“एक और सुदामा !..” ‘सुमन’
“रघुनाथपुर, गोड्डा, बिहार के छोटे से गाँव में सत्यानारायण जी अपने परिवार के साथ बेहद गरीबी में रहते थे। उनकी पत्नी गंगा और एक बेटा आलोक ही उनका परिवार था। सत्यानारायण जी शारीरिक रूप से कमजोर थे, जिस कारण वे किसी कठिन काम को करने में असमर्थ थे। उनके परिवार की आजीविका मुख्य रूप से गाँव के दान-पुण्य और जजमानी से चलती थी। गाँव में जो पूजा-पाठ होता था, उससे मिलने वाले दान से ही उनके घर का गुजारा होता था। खेती-बाड़ी का भी ज्यादा साधन नहीं था, जो थोड़ी बहुत जमीन थी उसे उनकी पत्नी गंगा ही संभालती थीं।



आलोक का जन्म जैसे सत्यानारायण जी के घर में एक रोशनी लेकर आया था। जब वह पढ़ने की उम्र में आया, तो सत्यानारायण जी ने बड़ी मुश्किल से उसका दाखिला गाँव के सरकारी स्कूल में कराया। उनके पास किताबें खरीदने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी से एक पैसा भी उधार नहीं लिया। सत्यानारायण जी के स्वाभिमान ने उन्हें हमेशा ईमानदार बनाए रखा, चाहे कितनी भी मुश्किलें आई हों।

स्कूल में आलोक की मुलाकात एक टीचर से हुई, जिनका नाम था नरेश साह सर। नरेश साह सर, जो गोड्डा के रामला इलाके के रहने वाले थे, ने तुरंत ही आलोक की विलक्षण प्रतिभा को पहचान लिया। आलोक पढ़ाई में बेहद तेज था, जैसे उसका दिमाग किसी दीपक की तरह जगमगा रहा हो। वह हर विषय में शत-प्रतिशत अंक लाता और कक्षा में हमेशा आगे रहता। कक्षा में उसकी दोस्ती शमीम नाम के एक लड़के से हुई। शमीम पहले उस कक्षा का टॉपर हुआ करता था और दिल का भी बहुत अच्छा था। शमीम के पिता भी एक सरकारी स्कूल के शिक्षक थे और इसलिए वह शिक्षा का महत्व जानता था। धीरे-धीरे शमीम और आलोक की दोस्ती गहरी हो गई।
शमीम आलोक की पढ़ाई में उसकी मदद करता। जो भी किताबें शमीम पढ़ता, उसे अगले दिन आलोक को दे देता और आलोक उसे तुरंत समझ लेता। आलोक का दिमाग इतनी तेजी से काम करता था कि शमीम की किताबें और नोट्स पढ़ने के बाद वह अपनी समझ को और मजबूत कर लेता। इसी तरह सातवीं कक्षा तक आते-आते आलोक ने अपने ज्ञान का स्तर काफी ऊँचा कर लिया था।
जब आलोक आठवीं कक्षा में पहुँचा, तो स्कूल में एक नए शिक्षक सदानंद सर आए। उनके साथ उनका बेटा राधे नाथ भी उसी कक्षा में दाखिल हुआ। उस साल आलोक ने सभी विषयों में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त किए, लेकिन सह-शैक्षिक गतिविधियों में उसके अंक थोड़े कम थे, इस कारण वह कक्षा में दूसरे स्थान पर आ गया और राधे नाथ पहले स्थान पर। इस बात से राधे नाथ बहुत दुखी हो गया, क्योंकि वह जानता था कि असली टॉपर आलोक ही था। नरेश साह ने आलोक को समझाया कि ऐसी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान न दे और केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करे।
आलोक का अगला लक्ष्य था गोड्डा हाई स्कूल में नौवीं कक्षा में दाखिला लेना। इस स्कूल में दाखिले के लिए लगभग 3000-4000 बच्चों ने परीक्षा दी थी। परिणाम आया और आलोक ने उसमें 299/300 अंक लाकर सभी को चौंका दिया। गोड्डा हाई स्कूल में इससे पहले इतनी उच्चतम प्रवेश परीक्षा के अंक किसी ने नहीं पाए थे। उस समय आठवीं कक्षा का टॉपर रवि था, जो गोड्डा के एक प्रसिद्ध सर्जन अजीत बाबू का बेटा था। अजीत बाबू का सपना था कि उनका बेटा रवि दिल्ली के एम्स (AIIMS) में पढ़ाई करे। यह कहानी 1990 के दशक की है, जब एम्स में दाखिला बहुत कठिन था, केवल 50 सीटें थीं और यह प्रवेश परीक्षा किसी चुनौती से कम नहीं थी।
