प्रकाश चन्द्र बरनवाल ‘वत्सल’ की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में दो रचनायें
जीवन में नित, उद्भाषित सुविचार हो।
भारतीयता, का दर्शन व्यवहार हो।
राष्ट्र एक है, सात्विक यही विचार हो।
मातृभूमि के, प्रति पावन – उद्गार हो।



गौरवगाथा, से गुंजित परिवार हो।
वीर भगत सा, देव पुरुष अवतार हो।
मातृभूमि की, मर्यादा अनिवार हो।
आजादी का, शौर्य धरा गुलजार हो।।
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल

संस्कार” शब्द को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समर्पित चार पंक्तियां !
संस्कार और मानवता को, छिन्न – भिन्न, निष्प्राण किया।
चीरहरण कर दानवता का, पातक जैसा जुर्म किया।।
चार लुटेरों ने मिलकर, लूटा अस्मत, मौत दिया।
फाँसी दो उन अधम नीच को, जिसने बर्बर जुल्म किया।।