Reader's Corner

“ Operation Sindoor – एक वीरता की पुकार, एक प्रेम की पुकार”

“ये ऑपरेशन सिंदूर ही क्यों?”

सवाल वाजिब है। ऑपरेशन के नाम युद्ध से जुड़े होते हैं — विजय, प्रहार, शक्ति, तूफान… फिर सिंदूर क्यों?

क्योंकि यह लड़ाई सिर्फ बंदूकों की नहीं थी, यह लड़ाई उस सूनी मांग की थी जो पहलगाम में उजड़ गई थी। यह हमला सिर्फ आतंकवादियों के ठिकानों पर नहीं था, यह चोट थी उस हर दिल पर जिसने एक जवान को खोया है। यह अभियान नहीं था, यह श्राद्ध था उस सिंदूर का, जो भारत माता के माथे से मिट गया था।

“सिंदूर सिर्फ श्रृंगार नहीं, संकल्प है।”

जब एक पत्नी अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा करती है, उसकी हर सांस एक प्रार्थना होती है, उसका हर सपना उस सिंदूर से बंधा होता है।
और जब कोई जवान शहीद होता है, तो सिर्फ एक शरीर नहीं गिरता — एक पूरा संसार ढह जाता है।

“पाकिस्तान में 9वें आतंकी ठिकाने पर हमला – बदला नहीं, संदेश था।”

पाकिस्तान की सरहद के उस पार जो हुआ, वो एक बदले की भावना से नहीं, एक अस्तित्व की रक्षा के लिए किया गया कार्य था। ना हमें मालूम है कि कितने मरे वहां, पर हमें यह अच्छे से पता है कि यहां हर बार कोई बेटा, कोई पति, कोई पिता शहीद होता है — तो हर बार एक मांग का सिंदूर मिटता है।

“हमें गिनती नहीं चाहिए।”

हमें मातम का हिसाब नहीं चाहिए।
हमें चाहिए सम्मान — उस हर वीरबधु का, जिसने अपने जीवन का सबसे प्रिय इंसान खो दिया, और फिर भी सिर ऊँचा रखा।

““वीरबधु” – विधवा नहीं, राष्ट्र की वीरांगना।”

आज से हमें उन स्त्रियों को “विधवा” नहीं कहना चाहिए जिनके पति देश पर कुर्बान हुए।
उन्हें कहें — “वीरबधु”, जो अपने प्रेम, समर्पण और धैर्य से राष्ट्र की आत्मा को शक्ति देती हैं।

जो रात को तिरंगे में लिपटे शव को देखती हैं, और फिर अपनी माँग की सिंदूर को एक आखिरी बार निहार कर पोंछ लेती हैं — वो सिर्फ पत्नी नहीं, राष्ट्र की चुपचाप चलने वाली शक्ति हैं।

ऐसी हर वीरबधु को, मैं नतमस्तक होकर प्रणाम करता हूँ।

“जंग कभी भला नहीं करती” — फिर भी कभी-कभी जरूरी होती है।

कोई भी समझदार राष्ट्र युद्ध नहीं चाहता। क्योंकि युद्ध में कोई भी नहीं जीतता, बस दोनों ही हारते हैं — इंसानियत हारती है।

लेकिन जब बात राष्ट्र की संप्रभुता, स्वाभिमान और आत्म-सम्मान की हो — तब युद्ध से पीछे हटना, कायरता बन जाती है।

क्या हम चुप रह जाते जब कश्मीर की घाटी खून से रंग जाती है?
क्या हम आँखें मूंद लेते जब हमारे सैनिकों को पीठ पर गोली मारी जाती है?
क्या हम शांति के नाम पर अपने दिल पर पत्थर रख लेते और सहन करते जाते?
नहीं।
शांति तभी टिकती है जब उसके पास ताकत होती है।
और ताकत तब आती है, जब हमारे जवान हर मोर्चे पर डटकर जवाब देते हैं।

“रवीन्द्रनाथ टैगोर, गुरुदेव की जयंती – प्रेम का पथ, युद्ध का विकल्प।”

कल गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती है।
उन्होंने लिखा था —
“प्रेम अधिकार का दावा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्रता प्रदान करता है।”

आज जब हम ऑपरेशन सिंदूर की सफलता और दर्द की बात कर रहे हैं, उसी समय हमें यह भी समझना होगा कि युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए, पहला नहीं।

हमें अगर सच्ची शांति चाहिए, तो प्रेम का माहौल बनाना होगा।
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई — सबको फिर से गले मिलना होगा।
बचपन में जो दोस्त थे, उन्हें बड़े होकर भी भाई बनाकर रखना होगा।
मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे — सबको इंसानियत के मंच पर लाना होगा।

“प्रेम, भाईचारा और बलिदान — यही है सच्चा भारत।”

हमें उस भारत की कल्पना करनी है जहाँ कोई और मांग सूनी ना हो,
जहाँ हर सैनिक सही सलामत लौटे,
जहाँ हर धर्म एक दूसरे की इज्जत करे,
जहाँ हर बच्चा बेखौफ हँसे,
जहाँ हर स्त्री के माथे पर सिंदूर हो और दिल में गर्व।

“ऑपरेशन सिंदूर – वीरता का प्रतीक, प्रेम की पुकार”

“ऑपरेशन सिंदूर” कोई सैन्य रणनीति भर नहीं थी।
यह था — एक मौन चीख का उत्तर, एक टूटी मांग का प्रतिशोध, एक वीरबधु की पीड़ा का जवाब।

इस अभियान ने न केवल आतंक को चुनौती दी, बल्कि हर उस आँसू को शक्ति दी जो चुपचाप रातों में बहा था।
इसने दुनिया को दिखाया कि भारत सिर्फ जख्म सहता नहीं, जवाब भी देना जानता है।

पर साथ ही, यह भी याद रहे —
अगर हम शांति चाहते हैं, तो हमें प्रेम को पुनः जीवित करना होगा।
हमें धर्मों से ऊपर उठकर इंसानियत के सिंदूर को बचाना होगा।

जय हिंद!
जय भारत!
वीर शहीदों को नमन,
और वीरबधुओं को वंदन।

“लेखक: सुशील कुमार सुमन”
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर

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