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DUSSEHRA : बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है

देशभर में विजयादशमी की धूम, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने दी देशवासियों को पावन पर्व की शुभकामनाएं

हमारे देश में हर रोज न सही हर सप्ताह कोई न कोई पर्व त्यौहार मनाई जाती है हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां हर त्यौहार का अपना एक महत्व है उन्हें मनाने के पीछे महत्वपूर्ण कारण हैं। इसलिए हमारे देश को त्योहारों और मेलों का देश भी कहा जाता है। आज पूरे देश में धूमधाम से विजयदशमी के पावन अवसर पर दशहरा मनाया जा रहा है। इस मौके पर राष्ट्रपति, पीएम मोदी समेत कई नेताओं ने देशवासियों को शुभकामनाएं दी। इस त्यौहार का संबंध हमारे धार्मिक और एतिहासिक विरासत से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस पावन मौके पर लिखा “विजयादशमी के पावन पर्व पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई। दशहरा का यह त्योहार, अनीति पर नीति की, असत्य पर सत्‍य की और बुराई पर अच्‍छाई की विजय का प्रतीक है। मेरी मंगल कामना है कि यह त्योहार सभी देशवासियों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करे।” पीएम मोदी ने भी विजयदशमी की शुभकामनाएं देते हुए अपने भाव प्रकट किए उन्होंने लिखा “सभी देशवासियों को विजय के प्रतीक-पर्व विजयादशमी की बहुत-बहुत बधाई। मेरी कामना है कि यह पावन अवसर हर किसी के जीवन में साहस, संयम और सकारात्मक ऊर्जा लेकर आए।”



बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है दशहरा



दशहरा को दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह देश के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दशहरा हिंदू धर्म का ऐतिहासिक त्योहार है जिसको बड़े ही हर्ष और उत्साह के साथ लोग मनाते हैं। इस त्यौहार को दीपावली से 21 दिन पहले मनाया जाता है। इस त्यौहार का रिश्ता माता दुर्गा के साथ भी जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की रावण का वध करने के लिए प्रभु श्री राम ने समुद्र तट पर देवी दुर्गा का 9 दिन मंथन किया था। इस मंथन के बाद 10वें दिन ही उन्हें विजय प्राप्त हुए थी। देवी दुर्गा ने राक्षस महिसासुर का वध भी 9 रात की तपस्या के बाद 10वें दिन ही किया था। इस तरह हम देखे तो दोनों घटनायें आपस में मिलती जुलती हैं। तभी दशहरा को “बुराई पर अच्छाई की जीत” के रूप में देखा जाता है।

दशहरा का महत्व

महाराजा दशरथ की तीन रानियाँ थी और चार पुत्र थे। राम जी के विवाह पश्चात रानी कैकेयी की दासी मंथरा रानी कैकेयी के मन में राम जी के प्रति नकारात्मक बातें करती रहती थी। वह अयोध्या का राजकाज उनके बेटे भरत को दिलाना चाहती थी लेकिन श्री राम सभी से बड़े थे और सभी भाई उनसे काफी प्रेम भी करते थे। इसके चलते और श्री राम के अयोध्या में रहते भरत कभी भी सिंघासन पर नहीं बैठ सकते थे, इसीलिए मंथरा ने कैकेई को राम चंद्र जी को 14 वर्ष के वनवास को भेजने का सुझाव दिया। मंथरा की यह बातें सुनकर रानी कैकेयी राजा दशरथ से भरत को राज सिंहासन दिलाने और राम जी को 14 वर्ष को वनवास भेजने की मांग करती है न चाहते हुए भी राजा दशरथ को कैकई की इस मांग को मानना पड़ता है और प्रभु श्री राम को वनवास भेज देते हैं। 14 वर्ष के वनवास के दौरान लंकापति रावण ने जब माता सीता का अपहरण किया तो भगवान राम ने हनुमानजी को माता सीता की खोज करने के लिए भेजा। हनुमानजी को माता सीता का पता लगाने में सफलता प्राप्‍त हुई और उन्‍होंने रावण को लाख समझाया कि माता सीता को सम्‍मान सहित प्रभु श्रीराम के पास भेज दें। रावण ने हनुमानजी की एक न मानी और अपनी मौत को निमंत्रण दे डाला। मर्यादा पुरुषोत्‍तम श्रीराम ने जिस दिन रावण का वध किया उस दिन शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि थी। इसलिए इस त्‍योहार को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रावण के साथ उसके पुत्र मेघनाद और उसके भाई कुंभकरण के पुतले भी फूंके जाते हैं।

