“जो जीता वही सिकंदर !..”–‘सुमन’
“बर्नपुर, पश्चिम बंगाल के औद्योगिक क्षेत्र में बसा एक शहर, हर वक्त नई ऊर्जा से भरा रहता है। यहाँ का इस्को स्टील प्लांट (आईएसपी), स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (सेल) का हिस्सा होने के साथ-साथ इस क्षेत्र के लोगों की ज़िंदगी का अभिन्न हिस्सा है। इसकी ऊँची-ऊँची संरचनाएँ भारत के स्टील निर्माण की धरोहर को सँजोए खड़ी हैं। लेकिन यहाँ की ज़िंदगी सिर्फ़ पिघले हुए धातु और भट्टियों के शोर तक सीमित नहीं है—यह जज़्बे, दोस्ती, और सपनों की कहानी है, जो चुनौतियों की आग में तपकर निखरती है।
आईएसपी के एकमात्र ब्लास्ट फर्नेस की कैपिटल रिपेयर चल रही थी, जो प्लांट के लिए बेहद महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण दौर था। हर अधिकारी, चाहे जूनियर हो या सीनियर, दिन-रात मेहनत कर रहा था। प्लांट के गलियारों में प्लानिंग, माइक्रो-प्लानिंग और सेफ्टी प्रोटोकॉल की चर्चाएँ गूँज रही थीं। इस कठिन समय में बॉस और सहकर्मी का फर्क मिट गया था—सभी एकजुट होकर एक ही लक्ष्य के लिए काम कर रहे थे।
सुशील, आईएसपी के समर्पित अधिकारियों में से एक, इस आपाधापी के बीच अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी को भी सँभाल रहे थे। स्टील का एक अलग ही असर होता है, जो लोगों को जोड़ देता है। यह उनकी ज़िंदगी में घुल-मिलकर हर चुनौती को साझा और हर जीत को सामूहिक बना देता है। सुशील अक्सर सोचते थे कि यह ज़िंदगी स्टील की तरह ही है—कठिन, अडिग, लेकिन बेहद ज़रूरी।
इस व्यस्त जीवन के बीच, व्यक्तिगत पल किसी खजाने से कम नहीं थे। सुशील का परिवार—पत्नी बिनिता, बेटी श्रेया, और बेटा युवराज—उनके जीवन का सुकून था। प्लांट की उथल-पुथल के बावजूद, घर पर एक अलग तरह की खुशी और संघर्ष का मिश्रण था।
सुबह जल्दी शुरू हुई। सुशील के बेटे युवराज का राज्य स्तरीय अबेकस (ABACUS) प्रतियोगिता के लिए पुरुलिया जाना था। जैसे ही सुबह की पहली किरण बर्नपुर पर पड़ी, परिवार अपनी कार में निकल पड़ा। बिनिता ने मजाकिया अंदाज़ में खुद को “एग्जीक्यूटिव ड्राइवर” घोषित कर दिया। पुरुलिया की यात्रा उत्साह और घबराहट का मिश्रण थी। युवराज, जो शांत और आत्मविश्वासी बच्चा था, पीछे की सीट पर बैठा प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा था।
सुबह 9 बजे तक वे परीक्षा स्थल पर पहुँच गए। सैकड़ों बच्चों और उनके चिंतित माता-पिता का दृश्य देखकर सुशील और बिनिता को संतोष भी हुआ और थोड़ा डर भी। लेकिन युवराज पूरी तरह शांत था—एक ऐसा गुण जिसने हमेशा सुशील को हैरान किया।
सुबह 11 बजे परीक्षा शुरू हुई और 11:45 बजे तक खत्म हो गई। युवराज हॉल से बाहर आया, उसके चेहरे पर संतोष और राहत का मिला-जुला भाव था।
“मुश्किल थी, लेकिन मैंने अपना बेस्ट दिया,” उसने अपनी माँ से कहा, उसकी आवाज़ में स्थिरता और आत्मविश्वास झलक रहा था।
परीक्षा खत्म होने के बाद, परिवार ने समय का उपयोग करने का सोचा। उन्होंने पुरुलिया चिड़ियाघर का भ्रमण किया और भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट टेस्ट मैच का कुछ हिस्सा भी देखा। सुशील को क्रिकेट और ज़िंदगी के बीच समानताएँ खींचने का मौका मिल गया—दोनों में अनिश्चितताएँ, उतार-चढ़ाव और आश्चर्य भरे होते हैं।
शाम 3 बजे के आसपास परिवार परीक्षा हॉल लौट आया। परिणामों की घोषणा शुरू हुई—पहले सांत्वना पुरस्कार, फिर तीसरे, दूसरे और अंत में पहले पुरस्कार की।
जब स्तर ‘एफ’ (Level ‘F’)—युवराज की श्रेणी—की बारी आई, तो सुशील का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। नाम पुकारे जा रहे थे, लेकिन युवराज का नाम नहीं आया। जब उद्घोषक ने पहले पुरस्कार की घोषणा की, तो समय जैसे थम गया।
“और स्तर ‘एफ’ के लिए पहला पुरस्कार जाता है… युवराज सुमन को!”
सुनते ही सुशील और बिनिता के चेहरे पर खुशी की चमक आ गई। बिनिता ने युवराज को गले लगा लिया, और सुशील की आँखों में गर्व के आँसू आ गए। युवराज मंच पर आत्मविश्वास के साथ गया। तालियों की गूंज के बीच सुशील के लिए सबसे खास बात अपने बेटे का शांत और विजयी चेहरा था।
युवराज की जीत का जश्न मनाते हुए, एक और अच्छी खबर आई। आसनसोल आर्ट एग्ज़िबिशन सेंटर से कॉल आया कि श्रेया ने अपने प्रोजेक्ट ‘संत कबीर और पर्यावरण’ के लिए स्वर्ण पदक जीता है। प्रदर्शनी 29 नवंबर से 1 दिसंबर तक आयोजित होनी थी।
इस दिन की संयोगिता ने सुशील को अभिभूत कर दिया। उनके बच्चों की उपलब्धियाँ उनके कठिन स्टील जीवन के बीच एक उजाला बनकर आईं।
उस शाम, जब परिवार बर्नपुर वापस लौट रहा था, दिनभर की भावनाएँ सुखद गर्माहट में बदल गईं। सुशील ने अपनी पत्नी और बच्चों को देखा और दिल से ईश्वर का धन्यवाद किया।
आईएसपी में ब्लास्ट फर्नेस अपने मरम्मत के अंतिम चरण में था। जल्द ही, यह दोबारा चालू होगा और सैकड़ों अधिकारीगण और कर्मचारियों की मेहनत का प्रमाण बनेगा। लेकिन आज की रात, जीवन की छोटी-बड़ी जीतों का आनंद लेने का समय था।
और ने सोचा कि स्टील प्लांट खुद जीवन का प्रतीक है—कठिन, पर पुरस्कृत। स्टील की तरह, जीवन भी तपिश और दबाव से निखरता है।
रात को, जब और ने युवराज को सुलाया, तो उन्होंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा,
“जो जीता वही सिकंदर। इसे याद रखना, बेटा। आज तुमने इसे साबित कर दिया।”
युवराज मुस्कुराया, उसकी नींद में शायद जीत की खुशियाँ गूँज रही थीं।
अगली सुबह, बर्नपुर पर सूरज उगा। सुशील प्लांट के गेट पर खड़े थे, एक बार फिर स्टील की दुनिया में कदम रखने के लिए तैयार। ब्लास्ट फर्नेस जल्द ही चालू होगा, और जीवन अपनी गति में लौट आएगा। लेकिन बीते दिन की यादें, जीत और प्रेम की झलक, हमेशा के लिए दिल में बस गईं।
सुशील ने गहरी साँस ली और ईश्वर का धन्यवाद करते हुए कहा,
“तुस्सी ग्रेट हो।”
और इसके साथ, उन्होंने अपने कर्तव्य के पथ पर कदम रखा, स्टील की तरह—अडिग, सहनशील और उम्मीदों से भरा हुआ।”
कहानीकार: सुशील कुमार सुमन
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी, बर्नपुर
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