3 साल बाद भी जीएसटी अपने उद्देश्य से दूरः सीडब्ल्यूबीटीए
बंगाल मिरर, कोलकाता: कनफेडरेशन ऑफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशन द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा गया कि जीएसटी के 3 वर्ष पूरे हो चुके हैं। जीएसटी का मुख्य उद्देश्य सीएसटी, एक्साइज और सर्विस टैक्स आदि टैक्स को एक छतरी के नीचे लाना था। शुरुआत में उद्योग एवं व्यापार जगत के अलावा वाणिज्य कर अधिकारियों का मानना था कि इसे आधी अधूरी तैयारी के सामने लाया जा रहा है और समय के साथ ही उपयुक्त ढांचे में आ जाएगा और इसके अनुपालन में सभी को सहूलियत होगी । लेकिन एक के बाद एक कभी न खत्म होने वाले संशोधन और अधिसूचना से लगता है कि जीएसटी अभी भी अपने उपयुक्त स्वरूप में नहीं आ सका है और इसके अनुपालन में अभी भी कठिनाई है।
![](https://i0.wp.com/bengalmirrorthinkpositive.com/wp-content/uploads/2024/05/img-20240520-wa01481045365085360283686.jpg?resize=500%2C428&ssl=1)
![](https://i0.wp.com/bengalmirrorthinkpositive.com/wp-content/uploads/2023/10/IMG-20230207-WA0151-e1698295248979.webp?resize=768%2C512&ssl=1)
कनफेडरेशन के अध्यक्ष सुशील पोद्दार ने कहा कि इसके कई प्रावधान अभी भी नियमों के पालन की राह में रोड़ा बन रहे हैं उन्होंने कहा कि रिटर्न के जटिल नियमों और लगातार होने वाले संशोधनों से व्यापारियों को अधिक पैसे देकर प्रोफेशनल की सेवाएं लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इससे उनका समय और पैसा दोनों खर्च हो रहा है। पहले की व्यवस्था में रिटर्न में संशोधन की सुविधा आसान थी तथा आंकड़े को पेश करना सभी के लिए सहज था। 3b में अब संशोधन की सुविधा मुहैया ना करने से व्यापारियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। सालाना रिटर्न के प्रारूप को और सरल बनाने की जरूरत है जीएसटी के 3 वर्ष होने के बाद अब इसे सहज बनाने का उपयुक्त समय है । जीएसटी संबंधित समस्याएं कई बार ध्यान दिलाने पर भी जस की तस बनी हुई है। जीएसटी को लागू किए जाने पर यह माना गया था ट्रायल आधाा है और गलतियों को देखने के बाद सुधार किया जाएगा, लेकिन इसके बाद भी लेट फीस लेने का कोई औचित्य नहीं है । इस दिशा में जीएसटी विभाग ने सख्त रवैया अपनाया हुआ है । 16(4) तथा 36(बी) की समस्याओं के संबंध में कुछ नहीं किया गया है । बैंक में राशि जमा करने के बाद लगाना अनुचित है। जीएसटीी को लागू करने के 3 वर्ष बाद भी इसके संबंध में कई प्रश्नन अनुत्तरित रह गए हैं और नित्य नई नई समस्याएं सामने आती हैं और लगातार स्पष्टीकरण भी देखने को मिलता है यानी स्थिरता का बेहद अभाव है । वैट से जीएसटी में क्रेडिट के ट्रांसफर का इंतजार अभी भी कई लोग कर रहे हैं ।फंड पर रोक लग जाती है, क्योंकि अतिरिक्त क्रेडिट के रिफंड में काफी लंबा वक्त लग जाता है, जबकि इसके लिए व्यापारी जटिल नियमों के अनुपालन उलझे रहते हैं उनकी समस्याओं का कोई अंत नहीं होता। रिटर्न में वास्तविक और तकनीकी त्रुटि को संशोधित करने का कोई प्रावधान नहीं है। विक्रेता द्वारा चूक करने से ईमानदार करदाता इनपुट क्रेडिट को देने से इनकार करना एक काला कानून है।
परिसेवा मुहैैया करने वाले को जीएसटी की अदायगी के लिए जिम्मेदार ठहराने के बजाए प्राप्तकर्ता डीलर को आरसीएम के तहत कर अदा करने के कानून को हटाने की जरूरत है। मामलों काा लटके रहना अनुपालन की दिशा में एक बड़ा रोड़ाा है जिस पर कामकाज का कीमती वक्त नष्टट होता एक और जहां केंद्र सरकार कर अदायगी के परिमाण से असंतुष्ट है राज्य सरकार भी अपने राजस्व की कटौती से नाखुश है और व्यापारी भी दुखी हैं क्योंकि उन्हें अनुपालन के बोझ तले दब ना पड़ रहा है और उन्हें फीस की दिशा में अधिक खर्च करना पड़ रहा है आम जनता और वक्ताओं को भी परेशानी है क्योंकि उन्हें अधिक टैक्स देना पड़ रहा है और पेट्रोल डीजल पर केंद्र और राज्य की कराएगी की दोहरी प्रणाली है।