“सफ़र और ज़िंदगी”
“आज से एक नए सफर में निकल पड़े हैं,
जहाँ हमारे बच्चों के सतरंगी सपने खड़े हैं।
हर रंग में उम्मीदों की किरणें बसी हैं,
हर राह में नयी रोशनी हँसी है।
कुछ पल सुकून के भी साथ चले,
जहाँ मन की कश्ती आराम से पले।
पर राहों में संगिनी का हाथ है,
जो हर ख़्वाब को हकीकत में बदलने के साथ है।




बच्चों की आँखों में जो ख्वाब झलकते,
सूरज की किरणों से जैसे चमकते।
कोई डॉक्टर बने, कोई आसमान छू ले,
कोई शब्दों में जादू करे, कोई राग गूंजा दे।
उनकी हर हँसी में उजाला बिखरा है,
हर क़दम पर एक नयी आशा निखरा है।
हम उनके सहारे, वो हमारे प्रकाश,
इस रिश्ते का हर पल, हर साँस है ख़ास।
सफ़र लंबा है, कठिन भी सही,
मगर संगिनी के बिना ये अधूरा कहीं।
वो हर मुश्किल में हौसला बढ़ाती,
हर गिरते क़दम को थामे बुलाती।
उसकी आँखों में विश्वास बसा,
उसकी बातों में प्यार का आसरा।
सपनों को संजोकर जो रूप दे,
वो संगिनी ही तो हर सुख की धूप दे।
सफ़र शायद ज़िंदगी का ही नाम है,
या शायद ज़िंदगी ही सफ़र तमाम है।
हर मोड़ पर एक नयी राह मिलती,
हर मुश्किल के पार एक सुबह खिलती।
रातें सिखाती हैं धैर्य और सब्र,
सुबहें सुनाती हैं उम्मीद का जश्न।
हर सफ़र की मंज़िल ज़रूरी नहीं,
कभी चलना ही सबसे प्यारी चीज़ होती सही।
राहें पथरीली भी होंगी कभी,
सपने धुंधले भी होंगे तभी।
पर हर शाम के बाद सुबह आएगी,
हर हिम्मत से जीत की राह पाएगी।
तो चलो, इस सफ़र को हौसले से भरते हैं,
हर ख़्वाब को सच की ज़मीन पर रखते हैं।
क्योंकि सफ़र में ही ज़िंदगी बसी है,
हर पड़ाव में नयी खुशी रची है।
हम चले हैं, तो चलते रहेंगे,
हर मुश्किल में भी हँसते रहेंगे।
मंज़िलें चाहे जहाँ भी छिपी हों,
हम हर मोड़ पर रोशनी करेंगे।
क्योंकि सफ़र में ही ज़िंदगी का सार है,
हर लम्हा, हर सपना एक उपहार है।
तो चलो, इस सफ़र को संजो लें,
प्यार और उम्मीद से इसे संवार लें।”
कवि: सुशील कुमार सुमन
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर