राजनीतिक एजेंडा में शामिल कराना होगा पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा – जितेन्द्र तिवारी
प्रशासनिक लोगों का दायित्व बनता है कि लोगों को इसके प्रति जागरूक करें, लेकिन जिस गति से कार्य होना चाहिए था वह नहीं पाया। क्योंकि प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने के लिए यह कार्य प्राथमिकता के साथ करने जरूरत है। लेकिन यह कभी हमारी प्राथमिकता सूची में रहती नहीं हैं, इसका सबसे बड़ा कारण है कि जनता की ओर से भी कभी इसे लेकर कोई मांग ही नहीं की जाती है। इसे लेकर संसद, विधानसभा में कानून बनते हैं, लेकिन जनता द्वारा मांग करने पर इससे संबंधित एक भी कानून नहीं बना है, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के निर्देश पर कानून बने हैं, लेकिन जनता की मांग के अनुसार एक भी कानून बना हो इसकी मुझे जानकारी नहीं है। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में खुद इसे महत्व नहीं दे पाये है। इस देश में कौन रहेगा कौन नहीं रहेगा, कौन किस भाषा में बात करेगा इसे लेकर आन्दोलन होता है, लेकिन पृथ्वी या पर्यावरण बचाने को लेकर कोई आन्दोलन नहीं हो रहा है। इतने गंभीर मुद्दे को हमलोगों ने खुद छोटा बना दिया है। इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। संसद या विधानसभा में भी एसे निर्णय लिये जाते हैं जिससे कि जनता आकर्षित हों, क्योंकि पेड़ लगाकर वोट भी नहीं मांगा जा सकता है। प्रदूषण के क्या-क्या कारण है यह तो दिखाया जाता है, लेकिन इससे बचाने को लेकर जो गतिविधि के लिए जिस राशि की जरूरत होती है, उस समय इन संस्थाओं की स्थिति लाचार जैसी हो जाती है। अगर सचमुच पर्यावरण को बचाना है तो इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाने की जरूरत है, ताकि चुनावी वादे में इसे भी शामिल किया जाये, तभी यह अभियान वास्तव में मुकाम तक पहुंच पायेगा। वहीं इससे आपलोगों को इस अभियान में काफी मदद भी मिलेगी।