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सीटी स्कैन और होम आइसोलेशन से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल और जवाब, राम मनोहर लोहिया (आर.एम.एल.) अस्पताल के डॉ. ए. के. वार्ष्णेय की सलाह

बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता :  देश में इस समय कोरोना की दूसरी लहर जारी है। ऐसे में संक्रमण की रफ्तार भी पहले की तुलना में बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर मरीज होम आइसोलेशन (Home Isolation) में रहकर ठीक हो रहे हैं। इस दौरान यह भी देखने में आ रहा है कि होम आइसोलेशन में रहते हुए कुछ लोग खुद से सीटी स्कैन के लिए दौड़ भाग भी कर रहे हैं। ऐसे में राम मनोहर लोहिया (आर.एम.एल.) अस्पताल के डॉ. ए. के. वार्ष्णेय लोगों को खास सलाह दे रहे हैं। वे बताते हैं कि आखिर ऐसी स्थिति में सीटी स्कैन कब जरूरी है। इसके अलावा वे फेफड़ों में निमोनिया के संक्रमण और आइसोलेशन से संबंधित कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब भी देते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं इनके बारे में…

कोरोना संक्रमण होने के बाद फेफड़ों में कितना संक्रमण है, जानने के लिए क्या सीटी स्कैन जरूरी है ?

अगर आरटी-पीसीआर में पॉजिटिव हैं और ऑक्सीजन लेवल गिर रहा है तो खुद से सीटी स्कैन कराने की जरूरत नहीं है। डॉक्टर के पास जाएं, उन्हें पता है कि कैसे इलाज करना है, लेकिन अगर बुखार नहीं उतर रहा है तो कई बार कुछ ब्लड टेस्ट कराए जाते हैं। यदि आरटी-पीसीआर नेगेटिव है, कोविड के लक्षण हैं और ऑक्सीजन लेवल गिरता है तो उस समय निमोनिया की संभावना भी रहती है। तब भी डॉक्टर सीटी स्कैन कराते हैं, जिससे फेफड़ों में निमोनिया का क्या स्तर है यानि सीवियरटी कितनी है ये पता चलता है। सीटी स्कैन में दोनों लंग्स (फेफड़े) को 25 हिस्सों में बांटा जाता है। उनमें से कितने हिस्से प्रभावित हुए हैं यह पता चलता है।

क्या निमोनिया से बचाव के लिए वैक्सीन लगाने से कोरोना वायरस का प्रभाव फेफड़े पर नहीं होगा ?

फेफड़ों में कई कारणों से इंफेक्शन होता है, जिसे निमोनिया कहते हैं। कुछ लोग जैसे बुजुर्गों, सीओपीडी, अस्थमा डायबिटीज आदि कोमोरबिडिटी वाले लोगों को न्यूमोकोकल और इन्फ्लूएंजा से फेफड़ों में निमोनिया होने की संभावना होती है। इससे बचने के लिए न्यूमोकोकल और इन्फ्लूएंजा नामक वैक्सीन लगाई जाती है। यह उन्हें फेफड़ों के इंफेक्शन से बचाने में मदद करती हैं।

जहां तक कोरोना का सवाल है, इससे बचने के लिए अलग वैक्सीन उपलब्ध हो गई है। कोरोना के लिए इसी वैक्सीन को लगाने से बचाव होगा। हालांकि बुजुर्ग उन दोनों वैक्सीन को भी लगवा सकते हैं, लेकिन इनमें 15 दिन का अंतर जरूर होना चाहिए, लेकिन इसका कोरोना से कोई संबंध नहीं है।

होम आइसोलेशन में रहने के लिए किन मरीजों को सलाह दी जाती है ?

कोरोना में 90 प्रतिशत मरीजों में अपर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन होता है यानि सिर्फ बुखार, शरीर में दर्द, गले में खराश, स्मेल और टेस्ट का न आना जैसे लक्षण होते हैं। ऐसे व्यक्ति 10 से 15 दिन में घर पर रह कर ही ठीक हो सकते हैं लेकिन उसके लिए घर में एक अलग से कमरा हो, पल्स ऑक्सीमीटर, बुखार नापने वाला थर्मामीटर आदि हो तब होम आइसोलेशन दिया जाता हैं, लेकिन जो लोग बुजुर्ग, डायबिटीज, हार्ट मरीज हैं उन्हें तभी होम आइसोलेशन देते हैं, जब वो लगातार डॉक्टर से संपर्क में रहते हैं या परिवार में कोई उनकी देखभाल करने वाला हो, तो ही ऐसा किया जा सकता है।

आइसोलेशन खत्म होने के बाद क्या कोई वायरस ट्रांसमिट कर सकता है?

अगर कोई एसिंप्टोमेटिक या माइल्ड इंफेक्शन वाला है तो आइसोलेशन के 10 दिन में अगर 3 से 6 दिन तक बिना किसी दवा के बुखार नहीं है तो व्यक्ति से संक्रमण की संभावना कम होती है, लेकिन अगर दवा ले रहे हैं या बीच में बुखार या खांसी जैसे लक्षण हैं तो वायरस का संक्रमण फैल सकता है। इसलिए आइसोलेशन पूरा करें।

मास्क लगा अगर कोई खांसता या बोलता है तो क्या वायरस बाहर आ सकते हैं?

ये निर्भर करता है कि व्यक्ति ने किस तरह का मास्क लगाया है। अगर किसी ने एन-95 मास्क लगाया है तो 95 प्रतिशत सुरक्षा मिलती है। एन-95 को काफी अच्छा माना जाता है। इसके बाद आता है सर्जिकल मास्क। ये ज्यादातर लोग ढीला लगाते हैं। लेकिन इसे इस तरह लगाएं कि मास्क लगाने के बाद मुंह की भाप या हवा बाहर न जाएं क्योंकि अगर हवा बाहर आ रही है तो अंदर भी जा सकती है। इससे वायरस शरीर में प्रवेश कर सकता है।

अब आता है कॉटन का मास्क जो थोड़ा इन दोनों से कम या 50 प्रतिशत तक प्रोटेक्शन देते हैं। ऐसे में अब डबल मास्क लगाने के लिए कहा जा रहा है। अगर बाहर जा रहे हैं तो नीचे सर्जिकल मास्क लगाएं और ऊपर से कॉटन मास्क लगाएं। ऊपर कॉटन मास्क इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उसे धो सकते हैं। लेकिन एन-95 मास्क लगाया तो डबल मास्क की जरूरत नहीं है।

News Editor

Mr. Chandan | Senior News Editor Profile Mr. Chandan is a highly respected and seasoned Senior News Editor who brings over two decades (20+ years) of distinguished experience in the print media industry to the Bengal Mirror team. His extensive expertise is instrumental in upholding our commitment to quality, accuracy, and the #ThinkPositive journalistic standard.

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