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“बार्टर से ब्लॉकचेन तक: पैसा बदला, भरोसा भी बदला”

बार्टर से ब्लॉकचेन तक: पैसा बदला, भरोसा भी बदला”जब हर दौर में पैसे की परिभाषा बदलती रही, तो क्या डॉलर भी हमेशा के लिए दुनिया की करेंसी रहेगा? लेखक: रीतेश कुमार जालान, CERTIFIED FINANCIAL PLANNER®पैसा केवल सिक्का या नोट नहीं — यह भरोसे का प्रतीक है। पहले सोना था, फिर डॉलर बना। अब डिजिटल करंसी और रिज़र्व गोल्ड की दौड़ ने संकेत दिया है कि अगला बड़ा बदलाव करीब है। क्या भारत इस नए दौर में अपनी भूमिका मजबूत कर सकता है?स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी आर्थिक पहचान बनाने की कोशिश की, पर क्या हम सच में मुद्रा के मामले में स्वतंत्र हैं?पैसा बनाम मुद्रा: क्या अंतर है?पैसा एक माध्यम है — मूल्य का आदान–प्रदान करने का ज़रिया। लेकिन मुद्रा (Currency) उसका रूप है — सिक्के, नोट, या आज का डिजिटल पैसा।

यानी पैसा एक विचार है, मुद्रा उसका साधन।आज पूरी दुनिया में “डॉलर” को लेकर चर्चा है। भारत हो या चीन, रूस हो या ब्राज़ील—हर देश चाहता है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार उसकी अपनी मुद्रा में हो। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि यह “मुद्रा” आई कहाँ से? पैसा आखिर है क्या, और इसका भविष्य कैसा दिखता है?बार्टर सिस्टम से सिक्कों तकमानव सभ्यता की शुरुआत में न तो पैसा था, न कोई मुद्रा। आदान-प्रदान वस्तु के बदले वस्तु से होता था। गेंहू के बदले कपड़ा, दूध के बदले अनाज। लेकिन यह व्यवस्था बोझिल थी—अगर आपके पास नमक है और आपको जूते चाहिए, तो यह ज़रूरी नहीं कि जूते वाले को नमक चाहिए ही! इसी समस्या ने जन्म दिया मुद्रा का। पहले धातु के सिक्के आए—सोना, चांदी, तांबा—जिनकी अपनी कीमत होती थी।सिक्कों से काग़ज़ी नोट तकव्यापार के बढ़ने के साथ सिक्कों का ले जाना-ढोना मुश्किल हुआ। तब आए काग़ज़ी नोट—सरकार या राजा का यह वादा कि इस कागज़ के बदले आपको मूल्यवान धातु या वस्तु मिल जाएगी। धीरे-धीरे लोगों ने कागज़ पर भरोसा करना सीख लिया—और मुद्रा का नया रूप सामने आया।

डॉलर क्यों बना राजा?द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1944 में Bretton Woods Agreement के तहत डॉलर को सोने से जोड़ा गया और पूरी दुनिया ने डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार का आधार मान लिया।1971 में अमेरिका ने सोने का लिंक हटा दिया, पर तब तक डॉलर की पकड़ इतनी मजबूत हो चुकी थी कि आज भी 88% वैश्विक व्यापार में डॉलर का इस्तेमाल होता है।सोने का महत्व और रिज़र्व की दौड़जब भी मुद्रा पर भरोसा कम होता है, सोने की अहमियत बढ़ जाती है। यही वजह है कि विश्व के केंद्रीय बैंक लगातार सोना खरीद रहे हैं।भारत के पास लगभग 827 टन सोना रिज़र्व में है (2025 की RBI रिपोर्ट के अनुसार)।चीन के पास 2,300 टन से अधिक और अमेरिका के पास 8,100 टन से ज़्यादा सोना है।सोना सिर्फ़ आभूषण नहीं, यह आर्थिक सुरक्षा कवच है। यही कारण है कि सरकारें डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए अपने गोल्ड रिज़र्व बढ़ा रही हैं।हर बदलाव के पीछे एक सवाल रहा — क्या हम इस नए सिस्टम पर भरोसा कर सकते हैं?🌍

डॉलर का वर्चस्व: क्या यह स्थायी है?

दशकों से डॉलर ने वैश्विक मुद्रा के रूप में राज किया है। लेकिन अब:- चीन, रूस और ब्रिक्स देश डॉलर के विकल्प खोज रहे हैं। – भारत ने भी रुपये में व्यापार की पहल शुरू की है। – डिजिटल करेंसी और रिज़र्व गोल्ड की होड़ ने संकेत दिया है कि भरोसे का केंद्र बदल रहा है।एक CFP के अनुसार, यह बदलाव सिर्फ सरकारों के स्तर पर नहीं, आम लोगों की सोच में भी हो रहा है। लोग अब विविधता और सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहे हैं — सिर्फ डॉलर पर निर्भर रहना अब जोखिम भरा लगने लगा है।🇮🇳 भारत की भूमिका: क्या हम अगला भरोसे का केंद्र बन सकते हैं?भारत के पास:- मजबूत डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (UPI, Aadhaar, CBDC) – युवा और टेक-सेवी जनसंख्या – बढ़ती आर्थिक ताकत और वैश्विक भागीदारीअगर भारत भरोसे का नया मॉडल पेश कर सके — जो पारदर्शिता, स्थिरता और समावेशिता पर आधारित हो — तो हम न केवल आर्थिक शक्ति बन सकते हैं, बल्कि भविष्य की मुद्रा के निर्माता भी।साधारण निवेशक के लिए सीख :पैसे और मुद्रा के फर्क को समझें — भरोसा ही असली पूंजी है।निवेश का एक हिस्सा सोने और अंतरराष्ट्रीय परिसंपत्तियों में रखें।डिजिटल मुद्रा और नए वैश्विक परिवर्तनों के लिए तैयार रहें।”आज़ादी सिर्फ़ झंडा फहराने से नहीं आती, आर्थिक स्वतंत्रता भी उतनी ही ज़रूरी है।”डिस्क्लेमर: यह लेख केवल जानकारी तथा जागरूकता के उद्देश्य से है। इसमें व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं; यह किसी निवेश या नीति संबंधी आधिकारिक सलाह नहीं है।

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