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BIRSA MUNDA JAYANTI : 15 नवंबर, भगवान बिरसा मुंडा जयंती ‘जनजातीय गौरव दिवस’

बंगाल मिरर, विशेष संवाददाता : ( BIRSA MUNDA JAYANTI ) अगर आपको अपने आसपास की दुनिया का एहसास नहीं है तो स्वाभाविक है कि आप निराश और हताश होकर घुटने टेक देंगे, लेकिन अगर आप निडर हैं, हिम्मती हैं, अपनी सभ्यता और संस्कृति से गहरे लगाव रखते हैं तो तय मानिये दुनिया आपके सामने घुटने टेक देगी। हम ये बात इसलिए कह रहे हैं कि केंद्र सरकार जिस तरह से पिछले कुछ सालों से अपनी संस्कृति को, उसकी भूली-बिसरी यादों को संजो कर चलने की परंपरा पर कायम है, उसके सामने विश्व नतमस्तक है। योग्य और अध्यात्म को वैश्विक मान्यता दिलाने की बात हो या 100 साल से अधिक समय से विदेशों में रही अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति की स्वदेश वापसी की बात हो, भारत सरकार ने चोरी करके विदेश ले जाई गईं वस्तुओं या मूर्तियों को भारत लाकर न सिर्फ देश का खोया हुआ सांस्कृतिक गौरव वापस दिलाया है, बल्कि वैश्विक मानचित्र पर भारत का रसूख भी बढ़ाया है।

Birsa Munda
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जनजातीय गौरव दिवस

( BIRSA MUNDA JAYANTI ) आज इसी दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए केंद्र सरकार इस वर्ष पूरे देश में 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मना रही है। पीएम मोदी ने आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से रांची में भगवान बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान और सह स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय का वर्चुअली लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि एक बड़े पेड़ को मजबूती से खड़े रहने के लिए अपनी जड़ों से मजबूत होना पड़ता है और आत्मनिर्भर भारत अपनी जड़ों से जुडने और मजबूत बनने का ही संकल्प है। पीएम ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा के आशीर्वाद से देश अपने अमृत संकल्पों को पूरा करेगा और विश्व को भी दिशा देगा।

( BIRSA MUNDA JAYANTI ) पीएम मोदी ने कहा, “भगवान बिरसा मुंडा ने अस्तित्व, अस्मिता और आत्मनिर्भरता का सपना देखा था। देश भी इसी संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहा।” मध्य प्रदेश की धरती वीर जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से पटी पड़ी है। उन्हीं बलिदानियों की स्मृति में इस उत्सव का आयोजन हो रहा है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उन देशभक्तों के बलिदान के बारे में जान सकें, उनसे प्रेरित हो सकें। पेरिस जलवायु सम्मेलन से आगे की सोच जिस उम्र में लोग होश संभालने और सोचने का काम करते हैं, उस उम्र तक हर दिन को आखिरी दिन मानकर देशभक्त बिरसा मुंडा ने जिया और महज 25 साल की उम्र में ही शहीद होकर हमें एक ऐसा पर्यावरण दे गए, जिसके लिए दुनिया डेढ़ सौ साल बाद पेरिस जलवायु जैसे कई सम्मेलनों में बैठ रही है ताकि बिरसा मुंडा की सोच जैसी पर्यावरणीय स्थितियां मिल सकें और दमघोंटू हवा से इतर हम युगों-युगों तक अनुकूल पर्यावरणीय माहौल में सांस ले सकें। चलिए जानते हैं कौन थे बिरसा मुंडा, जो देश ही नहीं, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में पूरे विश्व के गौरव हैं।

( BIRSA MUNDA JAYANTI ) जननायक बिरसा मुंडा

भारत के इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक हुए, जिन्होंने अपने पुरुषार्थ से आदिवासी समाज की दशा और दिशा में बदलाव लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। वे भारत के स्वाधीनता संग्राम के एक महत्वपूर्ण सेनानी तथा आदिवासी जननायक थे। ‘उलगुलान’ यानी जल – जंगल – जमीन पर आदिवासियों की दावेदारी के संघर्ष को माध्यम बनाकर बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास में ‘धरती आबा’ यानी धरती पिता के रूप में अमर हो गए। सन 1894 में बारिश न होने की वजह से छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में भीषण अकाल और महामारी फैल गई। ऐसे में बिरसा मुंडा ने पूर्ण समर्पण भाव से लोगों की सेवा की तथा आदिवासी समाज को अन्धविश्वास के दुष्चक्र से बाहर निकालकर बीमारियों का इलाज करवाने के प्रति जागरूक किया।

अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को जंगल से बेदखल करने के उद्देश्य से एक कानून पारित किया गया। इस कानून के माध्यम से आदिवासियों के गांव तथा खेत, जंगल आदि जमींदारों में बाँट दिए गए और जमींदारी व्यवस्था लागू कर आदिवासियों को जंगल के अधिकार से वंचित कर दिया गया। राजस्व की इस नई व्यवस्था के माध्यम से अंग्रेजों, जमींदारों व महाजनों द्वारा भोले-भाले आदिवासियों के शोषण और दमन का चक्र आरम्भ हुआ। अंग्रेजों द्वारा लागू की गई नई राजस्व व्यवस्था और जमींदारी प्रथा के खिलाफ बिरसा ने विद्रोह का बिगुल बजाया। अपनी स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए आदिवासी बिरसा मुंडा के नेतृत्व में संगठित होने लगे। अत्याचारी और क्रूर शासन के विरुद्ध बिरसा ने उलगुलान यानी जल-जंगल-जमीन पर दावेदारी की चिंगारी फूंकी। उनका नारा था, ‘अबुआ राज सेतेर जाना, महारानी राज टुंडु जाना’। इसका अर्थ है – रानी का राज्य समाप्त हो जाये और हमारा राज्य स्थापित हो जाये। बिरसा मुंडा ने जनता को संगठित कर अंग्रेजी राज के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह का बिगुल बजा दिया और छापामार लड़ाइयों के माध्यम से अंग्रेजी शासन की नाक में दम कर दिया।  

बिरसा और उनके दल से आतंकित होकर अंग्रेजों ने उन्हें पकड़वाने पर पाँच सौ रूपए का इनाम भी घोषित किया, जो उस समय काफी बड़ी रकम थी। बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के बीच अंतिम और निर्णायक लड़ाई रांची के पास एक पहाड़ी पर हुई। अपने आधुनिक हथियारों की बदौलत अंग्रेजों ने तीर – कमान और भालों आदि से लैस आदिवासियों को बेरहमी से कुचल दिया। इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई किन्तु बिरसा उनके हाथ नहीं आये। बिरसा को इनाम की रकम के लालच में बाद में उनके ही कुछ लोगों ने पकड़वा दिया। यातनाओं और उत्पीड़न के कारण जून 1900 में रांची के कारागार में ही बिरसा ने अपनी अंतिम साँसें लीं। 25 वर्ष के अपने छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने इतिहास पर अपनी अमिट छाप छोड़ी और अपना नाम सदैव के लिए स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा लिया।

पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में बिरसा मुंडा को याद किया था

पीएम मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम की 82वीं कड़ी में बिरसा मुंडा को याद करते हुए कहा कि क्या आप जानते हैं कि ‘धरती आबा’ का अर्थ क्या होता है? इसका अर्थ है धरती पिता। बिरसा मुंडा ने जिस तरह अपनी संस्कृति, अपने जंगल, अपनी जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष किया, वो धरती आबा ही कर सकते थे। उन्होंने सभी को अपनी संस्कृति और जड़ों के प्रति गर्व करना सिखाया। विदेशी हुकूमत ने उन्हें कितनी धमकियां दीं, कितना दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने आदिवासी संस्कृति को नहीं छोड़ा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा ने विदेशी शासन की हर उस नीति का पुरजोर विरोध किया, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली थी। गरीब और मुसीबत से घिरे लोगों की मदद करने में भगवान बिरसा मुंडा हमेशा आगे रहे।

उलगुलान आंदोलन का जिक्र करते हुये प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बिरसा मुंडा ( BIRSA MUNDA JAYANTI ) के नेतृत्व में हुये उलगुलान आंदोलन को भला कौन भूल सकता है! इस आंदोलन ने अंग्रेजों को झकझोर कर रख दिया था, जिसके बाद अंग्रेजों ने भगवान बिरसा मुंडा पर बहुत बड़ा इनाम रखा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि जनमानस में भगवान बिरसा मुंडा हमेशा-हमेशा के लिए रचे-बसे हुए हैं। लोगों के लिए उनका जीवन एक प्रेरणा शक्ति बना हुआ है। आगे उन्होंने कहा कि आज भी बिरसा मुंडा के साहस और वीरता से भरे लोकगीत और कहानियां भारत के मध्य इलाके में बेहद लोकप्रिय हैं। प्रधानमंत्री ने बिरसा मुंडा को नमन करते हुए युवाओं से उनके बारे में और पढ़ने का आग्रह भी किया।

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