साहित्य

भारतीय गणतंत्र

Prakash chandra burnwal

सूर – वीर सेना के बल पर, संरक्षित है देश हमारा।
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, है अपना गणतंत्र हमारा।।

तरह – तरह के लोग यहाँ पर,
भाषा, प्रांत, मजहब से ऊपर।
अनेकता में एकता का स्वर,
राष्ट्र – धर्म है सबसे ऊपर।।

जयहिंद के नारों से, गूँज रहा है कण – कण सारा।
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, है अपना गणतंत्र हमारा।।

सत्य, अहिंसा का संवाहक,
आन, बान औ’ शान का द्योतक।
विश्व – शांति का अपना नारा,
सबका विकास है लक्ष्य हमारा।।

आओ मिल संकल्प करें, दीन – दुःखी का बनें सहारा।
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, है अपना गणतंत्र हमारा।।

मानवता का यह संरक्षक,
आतंकवाद का घोर विरोधक।
सुसंस्कारी – हो युवा हमारा,
हम सबको है भारत प्यारा।।

सर्वधर्म समभाव का नारा, गूँजेगा हर घर चौबारा।
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, है अपना गणतंत्र हमारा।।

संविधान की मर्यादा का,
चीर – हरण नहीं होने पाएं।
राष्ट्र – द्रोह का दंड उन्हें दो,
जो अंधकार जग में फैलाए।।

सु – गठित हो सज्जन सारा, दुर्जन से हम करें किनारा।
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, है अपना गणतंत्र हमारा।।

राष्ट्र – धर्म की ज्योत जलाएँ,
जन – जन में नव जागृति लाएँ।
भेद – भाव का भूत भगाएँ,
सबको सुखी, समर्थ बनाएँ।।

विश्व श्रेष्ठ जब बनेगा भारत, व्रत होगा तब पूर्ण हमारा।
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा, है अपना गणतंत्र हमारा।।

प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’, आसनसोल।

Leave a Reply