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अब 4 दिन पहले ही मिलेगी तूफान की जानकारी, IIT खड़गपुर की टीम ने विकसित की आधुनिक तकनीक

बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता :  भारत के आपदा प्रबंधन तंत्र को और अधिक मजबूती प्रदान करने की दिशा में निरंतर प्रयास जारी है। इसका अंदाजा बड़ी ही आसानी से लगाया जा सकता है। दरअसल, आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में आजादी के समय से लेकर यदि वर्तमान स्थिति की तुलना की जाए तो इस क्षेत्र में भारत की बढ़ती ताकत का अनुमान लगाया जा सकता है। अब इस दिशा में भारत ने एक और कदम आगे बढ़ाया है। जी हां, भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी सटीक तकनीक तैयार की है, जो उत्तर हिन्द महासागर क्षेत्र के ऊपर बनने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का पता सेटेलाइट की सूचना यानि रिमोट सेंसिंंग से भी पहले लगा लेगी। आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में…

आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने ईजाद की है तकनीक

आईआईटी खड़गपुर के जिया अल्बर्ट, बिष्णुप्रिया साहू और प्रसाद के भास्करन जैसे वैज्ञानिकों के दल ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के तहत एक नई तकनीक ईजाद की है। इसमें बवंडर का सुराग लगाने वाली तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है और उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में ट्रॉपिकल साइक्लोन बनने की स्थिति और उसकी पूर्व-चेतावनी दी जा सकती है। अनुसंधानकर्ताओं ने इस विषय पर ‘एटमॉसफेरिक रिसर्च’ नामक पत्रिका में अपना शोध प्रकाशित किया है। वैज्ञानिकों ने जो तकनीक विकसित की है, उसका मकसद है कि तूफान आने से पहले ही बंवडर और भंवरदार हवा का सुराग लगा लिया जाए। वैज्ञानिक इसकी पहचान और भंवरदार हवा का विश्लेषण करने के लिए दो चीजों के बीच की न्यूनतम दूरी को आधार बनाते हैं। इसका पैमाना 27 किलो मीटर और नौ किलो मीटर का है। इससे बनने वाली तस्वीर का मूल्यांकन करके पता लगाया जाता है कि तूफान की भावी दशा और दिशा क्या हो सकती है। इस अध्ययन में मॉनसून के बाद आए चार भयंकर तूफानों को विषय बनाया गया था- फाइलिन (2013), वरदाह (2013), गाजा (2018), मादी (2013) और दो तूफान मॉनसून के बाद आए- मोरा (2017) और आयला (2009), जो उत्तर हिंद महासगार के ऊपर बने थे।

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तूफान आने के 90 घंटे पहले लग जाएगा पता

वैज्ञानिकों के दल ने गौर किया कि इस तकनीक से कम से कम चार दिन (लगभग 90 घंटा पहले) पहले तूफान के आने का पता लगाया जा सकता है कि वह कब बनेगा। इसमें मॉनसून से पहले और बाद, दोनों समय आने वाले तूफान शामिल हैं। ट्रॉपिकल साइक्लोन वातावरण की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और पूर्व-मॉनसून काल के हवाले से जल्दी पकड़ में आ जाते हैं, जबकि मॉनसून पश्चात इसे इतनी तेजी से नहीं पकड़ा जा सकता। इस अध्ययन में बवंडर और भंवरदार हवा की गहन पड़ताल की गई, उनके व्यवहार को जांचा-परखा गया तथा आम दिनों के वातावरण के साथ इसके नतीजों की तुलना की गई। इस तकनीक से ट्रॉपिकल साइक्लोन का वातावरण में ही सुराग लगाया जा सकता है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को उपग्रह द्वारा पकड़ने से भी तेज है।

चक्रवात आने से पूर्व अब नुकसान से बचने की प्रक्रिया और होगी तेज

भविष्य में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों यानि ट्रॉपिकल साइक्लोन का पहले पता लगने से सामाजिक और आर्थिक नुकसान से बचने का मौका मिलेगा। बताना चाहेंगे, अभी तक दूर संवेदी यानि रिमोट सेंसिंग तकनीक के जरिए ही उनका पता सबसे तेजी से लगाया जाता रहा है। बहरहाल, इस रिमोट सेंसिंग तकनीक से पता लगाना उसी समय संभव होता था, जब समुद्र के पानी की ऊपरी सतह गर्म हो और कम दबाव का क्षेत्र बन रहा हो। इसका पता लगाने और चक्रवात के वजूद में आने के बीच काफी लंबा अंतराल होता है, जिससे तैयारी करने का वक्त मिल जाता है। समुद्री सतह पर गर्म वातावरण बनने के हवाले से चक्रवात के वजूद में आने से पहले, वातावरण में अस्थिरता आने लगती है और हवा भंवरदार बनने लगती है। इस गतिविधि से वातावरण में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। इस तरह के बवंडर से जो वातावरण बनता है, वह आगे चलकर तेज तूफान को जन्म देता है और समुद्र की सतह के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। तेज तूफान आने की संभावना का इन्हीं गतिविधियों से पता लगाया जाता है।

