National

Uniform Civil Code Bill : राज्यसभा में पेश करने को मंजूरी



बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता : Uniform Civil Code Bill : राज्यसभा में पेश करने को मंजूरी राज्यसभा में शुक्रवार को भाजपा सांसद किरोड़ी लाल मीणा ने ‘भारत में समान नागरिक संहिता पर निजी विधेयक पेश किया। बिल को पेश करने के बाद मतदान हुआ, जिसके पक्ष में 63 वोट पड़े, जबकि विपक्ष में 23 वोट डाले गए। देश में समान नागरिक संहिता को लागू करने के उद्देश्य से यह प्रस्ताव रखा गया था।

Parliament


Uniform Civil Code Bill : क्या है समान नागरिक संहिता ?

समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है। दूसरे शब्दों में,अलग-अलग पंथों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ की मूल भावना है। समान नागरिकता कानून के अंतर्गत आने वाले मुख्य विषय व्यक्तिगत स्तर, संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन का अधिकार और विवाह, तलाक और गोद लेना शामिल है। हालांकि समय के साथ साथ कई सिविल कानूनों को सहिंताबद्ध कर दिया गया। वर्तमान समय में हिन्दू कानून ( जिसमे हिन्दू, बौद्ध ,जैन तथा सिख ) सहिंताबद्ध हो चुके हैं परन्तु मुस्लिम समुदाय,पारसी समुदाय तथा ईसाई समुदाय में अभी भी कई नियम पर्सनल लॉ के अनुसार संचालित होते हैं। इसके लिए कई बार समान नागरिक सहिंता लागू करने की मांग उठती है।

बहुत पुराना है समान नागरिक संहिता की माँग का इतिहास

समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा का विकास औपनिवेशिक भारत में तब हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, हालाँकि रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई। ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि के कारण सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति गठित की। इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिये निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने हेतु वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया। हालाँकि मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।


कानून में समरूपता लाने के लिये विभिन्न न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये। प्रायः यह तर्क दिया जाता है ‘ट्रिपल तलाक’ और बहुविवाह जैसी प्रथाएँ एक महिला के सम्मान तथा उसके गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, केंद्र ने सवाल उठाया है कि क्या धार्मिक प्रथाओं को दी गई संवैधानिक सुरक्षा उन प्रथाओं तक भी विस्तारित होनी चाहिये जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

राज्य के नीति निदेशक तत्वों में भी है उल्लेख

संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा। अनुच्छेद-44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वो में से एक है। अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित “धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य” की अवधारणा को मजबूत करना है। भारतीय संसद ने 1948-1951 और 1951-1954 सत्रों के दौरान हिंदू कानून समिति की रिपोर्ट पर चर्चा की। इस प्रकार, इस बिल का एक छोटा संस्करण 1956 में संसद द्वारा चार अलग-अलग अधिनियमों, हिंदू विवाह अधिनियम , उत्तराधिकार अधिनियम , अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम और दत्तक और रखरखाव अधिनियम के रूप में पारित किया गया था।

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 , धर्म के बावजूद किसी भी नागरिक को नागरिक विवाह का एक रूप प्रदान करता है, इस प्रकार किसी भी भारतीय को किसी भी विशिष्ट धार्मिक व्यक्तिगत कानून के दायरे से बाहर विवाह करने की अनुमति देता है।
यूसीसी के प्रस्तावों में एकल विवाह , पैतृक संपत्ति की विरासत पर बेटे और बेटी के लिए समान अधिकार और वसीयत दान, देवत्व, संरक्षकता और हिरासत के बंटवारे के संबंध में लिंग और धर्म तटस्थ कानून शामिल हैं। कानूनों से हिंदू समाज की स्थिति में बहुत अंतर नहीं हो सकता है क्योंकि वे पहले से ही दशकों से हिंदू कोड बिल के माध्यम से हिंदुओं पर लागू होते रहे हैं।

क्या है वर्तमान स्तिथि



वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 आदि। हालाँकि राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किये हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है। वर्तमान में गोवा, भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ UCC लागू है।


निजी विधेयक क्या है?



समान नागरिक संहिता पर ये विधेयक सरकार की तरफ से नहीं बल्कि भाजपा के ही एक सांसद की तरफ से निजी सदस्य विधेयक के तौर पर पेश किया गया है। सरकार की संसदीय प्रणाली में निजी सदस्य बिल कार्यकारिणी शाखा की तरफ से काम नहीं कर रहे किसी सदस्य द्वारा प्रस्तुत विधेयक होता है। “निजी सदस्य बिल” वेस्ट्मिन्स्टर प्रणाली के अधिकार क्षेत्र में काम में लिया जाता है जहाँ “निजी सदस्य” ऐसा कोई भी सांसद हो सकता है जो मंत्रिमण्डल (कार्यकारिणी) का भाग नहीं है। कुछ संसदीय कार्यप्रणालियों में इसका थोड़ा भिन्न शीर्षक भी काम में लिए जाते हैं जैसे स्कॉट्लैण्ड और न्यूजीलैण्ड की संसदों में इसे मेंबर्स बिल (सदस्य विधेयक) कहा जाता है।

Leave a Reply