साहित्य

हमारा नूतन साहित्य कुञ्ज

"नूतन साहित्य कुञ्ज" हमारे लिए एक प्राणवंत साहित्यिक संस्था है। मेरा परिचय इस संस्थासे महज डेढ़ - दो वर्षों का होगा। आदरणीय गुरुवर डॉ. अवधेश कुमार अवध जी की रचनाओं को देखने का अवसर यदा - कदा फेसबुक पर मिल जाया करता था। रचनाएँ इतनी सशक्त हुआ करती थी कि उनकी ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था। उसी समय हमारी स्थानीय साहित्यिक संस्था 'आस्था' में 'नूतन साहित्य कुञ्ज' के बारे में परिचर्चा हुई और हमने आदरणीय अवधेश जी से मोबाइल पर सम्पर्क साधकर संस्था से जुड़ने की अपनी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने सहर्ष हमें स्वीकार किया और फिर साहित्य विन्यास का यह क्रम लगातार उस दिन से जारी है। ऐसी आत्मीयता इस संस्था से जुड़े विभिन्न प्रदेश के साहित्यकार मित्रों से हो गई है कि लगता है कि जैसे हम एक परिवार के सदस्य हैं। जीवन में वर्तमान समय के कई उच्चवर्गीय नामचीन साहित्यकारों से मिलने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ है, किन्तु मैं आज दृढ़विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जो आत्मीयता 'नूतन साहित्य कुञ्ज' के सुहृद संचालकों से मिली है, वह अवर्णनीय है, अनमोल है। ऐसा प्रतीत होता है कि हमारी साहित्यिक प्रतिभा को आकार - प्रकार इस संस्था के साथ जुड़ने से ही प्राप्त हुआ है। आदरणीया डॉ. ममता बनर्जी 'मंजरी' जी का निर्विकार साहित्यिक - वात्सल्य - प्रेम मन को अभिभूत कर देता है। कभी - कभी सोचता हूँ कि कितना अंतर है 'कुञ्ज परिवार' और बाहर के साहित्यकारों में। मंच से अलग एक तो नामचीन साहित्यकार समय नहीं देते, और समय दिया तो छिद्रान्वेषण कवि का संतुलन ही बिगाड़ कर रख देता है, किन्तु धैर्य के साथ निस्वार्थ भाव से नित्य प्रति एक उत्तरदायित्व प्रतिनिधि की तरह, सेवा भाव से नव पल्लवित साहित्यकारों को संवारने का दुरूह कार्य जो 'नूतन साहित्य कुञ्ज' के वरिष्ठ अधिकारी कर रहे हैं, उनका यह अवदान हमलोगों के लिए चिर - स्मरणीय है, हमलोग चिर - ऋणी हैं 'हमारी अपनी संस्था *'नूतन साहित्य कुञ्ज'* के। विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी भी कोई संस्था होगी जो इतनी आत्मीयता के साथ हमारे गुण - दोष को अपनी प्रतिभा से, बिना किसी भेद भाव के, बिना किसी शुल्क के, तराश कर मार्गदर्शन करेगी। मैं 'नूतन साहित्य कुञ्ज' के उन तमाम वरिष्ठ अधिकारियों, प्रबुद्ध साहित्यकारों के प्रति हृदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने तरह - तरह की साहित्यिक विवेचनाओं से हमलोगों की साहित्य - चेतना को जगाने हेतु लगातार, निर्विकार बिना किसी भेद भाव के एक समर्पित कार्यकर्ता के रूप में करने का संकल्प लिया है और हिन्दी साहित्य जगत को उत्कृष्ट मानकता तक पहुँचाने का कार्य, स्व - इच्छा से सम्पादित कर रहे हैं। समय - समय पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन आयोजित करना, प्रदत्त किसी शब्द पर या किसी चित्र पर परिचर्चा करना, भावनाओं की उड़ान भरना, संस्मरण, लघुकथा आदि विभिन्न विषयों पर लेखन, कविता सृजन करना, छंद ज्ञान से अवगत कराना और उसका साहित्यिक परिशोधन प्रतिदिन नियम पूर्वक, वरिष्ठ साहित्यकारों की कलम से, साहित्य सेवा का एक ज्वलंत उदाहरण, मानदंड है, इस अवदान को किसी भी तरह से नहीं भूला जा सकता। हम