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“The Bicycle Thief”

“आज मोहन बहुत खुश था। IIT JEE Advanced का रिजल्ट आया था। उसका All India Rank 501 था। उसकी मां, उर्मिला जी, का सपना था कि उसका बेटा IIT कानपुर में पढ़े। पति सत्यनारायण जी के निधन के बाद उर्मिला काफी अकेली हो गई थी। जैसे-जैसे पैसों की तंगी आने लगी, एक-एक करके रिश्तेदारों ने भी साथ छोड़ दिया।

अंततः उर्मिला को कानपुर के स्लम इलाके में टैगोर रोड बस स्टॉप के पास शिफ्ट होना पड़ा। मोहन की पढ़ाई में लगन देखकर उर्मिला ने दिन-रात मेहनत करना शुरू कर दिया। वह लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा, बर्तन धोना, खाना बनाना करने लगी।

इसी दौरान उर्मिला को रामाकांत सर के घर काम मिल गया। रामाकांत सर मदन मालवीय हाई स्कूल में संस्कृत के अध्यापक थे और बड़े नेक इंसान भी। एक दिन उर्मिला अपने बेटे के साथ रामाकांत सर के घर काम करने आई। मोहन बरामदे में बैठकर मैथ्स पढ़ रहा था। रामाकांत सर संस्कृत के शिक्षक थे, लेकिन उनका मैथ्स भी अच्छा था।

रामाकांत सर मोहन के पास गए और बोले, “बेटा, क्या पढ़ रहे हो?”

मोहन ने झिझकते हुए बताया, “मैथ्स का प्रैक्टिस कर रहा हूं, सर।”

रामाकांत सर ने उससे कुछ सवाल पूछे। मोहन ने सही और सटीक जवाब दिए। रामाकांत सर चौंक गए। उन्होंने मोहन का एडमिशन अपने स्कूल में करवा दिया और हॉस्टल भी दिला दिया। अब उर्मिला दिन-रात मेहनत करती और अपने बेटे की सफलता के लिए दुआ मांगती।

मदन मालवीय हाई स्कूल में साइकिल रेस का जबरदस्त क्रेज था। मोहन का भी इसमें भाग लेने का मन था, मगर पैसों की कमी के कारण वह दोस्तों की टूटी-फूटी साइकिल से भी चौथे-पांचवें नंबर पर आ जाता था।

रामाकांत सर की सैलरी भी 90 के दशक में कम थी। उनका परिवार बड़ा था, इसलिए वह ज्यादा मदद नहीं कर पाते थे। समय बीतता गया। स्कूल अब 10+2 स्कूल बन गया। मोहन के भाग्य के सितारे जैसे चमक उठे। उसकी मां को अक्सर चिंता होती थी कि 10+2 की पढ़ाई कैसे होगी। अब वह चिंता दूर हो गई थी।

3 जून को दसवीं का रिजल्ट आया। पूरे कानपुर में मोहन द्वितीय स्थान पर आया था। 3 जून ‘बाइसिकल डे’ भी था, जो मोहन का फेवरेट था। रामाकांत सर अब रिटायरमेंट के नजदीक थे। उनके शिष्य अभिमन्यु सिंह IIT की कोचिंग चलाते थे। रामाकांत सर ने अभिमन्यु सिंह से कहकर न्यूनतम फीस पर मोहन का IIT की तैयारी के लिए एडमिशन करवा दिया।

जब भी अभिमन्यु सर टेस्ट लेते, मोहन उसमें भी शानदार करता। 3 जून को कानपुर में साइकिल रेस का शोर बढ़ता जा रहा था। मोहन का मन भी उस रेस में भाग लेने को मचलता था। लेकिन अपनी मां की गरीबी देखकर वह सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देता था।

फाइनली वह दिन आ गया, जब JEE Advanced का रिजल्ट आया। मोहन ने All India में 501वीं रैंक लाई। सभी लोग बहुत खुश हुए। रामाकांत सर को अपने किए गए कामों पर गर्व महसूस हुआ। अभिमन्यु सिंह का कोचिंग भी पूरे कानपुर में फेमस हो गया। उर्मिला जी आसमान की तरफ देखकर बोलीं, “सत्यनारायण जी, धीरे-धीरे आपका सपना पूरा हो रहा है। थैंक यू एवरीवन।”

मोहन भी वक्त की रफ्तार की तरह धीरे-धीरे तीसरे साल में पहुँच गया। तीसरे साल में मोहन का प्लेसमेंट “इंटेल चिप्स” में हो गया। खुशी से मोहन अपनी मां से मिलने गया। रास्ते में उसे पता चला कि 3 जून 2025 को कानपुर, इंडिया में वर्ल्ड फेमस साइकिल रेस होने वाली है।

जब मोहन अपनी मां से मिला, मां बहुत खुश हुई। मोहन ने मां से कहा, “मां, मैं वर्ल्ड साइकिल चैम्पियनशिप में भाग लेना चाहता हूं।”

उर्मिला ने दिन-रात मेहनत करके 16,000 रुपए की साइकिल खरीद दी। मोहन ने दिन-रात मेहनत की। 2 जून को मोहन ने अपनी साइकिल IIT कानपुर के हॉस्टल हॉल ऑफ रेसिडेंस-2 के गैराज में रखी।

रात को मोहन को पता चला कि उसकी साइकिल चोरी हो गई है। अब वह क्या करे? उसने मां को कुछ नहीं बताया और साइकिल ढूंढ़ने की कोशिश करने लगा, लेकिन साइकिल नहीं मिली।

उसी चक्कर में उसकी भेंट अभिमन्यु सिंह सर से हो गई। उन्होंने पूछा, “सब ठीक है न मोहन?”

मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा, “जी सर, सब ठीक है।”

लेकिन मोहन को साइकिल नहीं मिली। 3 जून को मोहन IIT कानपुर के गेट पर पहुँचा। वह दुखी था कि वह साइकिल चैम्पियनशिप में भाग नहीं ले पाएगा। उसी समय उसने देखा कि उसकी मां उर्मिला auto से उतर रही हैं। मोहन का दिल आत्मग्लानि से भर गया—कैसे मां को जवाब देगा?

तभी पीछे से अभिमन्यु सिंह सर की आवाज आई, “मोहन, जल्दी करो! वर्ल्ड बाइसिकल चैम्पियनशिप कानपुर चैप्टर वन जीतना है!”

मोहन ने पलटकर देखा, तो देखा सर के हाथ में एक नई चमचमाती साइकिल थी। खुशी से मोहन दौड़कर साइकिल ली, अभिमन्यु सर के पैर छुए और मां से आशीर्वाद लिया। फिर रेस में निकल गया।

तीन घंटे बाद उर्मिला और अभिमन्यु सिंह सर ने देखा—IIT कानपुर गेट की तरफ मोहन सबसे पहले आ रहा था। OMG! सचमुच, जिंदगी बहुत खूबसूरत है!”

लेखक: सुशील कुमार सुमन”
अध्यक्ष, आईओए
सेल आईएसपी बर्नपुर

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