चेंबर भवन बेचने की साजिश, नहीं रह सकता पैनल में : पिन्टू
बंगाल मिरर, आसनसोल : आसनसोल चेंबर ऑफ कॉमर्स चुनाव में उम्मीदवार पिंटू गुप्ता ने कहा कि आसनसोल चैंबर का गौरवमयी इतिहास रहा है । यह चैंबर स्व गौरीशंकर जी केडिया , स्व रामेश्वरलाल केडिया , स्व केसी बागड़ी जैसे व्यवसाइक हितों के लिए लगने वाले लोगों द्वारा स्थापित किया गया था । उनकी इस अमानत को स्व . रामअवतार चोखनी , जगदीश प्रसाद केडिया , आरएन यादव , सत्यनारायण दारुका , स्व दिनेश तोदी , पवन गुटगुटिया , सुबत दत्ता व नरेश अग्रवाल ने आगे बढ़ाने का कार्य किया ।
यह चेंबर पहले उमा भवन में छोटे से कमरे में हुआ करता था। उस समय के लोगों ने इसे एक बड़े कार्यालय में लाने एवं उसके वृहद स्वरूप देने का सपना देखा । इसके लिए रुपयों की जरूरी तो कई लोगों ने अपने परिवार के लिए बचा कर रखे गये रुपयो को चेंबर के लिए दान दे दिया । एक ऐसे भी सदस्य थे जिन्होंने अपनी पत्नी द्वारा बचाये गये रुपयों को लेकर आज का चेंबर भवन खरीदने के लिए चंदा दे दिया।
इसके पीछे सिर्फ एक ही मकसद था कि व्यवसाइक हितों की लड़ाई सही से लड़ा जा सके । आसनसोल का व्यावसायी सिर उंचा कर सके कि हम आसनसोल चैंबर ऑफ कॉमर्स के सदस्य हैं । उन्होंने कहा कि उनका यह सपना भी पूरा हो रहा था। इसी दौरान विना व्यवसाय वाला व्यक्ति चैंबर में आता है । इस गौरवमयी चैंबर के सुनाम को मिट्टी में मिला दिया ।
पूरी बिल्डिंग बेचने की बारी
उसने शुरुआत की ट्रेड फेयर में गडबडी से जिसका आज तक हिसाब नहीं दिया । आसनसोल चैंबर के सदस्यों ने इसे भी किसी प्रकार से मान लिया। पर उसका लालच यही नहीं रूका। वह बढते- बढते चेंबर की संपत्ति बेचने तक पहुंच गया । यह मामला सिर्फ दो दुकान बेचने का ही नहीं है । बल्कि पूरी बिल्डिंग बेचने की बारी है ।
अगर ऐसा नहीं है तो फिर जो एक अध्यक्ष थे वे अपना ग्रेड गिराकर सीनियर वाइस प्रेसिडेंट पर कैसे पहुंचा । दरअसल बता देते है कि वह जरूरी क्यों है । वह गुप्त समझौता जिसने पूरी बिल्डिंग को बेचने की तैयारी की है । वह समझौता है पूरी बिल्डिंग जो कई करोड़ की संपत्ति हैं उसे औने पौने दाम पर बेच देना है ।
लूट व दलाली का अड्डा बना दिया
ऐसे लोग के नाम पैनल मे रहकर चुनाव नहीं लड़ सकता। जिन मनीषियों ने इस चेंबर को मनाने के लिए अपना सब कुछ लुटा दिया । वैसे त्याग करने वालों की आत्मा आज रो रही होगी । कुछ लोग ने उसे लूट व दलाली का अड्डा बना दिया । ऐसे लोगों के साथ चुनाव जीत कर आने से बेहतर हार जाना । उस हार में भी जीत होगी पर इनके साथ चुनाव लड़ने से अपनी प्रतिष्ठा खत्म हो ऐसा कार्य नहीं कर सकता ।