सभी एकजुट एक स्वयंसेवक की तरह से अपने *"नूतन साहित्य कुञ्ज"* से जुड़े हुए हिन्दी साहित्य के जिम्मेदार सेवक हैं। हिन्दी हमारे देश की राजभाषा है, हमारी संस्कृति से जुड़ी हमारी मातृभाषा है। हमारे देश की एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। हमें गर्व है हिन्दी से जुड़ी हमारी संस्था *'नूतन साहित्य कुञ्ज'* पर, जिसके नक्शे-कदम पर चलकर हमलोगों ने साहित्य सेवा का जो व्रत लिया है, उसको आजीवन शेष चरण तक प्रदीप्त, आलोकित रखना है, जीवन में एक नई जीवंतता सृजन करना है। हमें ऐसे ही मंच की जरूरत है जिसका लक्ष्य उत्कृष्ट समालोचना, ऐतिहासिक, सैद्धांतिक और सृजनात्मक विद्वत्ता की हमारी साहित्यिक परम्परा को सशक्त और सक्षम बनाना है। हालिया सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि हमारे बच्चे हिन्दी भाषा की शिक्षा तो हासिल कर रहे हैं, लेकिन उनकी शैक्षणिक क्षमताएँ बहुत ही कमजोर हैं। इससे उच्च अध्ययन के लिए बुनियाद कमजोर हो जाती है। अध्ययन दर्शाते हैं कि अगर बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाय तो सबसे बेहतर नतीजे हासिल होते हैं। यूनेस्को के महानिदेशक ने अध्ययन के माध्यम के रूप में मातृभाषा के महत्व को स्पष्ट रूप से इन शब्दों में रेखांकित किया है, "अध्ययन, आत्मसम्मान और स्वाभिमान का स्तर सुधारने हेतु मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करना बेहद आवश्यक है, यह विकास के सबसे प्रमुख पहलुओं में सुमार है।" हिन्दी भाषा को अध्ययन के रूप में शुरू से कैसे सुमार किया जाय, हमें इस स्थिति का निदान तलाशना है। ऐसा न हो कि किसी का उजाला किसी के अंधेरे की कीमत पर पनप रहा हो। हमें भाषा और साहित्य के प्रति आधारभूत अवधारणाओं की सोच को विकसित करना है। सामाजिक चुनौतियों के बीच सेतु बनना है। निरन्तर नवनीत - नवाचार की दिशा में काम करते रहना है। आदरणीय डॉ. अवधेश जी, आदरणीया डॉ. ममता दीदी के उत्कृष्ट सारगर्भित विश्लेषण से रूबरू होने का मौका मिला है। आप दोनों का बहु आयामी व्यक्तित्व हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी अभिरुचि और निष्ठा का द्योतक है। आदरणीय अमरनाथ दा, आदरणीय अरुण जी, आदरणीया प्रतिभा जी सरीखे अनेकानेक विद्वत्ता पूर्ण व्यक्तित्व के सम्मुख नतमस्तक हूँ, आप सभी हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में निष्णात विद्वान *'नूतन साहित्य कुञ्ज'* के अलंकरण हैं। मुझमें इतनी योग्यता नहीं कि आप सरीखे साहित्यिक प्रतिभा के बारे में कुछ लिख सकूँ। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कि ' गुरु द्रोणाचार्य की विवेचना उनका शिष्य करे।

बस अन्त में दो पंक्तियाँ लिखकर अपनी लेखनी को विराम देता हूँ !!
करते तुलसीदास भी कैसे मानस – नाद ?
महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद ।।

प्रकाश चन्द्र बरनवाल
‘वत्सल’ आसनसोल

दिनांक 27/11/2020,शुक्रवार को पटल पर आयोजित ‘निबन्ध लेखन प्रतियोगिता’ का परिणाम-

🌹प्रथम स्थान-🌹

आ.रुणा रश्मि “दीप्त” जी
प्राप्तांक-77.5/100
एवं
आ.मनीषा सहाय “सुमन” जी
प्राप्तांक- 77.5/100

🌹द्वितीय स्थान-🌹

आ.प्रकाशचन्द्र बरनवाल जी
प्राप्तांक-70.5/100

🌹तृतीय स्थान-🌹

आ.मीरा भार्गव “वसुधा” जी
प्राप्तांक-67.5/100

🌹🌹नूतन साहित्य कुंज🌹🌹

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