नवरात्रि एक विशेष पर्व
विषय :- नवरात्रि
विधा :- गद्य लेखन
प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल की ✍
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक नज़र में महिषासुर नामक राक्षस ने स्वर्ग और धरती पर आतंक फैला रखा था। उस आतंक को समाप्त करने के लिए त्रस्त होकर सभी देवताओं ने महिषासुर से युद्ध किया, किन्तु उसने सभी देवताओं को परास्त कर दिया, कारण असुर को यह वरदान प्राप्त था कि कोई पुरुष उसे नहीं मार सकता। पूरी तरह से हताश होकर देवतागण पहले ब्रह्भा, फिर विष्णु और अंत में शिव के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने अपनी क्रोधाग्नि से एक दैवीय शक्ति को प्रगट किया जो स्त्री थी। इस शक्ति को देवताओं ने अपने – अपने दिव्य अस्त्र प्रदान किये जिससे वह महाशक्ति बन गयीं। इधर महिषासुर को यह वरदान प्राप्त था कि वह इच्छानुसार अपना रूप बदल सकता है। सिंह पर सवार देवी ने महिषासुर को ललकारा, फिर क्रोध भरी गर्जना के साथ देवी ने दस भुजाओं में धारण दीप्तमान अस्त्रों से महिष से दानव रूप में परिवर्तित हुए असुर पर प्रहार किया, घनघोर युद्ध के उपरान्त महिषासुर का वध हुआ। इस तरह पाप और आतंक पर पुण्य की विजय हुई। देवताओं ने शक्ति के इस स्वरूप को माँ दुर्गा का सम्बोधन दिया और उनकी पूजा होने लगी।
पर्व – त्योहार भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के अभिन्न अंग रहे हैं। विश्व में धर्म के मामले में विशिष्टता रखने वाला देश भारत सदियों से अपने सभी कर्मों को ईश्वरीय सत्ता के प्रति समर्पित करता आया है। नवरात्रि सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाए जाने वाले पर्वों में एक विशेष पर्व है। शक्ति – उपासना में दुर्गापूजा का अहम स्थान है। इसका भारतीय संस्कृति में बहुत बड़ा महत्व है, कारण शक्ति ही संसार का संचालन करती है। शक्ति के बिना शिव भी शव की तरह चेतना शून्य माने गए हैं। भारतीय उपासना में स्त्री तत्व की प्रधानता पुरुष से अधिक मानी गई है। स्त्री ! शक्ति की चेतना का प्रतीक है, साथ ही यह प्रकृति की प्रमुख सहचरी भी है, जो जड़ स्वरूप पुरुष को अपनी चेतना प्रकृति से आकृष्ट कर शिव और शक्ति का मिलन कराती है, साथ ही संसार की सार्थकता सिद्ध करती है।
सारे देश में जगह – जगह विशेषकर पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाए जाने वाले इस पर्व पर जैसे आस्था का सागर ही उमड़ आता है। हर ओर आस्था का वैभवशाली रूप देखने को मिलता है। दुर्गापूजा असीम उत्साह, अनूठे उल्लास और तरंगित उमंगों का पर्व है। यह असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है, एक संगठित शक्ति की सक्षमता का द्योतक है। माँ दुर्गा की पूजा दस दिनों का यज्ञ अनुष्ठान है। शक्ति की उपासना का पर्व शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा शक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। श्री रामचन्द्र जी ने समुद्र तट पर शारदीय नवरात्रि पूजन किया और दसवें दिन रावण को मारकर लंका पर विजय प्राप्त करने के साथ – साथ माता सीता का उद्धार किया। नौ दिनों में माँ दुर्गा की नौ रूपों में पूजा – अर्चना – वन्दना की जाती है, पहले दिन घट की स्थापना कर दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। प्रतिपदा से नवमी तिथि तक क्रमानुसार देवी के नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा – अर्चना करते हैं। भक्त पूरे नौ दिन व्रत रखकर दुर्गा माँ की पूजा करते हैं। नवरात्र एक हिन्दू पर्व है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जिस समय नवरात्र मनाया जाता है वह काल संक्रमण काल कहलाता है। शक्ति उपासना का शारदीय पर्व नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा शक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। नवरात्रि में किए गए देवी पूजन, हवन, धूप – दीप आदि से घर के वातावरण व अंतर्मन को एक अलौकिक शक्ति एवं शुद्धि प्राप्त होती है। देवी पूजन के समय माँ भगवती की विधि – विधान पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। सम्पूर्ण नवरात्र अखंड दीप जलाकर माँ की स्तुति की जाती है और उपवास रखा जाता है। हमारा इतिहास शक्ति आराधकों के उदाहरणों से भरा हुआ है, जो हमें विश्वास दिलाता है कि राष्ट्र और धर्म को बचाते हुए परम पुरुषार्थ को प्राप्त करना है तो शक्ति की उपासना करनी ही होगी। नवरात्र के अंतिम दिन कन्याओं को भोजन कराकर, यथावत दान – दक्षिणा देकर व्रत की समाप्ति के साथ जन कल्याण की कामना की जाती है।
स्त्री और पुरुष दोनों एक दूसरे के परिपूरक हैं। स्त्री शक्ति के बगैर पुरुषत्व का कोई अस्तित्व नहीं।अगर संसार को जीवित रखना है तो स्त्री शक्ति को अवतरण करना नितान्त आवश्यक है। आइए हम सभी एकजुट होकर माँ दुर्गा के पावन श्री चरणों में वंदन करें, अपनी श्रद्धा अर्पित करें।