देश का संसाधन कौन भोग रहा: बी सी भरतिया
बंगाल मिरर, दलजीत सिंह रानीगंज: देश को अंग्रेजों की गुलामी से निकाल कर स्वतंत्र भारत बनाने के लिए, देश के हर वर्ग के लोग, हर क्षेत्र के लोग, हर स्तर के लोग, सभी ने अपनी-अपनी यथाशक्ति अनुरूप योगदान दिया। सभी ने कंधे से कंधा मिलाकर स्वतंत्रता की लडाई में आहुतियां डालते गए। देश स्वतंत्र हुआ।
जिस दिन हमारा देश स्वतंत्र हुआ, उस दिन देश के सभी वासियों ने एक समान स्वतंत्रता की सांस ली। स्वतंत्र आदिवासी इलाका, स्वतंत्र जंगल, गांव, देहात, शहर सब एक साथ एक समान स्वतंत्र हुए। हर देशवासी ने देश को आगे बढ़ाने के लिए अपनी क्षमता अनुसार प्रयत्न किए। किसी ने तन से काम किया, किसी ने मन से काम किया, किसी ने धन से काम किया। देश की स्वतंत्रता के लिए सभी का योगदान रहा।
आज हम जो देखते हैं, तो सोचने पर मजबूर होते हैं कि एक ही दिन, एक ही साथ, एक ही देश के रहवासी एक साथ स्वतंत्र हुए। संविधान में सामाजिक लोकतंत्र को प्राथमिकता दी गई। क्या सबका सामाजिक स्तर आज एक है। सभी क्षेत्रों का विकास एक जैसा है। जीवन जीने के लिए जो बुनियादी जरूरतें हैं, वह सब जगह एक समान है। सरकार के जो वार्षिक खर्च होते हैं उन खर्चों का क्या सब जगह एक समान प्रयोजन किया जाता है।
सामाजिक पार्श्वभूमि वाले लोकतांत्रिक सरकार द्वारा संचालित स्वतंत्र भारत देश के जो संसाधन हैं, उस पर किन लोगों का कब्जा है। देश के संसाधन कौन लोग भोग रहे हैं। क्या देश के सभी क्षेत्रों का समतल विकास हो रहा है। क्या शहरवासियों को मिलने वाली सुख सुविधा, बुनियादी जरूरत देश के सुख साधन आदि सभी चीजें आदिवासी, गांव, देहात, जंगल आदी इलाकों में रहने वाले उसी भांती भोग रहे हैं। उन्हें यह सुविधाएं उपलब्ध हो रही है क्या, जैसी हम शहरों में तथा महानगरों में देखते हैं।
कही हम देश को दो हिस्सों में बांट तो नहीं रहे हैं। जिसमें एक वर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी सेवा देने वाला सेवक रहेगा और एक वर्ग अत्याधिक धन संग्रह करके सेवा लेता रहेगा। सुख संसाधन भोक्ता रहेगा। देश की सब सुख सुविधा से जो वंचित है उनके लिए सरकार व देशवासी क्या कर रहे हैं। क्या हम जरूरतमंदों को, गरीबों को, प्रवासी मजदूरों को, वंचित को एक समय का खाना देकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते हैं। ऐसी नौबत ही क्यों आए। क्या इस बारे में चिंतन मंथन हमने किया।
क्या देशवासियों में संपत्ति जमा करने की होड़ लग गई है। देश के संसाधन पर कब्जा करने की एक प्रतिस्पर्धा चल गई है। भ्रष्टाचार में लिप्त कार्य करवाने वाला व कार्य करने वाला दोनों अपनी हैसियत से ज्यादा धन-संपत्ति संग्रह तो नहीं कर रहे। जब मैं, बी सी भरतिया, हैसियत की बात करते हैं तो उसका मतलब होता है कि व्यक्ति के जो जानकारी में आय के स्रोत हैं (Known source of income) उससे ज्यादा धन संपत्ति तो उस व्यक्ति के पास जमा तो नहीं हो रही। समाज में रहते हुए हमें हर व्यक्ति को इस दृष्टि से भी देखना अनिवार्य है। समाज में सबको सिर्फ मेरा क्या, मेरा कितना, मेरा और कितना, मेरा कितना कब तक। यहीं तक अधिकांश लोग रह गए है।
हमारा देश कैसे होगा, हम आगे कैसे बढ़ेंगे, संगठित और सामूहिक रूप से प्रगति कैसे करेंगे। क्या यह सोच समाप्त हो गई। हमें अपने आप को बड़ा बनाना है और विश्व में फोब्स की किताब में दुनिया के प्रथम पूंजीपतियों की सूची में नाम दर्ज कराना है या हमें हमारे देश को आगे बढ़ाना हैं।
एक बात ध्यान रहे कि जब आप पैदा हुए थे तो साधारण बच्चे जैसे ही पैदा हुए। यह हमारे देश की जो बुनियादी सहूलियतें हैं, जो देश ने आपको आगे बढ़ने के लिए सभी संसाधन उपलब्ध कराकर प्राथमिकता दिया है, वह यही सोच कर दिया गया है कि आप देशवासियों को भी आगे बढ़ाएंगे। मगर दुर्भाग्य है कि देश पीछे रह गया और अवसरवादी व पूंजीपति अंतरराष्ट्रीय पटल पर विश्व के पूंजी पतियों में अपना अपना नाम दर्ज कराने की होड में लग गए। मेरा देश और मेरे देशवासी वहीं पीछे रह गए। मेरा देश का नाम तीसरी दुनिया का देश (थर्ड वर्ल्ड कंट्री) की सूची में दर्ज हो गया और कुछ पूंजीपति विश्व के प्रथम सौ की श्रेणी में अपना नाम पहुंचा कर खुश हो रहे हैं । क्या यह उचित है।
एक चिंतन करना जरूरी है।
धन्यवाद।
B C BHARTIA
National President
confederation of all India Traders, New Delhi