क्यों माननी पड़ी थी राजा दशरथ को कैकई की बात

यह उस समय की बात है जब देवताओं पर असुरों ने अपना आक्रमण कर दिया था, उस आक्रमण से बचने के लिए इंदर देवता ने राजा दशरथ से सहायता मांगी थी। अपने पति की रक्षा के लिए रानी कैकेयी उनकी सेना में सारथी बनकर शामिल हो गई थी। यूद्ध के मैदान में जब राजा दशरथ के रथ के पहिये में से एक कील निकल गई और उनका रथ गिरने लगा था, तब रानी कैकेयी ने कील की जगह अपनी ऊँगली रखकर अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी। इस बात से प्रसन्न हो कर राजा दशरथ ने अपनी पत्नी से 3 वरदान मांगने को कहा। परन्तु उन्होंने उस समय वर के लिए मना कर दिया और बोला की जब मुझे जरुरत होगी तब मैं आपसे वरदान मांग लूंगी। उस वरदान के बदले में रानी कैकेयी ने प्रभु श्री राम को वनवास भेजने का यह वरदान मांगे।

वनवास भेजने के लिए राजा दशरथ नहीं थे तैयार

दशरथ, अयोध्या के रघुवंशी राजा थे। वे राजा अज व इन्वदुमतीके के पुत्र थेे एवं इक्ष्वाकु कुल मे जन्मे थे। प्रभु श्री राम को 14 वर्ष का वनवास भेजने के लिए राजा दशरथ तैयार नहीं थे, और उन्हें रानी कैकेयी की यह बातें अच्छी नहीं लगी थी उन्होंने रानी कैकेयी को समझाने का बड़ा प्रयत्न किया, लेकिन वह नहीं मानी। अंत में राजा दशरथ को अपने कैकेयी को दिए वचन को पूरा करने के लिए प्रभु श्री राम को वनवास भेजना पड़ा। अपने पिता का कहा मानकर भगवान राम 14 वर्ष का वनवास काटने के लिए घर से निकलने के लिए तैयार हो जाते हैं। उनके साथ उनकी पत्नी सीता जी और उनके भाई लक्ष्मण भी चल पड़ते है। राम जी के वनवास जाने से पूरी अयोध्या नगरी निराश हो जाती है। प्रभु श्री राम जी के वनवास के बाद राजा दशरथ भी उनके वियोग को सहन नहीं कर पाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है।

दशहरा का समारोह

दशहरा का त्योहार पूरे भारत में बड़े धूम-धाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जैसे प्रभु श्री राम और रावण का युद्ध 10 दिन तक रहा था वैसे ही उस चीज को नाटक के माध्यम से राजा महाराजाओं के जैसे वस्त्र पहनकर राम–लीला में प्रदर्शन प्रस्तुत किया जाता है। इन दिनों प्रभु श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और कई देवी–देवताओं की पूजा की जाती है, और उनकी झांकियां निकाली जाती है। रात के समय में ही राम–लीला का आयोयन किया जाता है, और इसे देखने के लिए लोग काफी मात्रा में एकत्रित होते हैं। राम–लीला के आखरी दिन (दशहरा के दिन) रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ के विशाल आकार के पुतले जलाये जाते है। इन पुतलो में बहुत सारे पटाके भरे हुए होते हैं। राम–लीला में जो राम जी का रूप लेकर नाटक करता है वह अपने तीर से पहले कुंभकर्ण को फिर मेघनाद को और अंत में रावण को अपने तीर से जला देता है। यह आयोजन एक खुले मैदान में किया जाता है। इस कार्यक्रम को देखने के लिए न सिर्फ हिंदू धर्म के लोग बल्कि बाकी धर्मो के लोग भी शामिल होकर इस त्यौहार का आंनद लेते हैं।

उत्तर भारत समेत पूरे देश में दशहरा मेला

इस पवित्र त्यौहार में देश की कोने कोने में मेलों का आयोजन किया जाता है विशेष तौर पर अगर उत्तर भारत की बात करें तो हिमाचल प्रदेश के कुल्लू शहर का दशहरा बहुत चर्चित है। कुल्लू दशहरे की पापुलैरिटी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि यहां लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। साथ ही हमारे देश के इतिहास में यह पहला मौका है जब कुल्लू दशहरे में देश के प्रधानमंत्री स्वयं भाग ले रहे हैं। अन्य क्षेत्रों के तरह ही कुल्लू में भी नवरात्रि के दिनों से इस त्यौहार को मनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। पहाड़ के लोग अपने ग्रामीण देवता की पूजा करते हैं और रथ निकालते है। मूर्ति को आकर्षक पालकी में बिठाकर नर्तक नटी नाच करते हैं। पंजाब में भी दशहरा बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। नवरात्रि के दिनों में लोग उपवास रखकर पूजा करते हैं। इन दिनों खाने पीने का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है। यहाँ पर खास तोर के मेले लगते हैं, रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ का पुतला जलाया जाता है। ऐसे ही देश के अन्य कोनों में भी इस त्यौहार का आयोजन किया जाता है जहां बड़े धूमधाम से लोग इस त्योहार को मनाते हैं। एक बार पुण पीबीएनएस परिवार की तरफ से भी आप सब को दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएं।

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