आलोक ने नौवीं कक्षा में फिर से टॉप किया और उसे छात्रवृत्ति मिलने लगी। सत्यानारायण जी और गंगा ने भी दिन-रात मेहनत करना शुरू कर दिया ताकि वे अपने बेटे की हर जरूरत को पूरा कर सकें। शमीम भी आलोक के साथ नौवीं में पढ़ रहा था और गर्व महसूस करता कि आलोक उसका दोस्त है। राधे नाथ भी हमेशा आलोक को प्रेरित करता और कहता, “भाई आलोक, तुम तो सच्चे रत्न हो।”
1992 में जब बिहार बोर्ड का परिणाम आया, तो आलोक ने राज्य में टॉप कर दिया। रवि ने भी अपने स्कूल में 80% अंकों के साथ प्रथम स्थान प्राप्त किया। राधनाथ और शमीम भी पास हो गए। रवि का दाखिला दिल्ली के प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान फिजिक्स टीचर (FIITJEE) में हो गया, और वह एम्स की तैयारी में जुट गया।
आलोक ने अपनी आर्थिक स्थिति के कारण गोड्डा कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ शमीम और राधे नाथ भी पढ़ रहे थे। एक दिन, गोड्डा की काली पूजा में आलोक की मुलाकात रवि से हुई। रवि ने उसे बताया कि एम्स के प्रवेश परीक्षा का फॉर्म 10 नवंबर 1991 को आने वाला है और उसकी फीस 700 रुपये है। आलोक के पास पैसे नहीं थे, तो रवि ने उसे 200 रुपये दिए, शमीम ने 100 रुपये, और माँ गंगा ने एक बकरी बेचकर 200 रुपये जुटाए। नरेश sir ने भी 300 रुपये दिए, और इस तरह आलोक ने परीक्षा का फॉर्म भरा।
अगस्त 1992 में जब एम्स (AIIMS) का प्रवेश परीक्षा हुआ, तो आलोक ने परीक्षा केंद्र पटना में जाकर यह परीक्षा दी। परीक्षा कठिन थी, लेकिन आलोक ने 87% प्रश्नों का उत्तर दे दिया। उसके मन में थोड़ी आशंका थी कि शायद वह सफल न हो पाए। परीक्षा के बाद दुर्गा पूजा में आलोक और रवि की फिर से मुलाकात हुई, जहाँ उन्होंने एक-दूसरे से अपने प्रयासों के बारे में बात की।
अक्टूबर का महीना था और दिवाली के दिन एम्स के परिणाम की घोषणा होनी थी। रवि, आलोक, शमीम और राधे नाथ सभी परिणाम देखने के लिए एकत्रित हुए। परिणाम अखबारों में प्रकाशित हुआ था, लेकिन आलोक को अपना नाम नीचे के रैंक में देखने की आदत थी, इसलिए उसने ऊपर से नहीं देखा। उसे लगा कि उसका चयन नहीं हुआ है, क्योंकि परिणाम उसके हिसाब से बहुत कठिन था।
तभी रवि ने परिणाम को ध्यान से देखा और चिल्लाते हुए कहा, “आलोक, तुमने दूसरे स्थान पर जगह बनाई है! तुम एम्स में दूसरे स्थान पर हो!” यह सुनते ही सभी की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। आलोक ने सच्चे अर्थों में एक और सुदामा का रूप धारण कर लिया था, जिसने कठिन परिश्रम और मित्रों के सहयोग से अपनी मंज़िल पा ली थी।
आज आलोक झारखंड के मुख्य नागरिक सर्जन हैं, रवि गोड्डा अस्पताल में डॉक्टर है, शमीम रघुनाथपुर में शिक्षक है, और राधे नाथ ललमटिया नवोदय विद्यालय में अध्यापक हैं।
आलोक की यह यात्रा इस बात का प्रमाण थी कि संघर्ष और मित्रता की शक्ति किसी भी मुश्किल को पार कर सकती है। उसने सच्चे अर्थों में ‘एक और सुदामा’ की कहानी को जीवित कर दिया, जहाँ कृष्ण कई थे और सहायता के हर हाथ ने आलोक के जीवन को नया आकार दिया।”
– कहानीकार: सुशील कुमार सुमन
अध्यक्ष, IOA
SAIL ISP बर्नपुर