Reader's Cornerसाहित्य

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि — सुशील कुमार सुमन

“सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।
दो राह समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”

            " .... 'दिनकर'"

“बुधवार का सपना झिलमिला रहा है क्षितिज पर,
वह आह्लादित किरणें आज दासों का कर्तव्य हैं—
उनकी आत्मा के शौर्य से, उनके शब्दों के जयकार से
फूटी मुस्कान है, आज दीप मलयजति अविरल।

‘दिनकर’! तुम्हारे पद चिन्हों पर चलकर
हमने सीखी थी स्वतन्त्रता की लहरें उछलना,
भारत-भूमि की क्षीरसुधा पीकर हमने जाना
कैसे ग्लानि से जन्म लेती है अग्नि की ज्वाला।

धरा की हृदय-धड़कन में जब तुमने जगाई पुकार,
जन-जन तक पहुंची अमित गर्जना, अमिट उज्ज्वल विचार।
“उठो, जागो और न और सोयो”—तुम्हारा उद्घोष था वरदान,
जाने-अनजाने सबने थामा तुम्हारा ही हाथ, बाँधा अपना यश गान।

राष्ट्रकवि, पद्म भूषण, अभिमन्यु जैसे वीर—
तुम्हारे आलोक में खिलते स्वाधीनता के दीप,
तुम्हारे उद्‌गारों से ध्वनित यूँ जग-जन पुरातन,
नव-युग रचा,
जहाँ भ्रष्टाचार की कोलाहल को किया तुमने शांत।

शौर्य-गीतों की धारा निरंतर,
“पराजय” शब्द को तुम्हारा अर्थ ही बदलना था;
वह “सूर्यकान्त”—काल द्रोणस्थलों पर विजय पताका,
अमर्यादित साहस और आदर्श की अश्वारोही झांकी थे।

भूखों की चीत्कार में जब तुमने संवेदना भरी,
“हम शूद्र सन” की मार्मिक पुकार ने जगाई अमर थी।
तुम्हारे “रश्मिरथी” में अर्जुन-सम कथा निर्मित हुई,
धरती पर मानव-धर्म का विराट दर्शन हुआ सारगर्भित।

कानन-कल्पतरुओं के वृंद में आज भी गूंजे तुम्हारे वचन,
अन्य भाषा के कवियों ने भी गाया है तुम्हारे अन्वय—
अंग्रेजी की धारणाएँ सीखीं “शौर्य” का ब्रह्मगान,
रूसी-फ़ारसी-कन्नड़-बंगाली में पिरोए तुम्हारे विपुल आन।

विश्व-मंच पर जब कपट-काल संभ्रमित हुआ,
तुम्हारी रचना ने दी सत्य की अमिट अनुभूति;
जग को दिखाया संघर्ष की भीषणतम सीमा,
कटु-काल को किया तुमने वाणी से विमर्शित-निर्णय।

मन का स्वप्न, हृदय का वेदना
अश्रु-कणों से रची श्रद्धांजलि यही,
पर्वत-शिखर से उतरी सुधा-धारा ये—
तुम्हारी स्मृति से ओत-प्रोत ये वाणी,
गूँजे अमर गीतों में अविरल अगाध-भावना ये।

“सिंहासन खाली करो”—जन-जन का घोष,
तुम्हारी प्रेरणा से काल-चक्र हुआ रोश।
हमारे भीतर शौर्य-अभिमन्यु का अवतरण,
तुम्हारे पदचिन्हों पर सजीव हुआ प्रताप-करण।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’—तुम्‌हीं वो प्रकाश-पुंज,
जो अँधकार को विदीर्ण कर, जगाया नया युग-उद्‌गम।
तुम्हारी कलम ने बुन दी राष्ट्र-इतिहास की आराधना,
हम भी स्तुतिपर, तुम्हारे पद-छाप पर श्रम-योद्धा बन गए।

तुम्हारे आंचल में जो सच्चाई का बीज बोया,
वो फलित होगा अनंत काल तक—
युवाओं को देगा ऊँच दृष्टि,
सरहदों से परे सुनी स्वतंत्रता-कथा सुनायेगा।

आज तुम्हारी पुण्यतिथि पर ये वंदना,
शोक-सुगंध में लिपटी यादों की कली,
वह उदर-पीड़ा, वह तेजस्वी उद्बोधन,
सब ललित-काव्य में सजीव हो उठती है अभी भी।

आओ! हम फिर से पवित्र करें जन्म-भूमि की माटी,
तुम्हारे स्मृति-लहरियों से नव-युग रचें आगे;
तुम्हारी वाणी वह शंख-ध्वनि जो करती सतत् वलय,
हममें गूंजे निरंतर—“उठो! जागो! फिर से बढ़ चले!”

यह श्रद्धांजलि नहीं, यह प्रतिज्ञा है अरजित,
तुम्हारी रचनाओं को अगली पीढ़ी तक पहुंचायेंगे;
“दिनकर” के आदर्श से विभूषित हम होंगे,
देश-प्यार, मानव-धर्म, शौर्य-राग अनवरत गाएँगे।

हे कवि-कुमार! असत की पर्वा न करना,
हम उठाएँगे गूँजते सूरज की मशाल तुम्हारी;
तुम्हारी आत्मा को शत-शत नमन, शत-शत प्रणाम!
रामधारी सिंह ‘दिनकर’!
जिंदा रहेगा तुम्हारा काव्य-कर्म युग-युग।”
🙏🏾💐💐🙏
“कवि: सुशील कुमार सुमन”
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर

News Editor

Mr. Chandan | Senior News Editor Profile Mr. Chandan is a highly respected and seasoned Senior News Editor who brings over two decades (20+ years) of distinguished experience in the print media industry to the Bengal Mirror team. His extensive expertise is instrumental in upholding our commitment to quality, accuracy, and the #ThinkPositive journalistic standard.

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