जानें, कब से मनाया जा रहा महापर्व छठ, कितना पुराना है इसका इतिहास ?
रविवार को छठ महापर्व का तीसरे दिन अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी पूजा करने विधान है। इसके बाद सोमवार सुबह उदयीमान सूर्य नारायण को अर्घ्य देने के बाद चार दिनों के अनुष्ठान के इस महापर्व का समापन हो जाएगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में छठ महापर्व मनाने की शुरुआत कैसे और कब हुई? दरअसल, इसका इतिहास इतिहास बहुत दिलचस्प है और हर भारतीय को इसके बारे में जानकारी होना भी जरूरी है। तो आइए विस्तार से समझते हैं इसके बारे में…




देश में गुप्त काल से मनाया जा रहा है महापर्व छठ, ये रहा प्रमाण
उल्लेखनीय है कि गुप्त काल से ही छठ महापर्व का त्योहार मनाया जा रहा है। इसका उल्लेख गुप्तकालीन जो सिक्के मिले हैं, उनमें षष्ठीदत्त नाम का सिक्का भी मिलता है। पाणिनी ने जो नामकरण की प्रक्रिया बताई है, उसके अनुसार देवदत्त, ब्रह्मदत्त और षष्ठीदत्त इन शब्दों का अर्थ इस प्रकार लगाया जाता है: देवदत्त का मतलब देवता के आशीर्वाद से जन्म होना, ब्रह्मदत्त का मतलब ब्रह्मा के आशीर्वाद से और षष्ठी देवी के आशीर्वाद से जन्मे हुए पुत्र षष्ठीदत हुए। गुप्त काल में षष्ठीदत नाम का प्रचलन था। इससे प्रमाणित होता है कि छठी मैया की पूजा उस समय भी होती थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध इतिहास को वासुदेव शरण अग्रवाल ने अपनी पुस्तक पाणिनिकालीन भारतवर्ष में इसका उल्लेख किया है।
ग्रंथों में भी छठ का उल्लेख
मिथिला के प्रसिद्ध निबंधकार चंडेश्वर ने 1,300 ईस्वी में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कृत्य रत्नाकर में महापर्व छठ का उल्लेख किया है। उसके बाद मिथिला के दूसरे बड़े निबंधकार रूद्रधर ने 15वीं शताब्दी में कृत्य ग्रंथ में चार दिवसीय छठ पर्व का विधान विस्तृत रूप से दिया है। यह वर्णन ऐसा ही है जैसा आज हम लोग छठ पर्व मनाते हैं। इस प्रकार पिछले 700 वर्षों से यह विवरण मिलता है, जिसके अनुसार आज का छठ व्रत मनाया जाता है।1,300 ईसवी के पहले चंदेश्वर ने छठ व्रत के ऊपर प्रकाश डाला। 1285 ईसवी में हेमाद्री ने चतुवर्ग चिंतामणी ग्रंथ में और 1,130 ईसवी के आसपास लक्ष्मीधर ने कृत्य कल्पतरु में सूर्योपासना एवं षष्ठी व्रत का विधान बताया है। लक्ष्मीधर गहड़वाल वंश के प्रसिद्ध शासक गोविंद चंद्र के प्रमुख मंत्री और सेनापति थे।
क्यों छठ पर्व में सूर्य को अर्घ्य देकर की जाती है पूजा ?
उल्लेखनीय है कि छठ व्रत सनातन धर्मावलंबियों का अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस महापर्व पर भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा-अर्चना होती है। सूर्य की उपासना का यह सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। प्रत्येक मास की सप्तमी तिथि विशेषकर शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्य भगवान की तिथि मानी जाती है और इस दिन इनकी उपासना का विधान है। इसके साथ ही कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सबसे पावन तिथि मानी जाती है। इसी कारण सूर्य भगवान की पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष में सप्तमी के दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा की जाती है।
छठी मैया कौन-सी देवी हैं ?
चार दिनों का यह व्रत नहाए खाए, खरना, अस्तगामी सूर्य और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी पूजा की जाती है। यह तथ्य तो सभी लोगों को पता है, लेकिन छठी मैया की जो पूजा होती है, उसमें छठी मैया कौन देवी हैं, इसका ज्ञान बहुत से लोगों को नहीं है। इसमें मैंने बहुत अनुसंधान किया तो पाया कि छठी मैया वास्तव में स्कंदमाता (पार्वती जी) हैं।
सूर्य भगवान की पूजा वैदिक काल से ही देश में प्रचलित
सूर्य भगवान की पूजा वैदिक काल से ही देश में प्रचलित है। सूर्य भगवान के मंदिर इस देश के बाहर भी बहुत सारे स्थानों पर बने हुए थे, जिसमें मुल्तान (पाकिस्तान) का भव्य सूर्य मंदिर भी है, जिसका वर्णन अलबरूनी ने किया है। इस मंदिर को मोहम्मद गजनवी ने तोड़ा था। इसी प्रकार काबुल के पास खैर कन्हेर में सूर्य भगवान का प्रसिद्ध मंदिर था, जिसे मोहम्मद गजनवी ने तोड़ा था, किंतु 1936 में खुदाई हुई तो इसमें बहुत सारे देवताओं की मूर्तियां साबुत पाई गई हैं। इसमें सूर्य भगवान की भव्य मूर्ति है, जो अभी काबुल के म्यूजियम में सुरक्षित है।
छठ महापर्व का तीसरा दिन आज, PM मोदी ने देशवासियों को दी छठ की शुभकामनाएं
छठ महापर्व के तीसरे दिन आज रविवार को सूर्य देव को अर्घ्य देने की सारी तैयारी पूरी कर ली गई है। आज सूर्य का संध्या कालीन अर्घ्य होना है। इसके पश्चात कल यानि सोमवार को प्रात: काल में उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इसी के साथ छठ की पूजा सम्पन्न होगी। ऐसे में आज देश भर में कण-कण भक्तिमय हो गया है, उत्साह और भक्ति अपने चरम पर नजर आ रही है।
पकवान से गमक उठी हर गली
प्रकृति पूजन के महापर्व छठ को लेकर हर ओर लोकगीत और प्रसाद की सोंधी खुशबू छा गई है। सूर्योदय काल के पहले से ही तमाम घरों में ठेकुआ, पिरकिया, लड्डू सहित अन्य प्रसाद आस्था और सुचिता के साथ बनाए जा रहे हैं, जिसको लेकर गांव से शहर तक की गलियों में आत्ममुग्ध कर देने वाली खुशबू छा गई है। सनातन की सुंदरता का इससे अच्छा रूप और क्या हो सकता है कि सनातनी डूबते सूर्य की भी पूजा करते हैं।
पीएम मोदी ने देशवासियों को दी छठ की शुभकामनाएं
पीएम मोदी ने रविवार को सूर्यदेव और प्रकृति की उपासना को समर्पित महापर्व छठ की देशवासियों को शुभकामनाएं दी। पीएम मोदी ने ट्वीट संदेश में कहा है कि सूर्यदेव और प्रकृति की उपासना को समर्पित महापर्व छठ की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान भास्कर की आभा और छठी मइया के आशीर्वाद से हर किसी का जीवन सदैव आलोकित रहे, यही कामना है।
https://twitter.com/narendramodi/status/1586536620064641024?s=20&t=KBWuh42mB_s6TnifekfYvQ
मन की बात के दौरान PM मोदी बोले- छठ का पर्व ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का उदाहरण है
वहीं रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देशवासियों को छठ पर्व की बधाई देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि यह पर्व ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का भी श्रेष्ठ उदाहरण है। आज, देश के कई हिस्सों में सूर्योपासना का महापर्व ‘छठ’ मनाया जा रहा है। ‘छठ’ पर्व का हिस्सा बनने के लिए लाखों श्रद्धालु अपने गांव अपने घर, अपने परिवार के बीच पहुंचे हैं। मेरी प्रार्थना है कि छठ मइया सबकी समृद्धि, सबके कल्याण का आशीर्वाद दें।
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पीएम मोदी ने कहा कि सूर्य उपासना की परंपरा इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति, हमारी आस्था का प्रकृति से कितना गहरा जुड़ाव है। इस पूजा के जरिये हमारे जीवन में सूर्य के प्रकाश का महत्व समझाया गया है। साथ ही यह संदेश भी दिया गया है कि उतार-चढ़ाव, जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसलिए, हमें हर परिस्थिति में एक समान भाव रखना चाहिए।
