भगवान के दर्शन के लिए माया जाल को तोड़िए: स्वामी आत्मप्रकाश जी महाराज
बंगाल मिरर, आसनसोल : आसनसोल गौशाला में मुरारका परिवार के सानिध्य में एवं आसनसोल महावीर स्थान सेवा समिति के सहयोग से सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन बुधवार को कथावाचक स्वामी आत्म प्रकाश जी महाराज ने रुक्मिणी विवाह, समुंद्र मंथन और गजेंद्र मोक्ष पर कथा सुनायी। मौके पर महावीर स्थान सेवा समिति के सचिव अरुण शर्मा, बालकिशन मुरारका का पूरा परिवार, मोहन केशव भाई सहित पटेल परिवार, , राजकुमार शर्मा, नारायण मुरारका, बाल कृष्णा मुरारका, सरस मुरारका, सरोज मुरारका, पंखुड़ी मुरारका, शुचि पोद्दार, सुमित्रा टेबरेवाल, स्वेता टेबरेवाल, कपूर अग्रवाल, नारायण मुरारका, पुरषोत्तम मुरारका, नीलम मुरारका, सोनल टेबरेवाल, राजू पोद्दार, अन्नु पोद्दार, महेश झुनझुनवाला, मधु झुनझुनवाला, सुनीला अग्रवाल, राजू पोद्दार, निरंजन शास्त्री, कृष्णा पंडित, मंजू अग्रवाल सैंकड़ों महिलाएं व पुरुष भक्त उपस्थित थे।
भगवान के बाद यदि कोई प्यारा नाम है तो वह है मां। गुरुजी ने एक कथा सुनाई। जब तक मन में भाव नहीं आता, भगवान नहीं मिलते है। भागवत में गुरुजी ने कहा कि एक पंडित जी भांग का नशा करते थे। एक दिन रात्रि में उन्हे ससुराल जाने की इच्छा हुई। उनका ससुराल नदी उस पर था। पंडित जी भांग खाए एवं नाव पर बैठ कर नदी पार जाने के लिए रातभर नाव चलाये। जब सुबह हुई तो पंडित जी देखते हैं कि जैसा मेरा गांव है, वैसा मेरा ससुराल में भी है। जैसे मेरे गांव के लोग है। वैसे लोग यहां भी है। मेरे ससुराल में कितना बदलाव आ गया है।उ
तने में एक बुढा आदमी आया। पंडित जी ने बुढा आदमी को देखकर बोले वाह आपके जैसे ही एक दादा जी मेरे गांव में भी है। बुढा आदमी ने बोला पंडित जी आपके गांव वाला दादा जी हूं। दादाजी ने पंडित जी से पूछा रात में भांग खाए थे क्या। पंडित जी एनएस कहा कि हां भांग खाए थे। इसलिए रात में नाव की रस्सी खोलना भूल गए। नदी के पार नहीं जा सके। अपने गांव में ही रह गए। गुरुजी ने कहा कि हम सब लोग पंडित जी हैं। जो भांग के नशा में दिन रात माया के जाल में फंसे हुए हैं। जब तक माया रूपी जाल रस्सी नहीं तोरिएगा। तब तक भागवत भगवान का दर्शन होना मुश्किल है।