“अब सब्र नहीं “
“अब सब्र नहीं..
आतंक का संहार चाहिए!.



अब नहीं चाहिए खामोशी की चादर,
अब नहीं चाहिए मजबूरी का आचर।
अब वक्त है गरज उठने का, ललकार का,
अब सब्र नहीं, आतंक का संहार चाहिए!
सीने में जल रही हैं अग्नियाँ क्रोध की,
बहुत झेली हैं आँधियाँ शोक की।
अब हाथों में तिरंगा नहीं, तलवार चाहिए,
अब सब्र नहीं, आतंक का संहार चाहिए!
वो जो मासूमों की नींदें चुराते हैं,
जो मंदिर-मस्जिद में खून बहाते हैं,
उनके लिए अब क्षमा नहीं, प्रहार चाहिए,
अब सब्र नहीं, आतंक का संहार चाहिए!
ये देश अहिंसा की धरती सही,
पर जब हद हो जाए, तो रणभूमि भी वही।
अब गांधी नहीं, अब सुभाष का अवतार चाहिए,
अब सब्र नहीं, आतंक का संहार चाहिए!
सीना चौड़ा है, आँखों में तेज है,
हर भारतवासी अब एक संदेश है—
“ना डरेंगे, ना झुकेंगे, ये संकल्प हमारा है!”
हाँ, मैं भारतीय हूँ — यह अभिमान हमारा है!”
“कवि: सुशील कुमार सुमन”
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर