित, मंजू अग्रवाल, ओम प्रकाश शर्मा, महेश शर्मा, शियाराम अग्रवाल, रतन दीवान, मुकेश शर्मा, पूर्व पार्षद आशा शर्मा, प्रेमचंद केशरी, सज्जन जालुका, मुकेश पहचान, बासुदेव शर्मा, मनीष भगत, प्रकाश अग्रवाल, अक्षय शर्मा, रौनक जालान सहित सैंकड़ों महिलाएं व पुरुष भक्त उपस्थित थे।

स्वामी आत्म प्रकाश जी महाराज ने कथा में कहा कि शिक्षा के साथ संस्कार का होना अति आवश्यक होता है। आत्मा कभी नहीं मरता है। आत्मा अमर अविनाशी होता है। मानव जीवन का लक्ष्य है। आत्मा की प्राप्ति। गुरुजी ने समाज के लोगों से निवेदन किया कि चमत्कार में नहीं परना चाहिए।तपस्या सत्संग एवं पुण्य से जो लाभ प्राप्त होता है। वही साथ जायेगा। उन्होंने एक एक संत की कथा सुनाई।

उन्होंने कहा कि एक संत महात्मा उफनती गंगा नदी में खड़ाऊ पहनकर नदी के ऊपर से उस पार से इस पर चले आ रहे थे। महात्मा जी का एक शिष्य प्रतिदिन इस चमत्कार को देखता था। उससे बहुत प्रभावित हुआ। अपने गुरु जी को जाकर यह सारी बात बताई। गुरु जी ने कहा कल मैं भी देखने चलूंगा। दूसरे दिन शिष्य के साथ गुरु जी घाट पर गए। गुरु जी ने देखा वह महात्मा नदी के ऊपर उसपार से इसपार चले आ रहे हैं। गुरुजी ने उस महात्मा को हाथ जोड़कर अभिवादन किया और उनसे पूछा कि यह सिद्धि कितने दिन में प्राप्त हुई। उस महात्मा ने बताया मुझे पूरे 25 वर्ष लगे। तब गुरु जी ने उस महात्मा को और अपने शिष्य को नाव में बैठाकर नदी के उस पार ले गए और नाविक को 2 रुपया दिया। उस महात्मा से गुरुजी ने कहा जो काम 2 रुपया में हो सकता था उस काम में आपने 25 वर्ष लगा दिए।

इससे समाज का क्या भला होगा। यह बताइए संतों का काम समाज को संस्कार सिखाना है। चमत्कार दिखाना नहीं। गुरुजी ने चतुर्मास के उपलक्ष में एक बहुत ही सुंदर कथा सुनाए। भगवान विष्णु जब चतुर्मास में सयन करते हैं तो उस 4 महीने साधु संत समाज और भगत दिन-रात प्रभु का गुणगान करते है। इस संबंध में लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु से पूछा कि भगवान आप जब 4 माह सयन में रहते हैं तो यह लोग किसकी आराधना करते है। तब विष्णु भगवान ने कहा कि मैं सोता नहीं हूं सयन में मग्न रहता हूं।लक्ष्मी जी ने पूछा प्रभु आप किसका ध्यान करते है। तब प्रभु ने कहा मैं संत चीत और आनंद का ध्यान करता हूं जो मेरे ही भीतर है। सभी भक्तों को चमत्कार में न पाकर अपने अंदर के ध्यान में मगन रहना चाहिए।संसार में गुरु के बिना सब कुछ अधूरा है।

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