ASANSOL

100 Pipers Controversy : शराब की बोतलों पर कविगुरु की कविता

बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता : बांगला नववर्ष पर शराब की बोतलों पर रवींद्रनाथ टैगोर की कविता, बंगाली समाज में विवादआसनसोल, पश्चिम बंगाल: मंगलवार, 15 अप्रैल 2025 को बांगला नववर्ष (पोइला बोइशाख) के अवसर पर पश्चिम बंगाल के आसनसोल में उत्साह का माहौल रहा। लोग सोशल मीडिया, व्हाट्सएप और व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएं दे रहे थे। कई बंगाली परिवारों ने मिठाइयां बांटकर और खिलाकर इस पर्व को और भी खास बनाया। हालांकि, इस उत्सव के बीच एक विवाद ने जन्म ले लिया, जिसने बंगाली समाज को दो खेमों में बांट दिया।

शराब की दुकानों और बार में ‘100 पाइपर’ व्हिस्की की बोतलों पर विश्वविख्यात बंगाली कवि रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता ‘दुइ पाखी’ की कुछ पंक्तियां छपी हुई देखी गईं। इन बोतलों ने न केवल लोगों का ध्यान खींचा, बल्कि चर्चा का केंद्र भी बन गईं। कुछ लोग इन पंक्तियों को पढ़कर कविता के दार्शनिक और भावनात्मक अर्थ को अपने जीवन से जोड़ रहे थे, तो कुछ ने इसे बंगाली संस्कृति का अनोखा उपहार माना। उनका कहना था कि यह कविता उन्हें अपनी भाषा, संस्कृति और साहित्य से फिर से जोड़ रही है, जो व्यस्त जीवनशैली के कारण कहीं पीछे छूट गई थी।

हालांकि, इस कदम की कड़ी आलोचना भी हुई। बांगला पखो संगठन के पश्चिम बर्धमान जिला सभापति अखय बैनर्जी ने इसे बंगाली संस्कृति और कवि रवींद्रनाथ टैगोर की छवि को धूमिल करने वाला कृत्य बताया। उन्होंने कहा, “हमारा मानना है कि बंगाल में हर दीवार, दुकान और वाहन पर बांग्ला भाषा का उपयोग अनिवार्य होना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि शराब कंपनियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर का दुरुपयोग करें।” बैनर्जी ने ‘100 पाइपर’ कंपनी को चेतावनी दी कि अगर बोतलों से कविता की पंक्तियां नहीं हटाई गईं, तो संगठन सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करेगा और कंपनी के खिलाफ डिपोटेशन देगा।

रवींद्रनाथ टैगोर की कविता ‘दुइ पाखी’ दो पक्षियों की कहानी है – एक पिंजरे में कैद और दूसरा जंगल में आजाद। कविता में दोनों पक्षियों की बातचीत स्वतंत्रता, बंधन और जीवन के दार्शनिक अर्थों को उजागर करती है। इसे शराब की बोतलों पर छापने को लेकर कुछ लोगों ने खुशी जताई, लेकिन कईयों ने इसे अनुचित और अपमानजनक माना। उनका कहना है कि बांगला नववर्ष जैसे पवित्र अवसर पर इस तरह की हरकत कवि के सम्मान और बंगाली समाज की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है।विवाद बढ़ने के साथ यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह कंपनी का विपणन का नया तरीका है या संस्कृति के प्रति असंवेदनशीलता। फिलहाल, बंगाली समाज में इस मुद्दे पर बहस जारी है।

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