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ASANSOL HISTORY : 1742 का जंगल ही है आज का आसनसोल

कुख्यात भास्कर पंडित को भगाने के बाद उपहार में मिला था

नकड़ी राय और रामकृष्ण राय की वीरता और देशभक्ति से प्रभावित होकर महाराजा ने दान में दी थी यह वन भूमि

ASANSOL शहर के दिल में बसा है आसनसोल गांव

Written by,Sachindranath Roy

आसनसोल के विशिष्ट समाजसेवी व्यवसाई राय परिवार के वंशज सचिन्द्रनाथ राय के कलम से पढ़े आसनसोल का इतिहास (ASANSOL HISTORY) भूवैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि चौथे तुषार युग के अंत में अजय और दामोदर घाटियों में विशाल वन भूमि बनी थी जो कि बर्दवान के पश्चिमी भाग में सेनपहाड़ी से लेकर बराकर तक जंगल फैला हुआ था । रानीगंज – बराकर में आसनसोल वनभुमि थी । इस क्षेत्र में आसन के वृक्षों की अधिकता के कारण इसे आसनसोल वन कहा जाता था । आसन वन ही बाद में आसानसोल बन गया । इसी प्रकार मुर्गाशाल , सियारसोल आदि का नाम भी वृक्षों के नाम पर रखा गया है ।

ASANSOL HISTORY
आसनसोल गांव में स्थापित नकड़ी राय और रामकृष्ण राय के प्रतिमा

कैसा था यह जंगल ? एक शब्द में कहा जा सकता है कि यह जंगल भयंकर हिंसक जानवरों से भरा था । अब आसनसोल के ऐतिहासिक संदर्भ पर आते हैं । बादशाह अकबर के समय से हम सीधे 1740 ईस्वी में आ जाते हैं । इस समय बंगाल के नवाब थे अलीवर्दी खान । इस समय शत्रुघ्न शेखर गरुड़ नारायण सिंहदेव पंचकोटी के सिंहासन पर विराजमान थे । 1742 के बाद से भास्कर पंडित के नेतृत्व में बंगाल में लगातार बर्गी हमले होते रहे । पंचकोट राज्य में भी हमला हुआ । इस अवधि के दौरान , दो क्षत्रिय वीर नकड़ी राय और रामकृष्ण राय आसनसोल वनांचल में पंचकोट राज्य के सीमावर्ती बलों के सेनापति थे ।

1742 में बर्गी के एक समूह ने आसनसोल के जंगल में प्रवेश करने की कोशिश की । नकड़ी- रामकृष्ण और उनकी पंचकोट सेना ने आसनसोल के जंगल में प्रवेश करने की आक्रमणकारियों के प्रयास को विफल कर दिया । आसनसोल के जंगल में काफी खून बहा था । उस खूनी जंगल में खड़े होकर हमें दो अलग – अलग इतिहास मिलते हैं । एक है हत्या , लूटपाट , महिलाओं पर अत्याचार और आगजनी का कुख्यात इतिहास इस अमानवीय इतिहास के रचयिता भास्कर पंडित के नेतृत्व वाला वर्ग है । दूसरा है वीरता और देशभक्ति का गौरवशाली इतिहास । इस महान इतिहास के रचयिता नकड़ी और रामकृष्ण हैं ।

ASANSOL HISTORY : जंगल काटकर बसाया था गांव

नकड़ी और रामकृष्ण की वीरता और देशभक्ति से प्रभावित होकर पंचकोट के महाराजा गरुड़ नारायण सिंह ने भी अपने आसनसोल जंगल के एक बड़े क्षेत्र में 376/2 ( तीन सौ छिहत्तर रुपये चार आना दो पाई ) जागीर दान की । आधिकारिक दस्तावेज बताते हैं कि यह क्षेत्र जला मानभूम , परगना शेरगढ़ में स्थित है । यह क्षेत्र पंचकोट राज्य के अंतर्गत आता है । तब जागीरदार नकड़ी राय और रामकृष्ण राय ने जंगल काटकर गांव की स्थापना की । गांव का नाम आसनसोल है ।

जब आसनसोल गांव की स्थापना हुई थी , उस समय आसपास के क्षेत्र में कोई अन्य गांव या शहर नहीं बना था । उस समय का निकटतम गांव पश्चिम में नियामतपुर और पूर्व में रानीगंज था । आसनसोल को आत्मनिर्भर गांव बनाने के लिए विभिन्न जातियों और व्यवसायों के लोगों को लाया गया और उनके स्थान पर बस्तियों का निर्माण किया गया । इनमें ब्राह्मण , लोहार , कुम्हार , धोबी , नाई , बुनकर , डोम , मोची , बाउड़ी और अन्य लोग शामिल हैं । घने जंगल की शांत और कोमल छांव में बसा आसनसोल गांव । पद्म बांध , राम सायर , सीता सायर जैसे विशाल जलाशयों की खुदाई की गई । विभिन्न देवी – देवताओं के मंदिरों की स्थापना की गई । यह जानकारी शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के लेख पढ़कर हम पुराने आसनसोल के बारे में जान सकते हैं । लंबे समय में आसनसोल गांव के आसपास कोयले की खदानें बनी हैं , रेलवे आई , उद्योग लगे हैं ।

नोट : इस लेख के सामग्री लेखक द्वारा उपलब्ध कराई गई है

(ASANSOL HISTORY आसनसोल शिल्पांचल से जुड़ा कोई भी ऐतिहासिक जानकारी या रोचक तथ्य आपके पास है और आप चाहते हैं कि सारी दुनिया उससे अवगत हो आप हमें लिख भेजिए हम उसे प्रकाशित करेंगे ताकि सभी को शिल्पांचल के इतिहास के बारे में पता चले)

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