धूमधाम से हो रहा छठ का आयोजन
पीएम मोदी ने कहा कि छठ का पर्व ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का भी उदाहरण है। आज बिहार और पूर्वांचल के लोग देश के जिस भी कोने में हैं, वहां, धूमधाम से छठ का आयोजन हो रहा है। दिल्ली, मुंबई समेत महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों और गुजरात के कई हिस्सों में छठ का बड़े पैमाने पर आयोजन होने लगा है।
सामाजिक समरसता की दिख रही अद्भुत मिसाल
प्रवासियों के हलचल से गांव गुलजार हो गया है, देश-विदेश में रहने वाले अधिकतर लोग छठ पर्व में शामिल होने के लिए अपने गांव आ चुके हैं तो सामाजिक समरसता की अद्भुत मिसाल दिख रही है। जातिवाद का चाहे लोग जितना भी हल्ला करें, लेकिन बनाए जा रहे छठ घाटों पर न कोई जातिभेद दिख रहा है न कोई वर्ग भेद, सभी जाति और समुदाय के लोग मिलजुलकर घाट तैयार कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर छा गया ग्लोबल बिहारी पर्व छठ
उगते हुए सूर्य की तो दुनिया में सभी पूजा करते हैं, लेकिन डूबते सूर्य की पूजा का यह बिहारी पर्व आज जब ग्लोबल होकर पूरी दुनिया में छा गया है तो सोशल मीडिया के भी तमाम प्लेटफार्म पर छठ के गीत, छठ की बधाई और इसकी प्रासंगिकता दिख रही है। आज रविवार को जब संध्या कालीन अर्घ्य होना है तो इसको लेकर सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म टि्वटर, फेसबुक, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर लोग बधाई दे रहे हैं।
तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग कह रहे हैं कि छठ एक ऐसा त्योहार है जो चार दिन चलता है लेकिन इसमें कोई दंगा नहीं होता, इंटरनेट कनेक्शन नहीं काटा जाता, किसी शांति समिति की बैठक कराने की जरूरत नहीं पड़ती, चंदा के नाम पर गुंडा गर्दी और जबरन उगाही भी नहीं होती। शराब की दुकानें बंद रखने का नोटिस नहीं चिपकाना पड़ता, मिठाई के नाम पर मिलावट नहीं परोसी जाती है। ऊंच-नीच का भेद नहीं होता, व्यक्ति और धर्म विशेष के जयकारे नहीं लगते, किसी से अनुदान और अनुकम्पा की अपेक्षा नहीं रहती है, राजा-रंक एक कतार में खड़े होते है, समझ से परे रहने वाले मंत्रों का उच्चारण भी नहीं होता और पंडितों को दान दक्षिणा का भी इसमें रिवाज नहीं है।
छठ वास्तविक हिंदुस्तान का अद्भुत परिदृश्य
यह प्रकृति का महापर्व एकता है, अखंडता है, आदर है, सद्भावना है, प्रेम है, आराधना है, भावना है,निश्चलता है, प्रकृति है, पावनता है, नदियों की कलकलाहट और पक्षियों का कलरव है। छठ मिट्टी की सुगंध है, माता अन्नपूर्णा की सौंदर्यता है, रिश्तों का समाहार और भाईचारा की मिसाल है। छठ वास्तविक हिंदुस्तान का अद्भुत परिदृश्य है, उगते हुए सूरज को तो सभी प्रणाम करते हैं। डूबते हुए सूरज को सम्मान और प्रणाम देने वाला इकलौता धर्म सनातन भारत का है। भगवान भुवन भास्कर आरोग्यता, विद्वता, निर्मलता, शालीनता, विनम्रता, दानशीलता एवं सहिष्णुता प्रदान करते हैं।
गुलजार रहा फल-फूल का बाजार, फूल उत्पादक किसान गदगद
उधर, सूर्योपासना के महापर्व के मौके पर फल और फूलों का बाजार भी गुलजार रहा। फल की दुकानों, ईख और फूल और फूल मालाओं की जमकर बिक्री हुई। गेंदा फूल की भारी मांग को देखते हुए फूलों की खेती करने वाले किसान गदगद नजर आए। हालांकि फलों की कीमतों में इस बार कोई खास इजाफा नहीं हुआ है लेकिन कोरोना संकट के दो वर्षों के बाद फल-फूल के बाजार में रौनक नजर आ रही है। पूजा के अन्य सामानों के मूल्य में भी इस बार कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। इसलिए ग्राहक और विक्रेता दोनों को फायदा मिल रहा है।