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अब तूफान के आने से 4 दिन पहले मिल जाएगी जानकारी

भारतीय वैज्ञानिकों ने उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के विकास और मजबूती का पता लगाने के लिए एक नई तकनीक खोज निकाली है। यह तकनीक उपग्रह से भी पहले उत्तरी हिन्द महासागर क्षेत्र के ऊपर बनने वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का पता लगा लेगी। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का पहले पता लग जाने पर केंद्र और राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों की सरकारें इन तूफानों के आने से पहले पूरी तरह से तैयार रहेंगीं, जिससे जान-माल की क्षति बहुत कम होगी।

पिछले महीने ‘यास’ और ‘ताउते’ ने मचाई थी तबाही

कम वायुमंडलीय दवाब के चारों-ओर गर्म हवा की तेज आंधी को चक्रवात कहते हैं। चक्रवात दो प्रकार के होते हैं- ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात एवं शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात। बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात बनते हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वालों की तुलना में अरब सागर के चक्रवाती तूफान अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं। कुछ दिनों पहले बंगाल की खाड़ी में आए चक्रवात, ‘यास’ ने, अरब सागर में पिछले महीने आए ‘ताउते’ की तुलना में ज्यादा क्षति पहुंचाई थी।

वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पनपते हैं ये चक्रवात

उष्णकटिबंधीय चक्रवात वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और मानसून के बाद के मामलों के विपरीत, पूर्व-मानसून मामलों में जल्दी पकड़ में आ जाते हैं। इस तकनीक से उष्णकटिबंधीय चक्रवात का वायुमंडल में ही पता लगाया जा सकता है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को पकड़ने में उपग्रह की तुलना में ज्यादा तेज है।

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अब तक इनका पता लगाने के लिए सिर्फ सुदूर संवेदन तकनीक पर थे निर्भर

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में होती है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। अब तक इन चक्रवातों का जल्दी पता लगाने के लिए हम सुदूर संवेदन तकनीक पर निर्भर थे। हालांकि, यह पता लगाना तभी संभव था, जब गर्म समुद्र की सतह पर एक कम दबाव प्रणाली वाला क्षेत्र विकसित हो गया हो। चक्रवात का पता लगाने और उसके प्रभाव के बीच एक बड़ा समय अंतराल तैयारी संबंधित गतिविधियों में मदद कर सकता है।

जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत किया गया विकसित

आईआईटी खड़गपुर के जिया अल्बर्ट, बिष्णुप्रिया साहू और प्रसाद के. भास्करन सहित वैज्ञानिकों की एक टीम ने जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के सहयोग से एडी डिटेक्शन तकनीक का उपयोग करके एक नई विधि तैयार की है। यह विधि उत्तर हिंद महासागर क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय साइक्लोजेनेसिस के प्रारंभिक चरणों का पता लगाने के लिए तैयार की गई है। यह शोध हाल ही में ‘एटमॉस्फेरिक रिसर्च’ जर्नल में प्रकाशित हुआ था।

यह तकनीक समुद्र की सतह के ऊपर होने वाली गतिविधियों से लगाती हैं चक्रवात का पता

समुद्री सतह पर गर्म वातावरण बनने से चक्रवात के वजूद में आने से पहले, वातावरण में अस्थिरता आने लगती है। साथ ही हवा भंवरदार बनने लगती है। इसके कारण वातावरण में उथल-पुथल शुरू हो जाती है। ऐसे बवंडरों से जो स्थिति बनती है, वह आगे चलकर चक्रवात को जन्म देती है। इसके बाद समुद्र की सतह के ऊपर कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। यह तकनीक इन्हीं गतिविधियों से तेज तूफान आने की संभावना का पता लगाती है।

तूफान के आने से 90 घंटे पहले देगी जानकारी

इस अध्ययन में बवंडर और भंवरदार हवा की गहन पड़ताल की गई, उनके व्यवहार को जांचा-परखा गया एवं आम दिनों के वातावरण के साथ इसके नतीजों की तुलना की गई। वैज्ञानिकों ने बताया कि इस तकनीक से तूफान के आने से 90 घंटे यानि लगभग चार दिन पहले इसका पता लगाया जा सकता है। यह इसके बनने के समय की भी जानकारी देता है। इनमें मानसून से पहले और बाद, दोनों समय आने वाले तूफान शामिल हैं।

मानसून के बाद के मामलों की तुलना में पूर्व-मानसून मामलों को ट्रैक करना आसान

उष्णकटिबंधीय चक्रवात वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पनपते हैं और मानसून के बाद के मामलों के विपरीत, पूर्व-मानसून मामलों में जल्दी पकड़ में आ जाते हैं। इस तकनीक से उष्णकटिबंधीय चक्रवात का वायुमंडल में ही पता लगाया जा सकता है। यह तकनीक समुद्री सतह के ऊपर की हलचल को पकड़ने में उपग्रह की तुलना में ज्यादा तेज है।

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