साहित्य

चित्र आधारित रचना

प्रस्तुत है दो ‘मुक्तक’

आजादी का अर्थ समझ में तब आया।
जब घर में कर कैद विवशता ने समझाया।
क्यों करते अनाचार उड़ते पाँखों पर।
मुक्त किया पाखी, बिटिया मुख हर्षाया।।

प्रभु ने जिसको पंख दिया उड़ने की खातिर।
करते उन्हें विवश हम, निज शौक की खातिर।
देखी बिटिया जब नील गगन, उड़ते पाखी को।
किया बिहग आजाद मुक्त उड़ने की खातिर।।

प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल

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