संजीव भैया चले गये, सबको रूला गये….
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गुरुवार की सुबह फोन पर जब यह अशुभ समाचार सुना तो गहरा धक्का लगा, घंटों रोता रहा, यही कारण है कि इस समाचार को अब लिख रहा हूं, आंखों में आंसू लेकर और कांपती हुयी उंगलियों से मुझे यह लिखना पड़ेगा कभी सोचा न था, संजीव भैया मेरे बड़े भाई थे, वह हमें छोड़कर चले गये यह विश्वास नहीं हो रहा है, सुबह से जिसने भी उनकी खबर सुनी हर कोई दुख से आह कर उठा, वह हमेशा मुझे प्यार से समझाते थे और कहते थे कि तुम है तभी तक मैं भी हूं, आज मुझे अकेले छोड़कर चले गये, कभी-कभी मैं गुस्सा हो जाता तो मुझे खुद फोन न कर रंजीत भैया से फोन करवाते थे। कोरोना ने हमसे उन्हें छीन लिया, जीवन की दौड़ भाग और जिम्मेदारी की मजबूरियों के कारण ही वह झारखंड से बंगाल आते थे, रोजाना दर्जनों किलोमीटर दूर, वर्षों यहां बिताने के कारण वह चाहकर भी झारखंड में वापस नहीं जा सके। अब वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें हमेशा रूलाती रहेंगी, भैया आप जहां भी रहे अपने छोटे भाई को आशीर्वाद देते रहियेगा,
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आपका अभागा छोटा भाई
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एक सक्रिय पत्रकार जिसके अंदर मौजूद पत्रकारिता का जुनून उसे प्रतिदिन मीलों यात्रा करवाता था। कर्मठ इतना कि उसके सहकर्मी मित्र सब फुर्सत के क्षणों में हंसी ठिठोली करते तो वह समाचार को धार देने में लगा रहता। विवादों से काफी दूर, लेकिन जब दो लोगों या समुदायों के बीच विवाद उत्पन्न हो जाता, तब विवाद के काफी नजदीक आकर उसके समाधान में महती भूमिका निभाता। मैंने भी उस पत्रकार के साथ कुछ वर्ष सहकर्मी के रूप में काम किया। मैंने उन्हें वंचितों, उपेक्षितों, जरूरतमंदों से संबंधित समाचार बनाते हुए सिसकते हुए देखा था। साथ ही जब भारत तरक्की की नई ऊँचाइयाँ छूता तो उन्हें इतराते हुए भी देखा था। सत्य, ज्ञान व बड़ों के सामने उन्हें शीश झुकाते हुए देखा था। अनुज से, अपने काम से उन्हें कयामत तक स्नेह करते हुए देखा था। मृदुभाषी ऐसा कि विरोधी भी उनके व्यवहार का कायल हो जाता। स्वार्थलोलुप, गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में हमेशा सहयोग को तत्पर। उचित मार्गदर्शक, कर्मठ और निःस्वार्थ सेवा से ओतप्रोत पत्रकार संजीव जी की आकस्मिक निधन की खबर ने मुझे चेतना शून्य कर दिया है। भगवान उनकी दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। भगवान उनके परिवार को इस दुःख की घड़ी से बाहर निकलने की शक्ति प्रदान करें।
जय प्रकाश सिंह
औरंगाबाद, बिहार ।